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  • Create Date November 16, 2023
  • Last Updated July 29, 2024

कारपण्यपञ्जिकास्तोत्रम् एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान कृष्ण की स्तुति में लिखा गया है। यह स्तोत्र 16वीं शताब्दी के कवि रूप गोस्वामी द्वारा रचित है।

कारपण्यपञ्जिकास्तोत्रम् में कुल 45 श्लोक हैं, प्रत्येक श्लोक में 16 मात्राएँ हैं।

Karpanyapanjikastotram

कारपण्यपञ्जिकास्तोत्रम् की रचना का उद्देश्य भगवान कृष्ण के प्रेम और सौंदर्य का वर्णन करना है। स्तोत्र में कृष्ण को एक अद्वितीय और सर्वोच्च देवता के रूप में चित्रित किया गया है। कृष्ण को प्रेम, सौंदर्य, शक्ति और ज्ञान का अवतार माना गया है।

कारपण्यपञ्जिकास्तोत्रम् की भाषा संस्कृत की सुंदर और सरल भाषा है। स्तोत्र में कई सुंदर और भावपूर्ण शब्दों का प्रयोग किया गया है।

कारपण्यपञ्जिकास्तोत्रम् को संस्कृत साहित्य की एक महत्वपूर्ण रचना माना जाता है। यह स्तोत्र आज भी लोकप्रिय है और इसे अक्सर धार्मिक अनुष्ठानों और समारोहों में पढ़ा जाता है।

कारपण्यपञ्जिकास्तोत्रम् के कुछ प्रसिद्ध श्लोक निम्नलिखित हैं:

  • "वृन्दावने मधुरैः गोपीजनैः समवेष्ट्य

  • कुंजेषु विहारं करोषि यदा तं क्षणं

  • लब्ध्वा न संसारे किमपि मन्ये किंचित्

  • त्वं मे प्रियतमः जनार्दनः त्वमेव॥"

  • "न ते गुणा न ते रूपं न ते मधुरता

  • न ते सौन्दर्यं न ते प्रेममहो

  • त्वमेव मे प्रियतमः जनार्दनः त्वमेव

  • ननु किमन्यत् ते प्रियं मदनप्रिय॥"

  • "न ते वृन्दावनं न ते राधिका न ते

  • गोपीजनं न ते कुंजा न ते यमुना

  • त्वमेव मे प्रियतमः जनार्दनः त्वमेव

  • ननु किमन्यत् ते प्रियं मदनप्रिय॥"

कारपण्यपञ्जिकास्तोत्रम् की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • यह स्तोत्र भगवान कृष्ण की स्तुति में लिखा गया है।
  • स्तोत्र में कृष्ण को एक अद्वितीय और सर्वोच्च देवता के रूप में चित्रित किया गया है।
  • स्तोत्र की भाषा संस्कृत की सुंदर और सरल भाषा है।
  • स्तोत्र में कई सुंदर और भावपूर्ण शब्दों का प्रयोग किया गया है।
  • कारपण्यपञ्जिकास्तोत्रम् को संस्कृत साहित्य की एक महत्वपूर्ण रचना माना जाता है।

कारपण्यपञ्जिकास्तोत्रम् एक सुंदर और भावपूर्ण स्तोत्र है जो भगवान कृष्ण की महिमा का वर्णन करता है। यह स्तोत्र भक्तों को भगवान कृष्ण की भक्ति में प्रेरित करता है।

कारपण्यपञ्जिकास्तोत्रम् का एक प्रसिद्ध अनुवाद निम्नलिखित है:

हे जनार्दन! जब तुम वृन्दावन में गोपियों के साथ मधुर संगीत करते हुए कुंजों में विहार करते हो, तो उस क्षण मैं संसार में कुछ भी नहीं मानता। तुम ही मेरे प्रियतम हो।

तेरे गुण, तेरा रूप, तेरा मधुरता, तेरा सौंदर्य, तेरा प्रेम - ये सब मेरे लिए अत्यंत प्रिय हैं। तू ही मेरे प्रियतम हो।

वृन्दावन, राधा, गोपियाँ, कुंज, यमुना - ये सब मेरे लिए कुछ भी नहीं हैं। तू ही मेरे प्रियतम हो।

हे मदनप्रिय! मेरे लिए तेरे अलावा और कुछ भी प्रिय नहीं है।


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