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- Create Date October 11, 2023
- Last Updated July 29, 2024
अपरमेय स्तोत्र एक स्तोत्र है जो भगवान शिव की स्तुति में लिखी गई है। यह स्तोत्र 17वीं शताब्दी के कवि समर्थ रामदास द्वारा रचित है।
अपरमेय स्तोत्र में, समर्थ रामदास भगवान शिव की महिमा का वर्णन करते हैं। वह कहते हैं कि भगवान शिव सभी देवताओं के स्वामी हैं। वह सभी शक्तियों के स्वामी हैं। वह सभी गुणों के प्रतिनिधि हैं।
अपरमेय स्तोत्र का पाठ इस प्रकार है:
अपरमेय ओंकारेश्वर,
महादेव दयालु।
सत्य सनातन योगी,
ब्रह्मा विष्णु महेश।
त्रिगुणधारी सर्वव्यापी,
पाप हरि कृपानिधान।
भक्तजनों के नाथ,
शिव जय जयकार।
नित्य ध्यानी अखंडेश्वर,
ब्रह्माण्ड के पालनहार।
सृष्टि सँहारी संहारी,
शिव जय जयकार।
अवधूत योगीश्वर,
अनंत अनंत स्वरूप।
त्रिनेत्र धारी,
शिव जय जयकार।
गंगाधारी,
परम सच्चिदानंद।
शिव जय जयकार।
अनुवाद:
हे अपरमेय ओंकारेश्वर, हे महादेव दयालु। हे सत्य सनातन योगी, हे ब्रह्मा विष्णु महेश।
हे त्रिगुणधारी सर्वव्यापी, हे पाप हरि कृपानिधान। हे भक्तजनों के नाथ, हे शिव जय जयकार।
हे नित्य ध्यानी अखंडेश्वर, हे ब्रह्माण्ड के पालनहार। हे सृष्टि सँहारी संहारी, हे शिव जय जयकार।
हे अवधूत योगीश्वर, हे अनंत अनंत स्वरूप। हे त्रिनेत्र धारी, हे शिव जय जयकार।
हे गंगाधारी, हे परम सच्चिदानंद। हे शिव जय जयकार।
व्याख्या:
अपरमेय स्तोत्र एक बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण स्तोत्र है जो भगवान शिव की महिमा का वर्णन करती है। इस कविता के पाठ से भक्तों को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनके जीवन में सुख और शांति आती है।
इस स्तोत्र में, समर्थ रामदास भगवान शिव को अपरमेय कहते हैं। इसका अर्थ है कि भगवान शिव की महिमा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। वह सभी देवताओं के स्वामी हैं। वह सभी शक्तियों के स्वामी हैं। वह सभी गुणों के प्रतिनिधि हैं।
समर्थ रामदास भगवान शिव को सत्य सनातन योगी कहते हैं। इसका अर्थ है कि भगवान शिव सत्य और अनंत हैं। वह हमेशा ध्यान में लीन रहते हैं।
समर्थ रामदास भगवान शिव को ब्रह्मा विष्णु महेश कहते हैं। इसका अर्थ है कि भगवान शिव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में तीनों लोकों का पालन करते हैं।
समर्थ रामदास भगवान शिव को त्रिगुणधारी कहते हैं। इसका अर्थ है कि भगवान शिव सत्व, रज और तम तीनों गुणों के स्वामी हैं।
समर्थ रामदास भगवान शिव को पाप हरि कृपानिधान कहते हैं। इसका अर्थ है कि भगवान शिव पापों को नष्ट करते हैं और अपने भक्तों पर कृपा करते हैं।
समर्थ रामदास भगवान शिव को भक्तजनों के नाथ कहते हैं। इसका अर्थ है कि भगवान शिव अपने भक्तों के स्वामी हैं।
समर्थ रामदास भगवान शिव को अवधूत योगीश्वर कहते हैं। इसका अर्थ है कि भगवान शिव अवधूत योगी के रूप में निर्गुण और निराकार हैं।
समर्थ रामदास भगवान शिव को अनंत अनंत स्वरूप कहते हैं। इसका अर्थ है कि भगवान शिव के अनंत रूप हैं।
समर्थ रामदास भगवान शिव को त्रिनेत्र धारी कहते हैं। इसका अर्थ है कि भगवान शिव के तीन नेत्र हैं।
समर्थ रामदास भगवान शिव को गंगाधारी कहते हैं। इसका अर्थ है कि भगवान शिव के सिर पर गंगा बहती है।
समर्थ रामदास भगवान शिव को परम सच्चिदानंद कहते हैं। इसका अर्थ है कि भगवान शिव सत्य, आनंद और चेतना के स्रोत हैं।
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