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- Create Date November 10, 2023
- Last Updated July 29, 2024
Kashi Vishweshwar Stotram
काशी विश्वनाथ अष्टकम एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान शिव के काशी विश्वनाथ रूप की महिमा का वर्णन करता है। यह स्तोत्र महाकवि विद्यापति द्वारा रचित है।
काशी विश्वनाथ भगवान शिव का एक रूप है जो काशी शहर में स्थित है। काशी को मोक्ष की नगरी माना जाता है और काशी विश्वनाथ को मोक्ष के दाता के रूप में पूजा जाता है।
स्तोत्र का हिंदी अनुवाद:
श्लोक 1
स्तोत्रकार कहते हैं, "मैं काशी विश्वनाथ रूप में विराजमान भगवान शिव की स्तुति करता हूं।"
श्लोक 2
"हे काशी विश्वनाथ, तुम गंगा के तट पर स्थित हो। तुम काशी नगरी के अधिपति हो। तुम सभी प्राणियों के कल्याण के लिए अवतरित हुए हो।"
श्लोक 3
"हे काशी विश्वनाथ, तुम ब्रह्मांड के सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता हो। तुम सर्वशक्तिमान हो।"
श्लोक 4
"हे काशी विश्वनाथ, तुम सर्वव्यापी हो। तुम सर्वत्र व्याप्त हो।"
श्लोक 5
"हे काशी विश्वनाथ, तुम सर्वज्ञ हो। तुम सब कुछ जानते हो।"
श्लोक 6
"हे काशी विश्वनाथ, तुम सर्वकल्याणकारी हो। तुम सभी प्रकार की सुखों का प्रदान करने वाले हो।"
श्लोक 7
"हे काशी विश्वनाथ, तुम सर्वरक्षक हो। तुम सभी प्राणियों की रक्षा करने वाले हो।"
श्लोक 8
"हे काशी विश्वनाथ, तुम सर्वशत्रुविनाशक हो। तुम सभी दुष्टों का नाश करने वाले हो।"
श्लोक 9
"हे काशी विश्वनाथ, तुम प्रेम और करुणा के सागर हो। तुम सभी प्राणियों के प्रति दयालु हो।"
श्लोक 10
"हे काशी विश्वनाथ, तुम ज्ञान और सत्य के अवतार हो। तुम सभी प्राणियों को मोक्ष प्रदान करते हो।"
Kashi Vishweshwar Stotram
कुछ विशेष टिप्पणियां:
- काशी विश्वनाथ अष्टकम एक महत्वपूर्ण धार्मिक पाठ है जो भगवान शिव के काशी विश्वनाथ रूप की महिमा और शक्ति को दर्शाता है।
- यह स्तोत्र शिव भक्तों के बीच लोकप्रिय है और इसका पाठ अक्सर मंदिरों और घरों में किया जाता है।
- स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को भगवान शिव की कृपा प्राप्त हो सकती है।
काशी विश्वनाथ भगवान शिव का एक महत्वपूर्ण रूप है। यह रूप मोक्ष और प्रेम का प्रतीक है। यह रूप भक्तों को प्रेरणा देता है और उन्हें मोक्ष और प्रेम की ओर अग्रसर करता है।
काशी विश्वनाथ अष्टकम के कुछ महत्वपूर्ण अंश निम्नलिखित हैं:
- "हे काशी विश्वनाथ, तुम गंगा के तट पर स्थित हो। तुम काशी नगरी के अधिपति हो। तुम सभी प्राणियों के कल्याण के लिए अवतरित हुए हो।"
इस अंश में स्तोत्रकार भगवान शिव के काशी नगरी से संबंध का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि भगवान शिव काशी नगरी के अधिपति हैं और वे सभी प्राणियों के कल्याण के लिए अवतरित हुए हैं।
- "हे काशी विश्वनाथ, तुम ब्रह्मांड के सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता हो। तुम सर्वशक्तिमान हो।"
इस अंश में स्तोत्रकार भगवान शिव की सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता के रूप में महिमा का गुणगान करते हैं। वे कहते हैं कि भगवान शिव सर्वशक्तिमान हैं और उन्होंने ब्रह्मांड की रचना, पालन और संहार किया है।
- "हे काशी विश्वनाथ, तुम प्रेम और करुणा के सागर हो। तुम सभी प्राणियों के प्रति दयालु हो।"
इस अंश में स्तोत्रकार भगवान शिव की प्रेम और करुणा के रूप में महिमा का गुणगान करते हैं। वे कहते हैं कि भगवान शिव सभी प्राणियों के प्रति दयालु हैं।
किरातमूर्तिस्तोत्रं Kiratmurti Stotram
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