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- Create Date November 16, 2023
- Last Updated November 16, 2023
अद्वैताष्टकम २, एक संस्कृत स्तोत्र है जो अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को दर्शाता है। यह स्तोत्र २०वीं शताब्दी के भारतीय दार्शनिक और संत, स्वामी विवेकानंद द्वारा रचित है।
स्तोत्र का पहला श्लोक इस प्रकार है:
Advaitaashtakam 2
अद्वैताष्टकम २
सर्वं ब्रह्ममयं जगत् न भिन्नं, न पृथक् सर्वं ब्रह्ममयं ज्ञात्वा मोक्षं प्राप्नुहि॥
अर्थ:
सभी सृष्टि ब्रह्ममय है भिन्न नहीं, अलग नहीं ब्रह्ममय सब कुछ जानकर मोक्ष प्राप्त करो॥
इस श्लोक में, स्वामी विवेकानंद अद्वैत वेदांत के मूल सिद्धांत को व्यक्त करते हैं कि ब्रह्म और जगत एक हैं। वह कहते हैं कि सभी सृष्टि ब्रह्ममय है, यानी ब्रह्म से बनी है। ब्रह्म और जगत में कोई अंतर नहीं है। जो लोग इस सिद्धांत को समझ लेते हैं, वे मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं।
स्तोत्र के अन्य श्लोकों में, स्वामी विवेकानंद अद्वैत वेदांत के अन्य सिद्धांतों को भी व्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिए, वे कहते हैं कि ब्रह्म सर्वव्यापी है, यानी वह सभी जगह मौजूद है। वह कहते हैं कि ब्रह्म निराकार है, यानी उसका कोई आकार नहीं है। वह कहते हैं कि ब्रह्म निर्गुण है, यानी उसके कोई गुण नहीं हैं।
अद्वैताष्टकम २ एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है जो अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को सरल और सुबोध तरीके से प्रस्तुत करता है। यह स्तोत्र अद्वैत वेदांत के अध्ययन और अनुकरण के लिए एक अच्छा मार्गदर्शक है।
यहां अद्वैताष्टकम २ के अन्य श्लोकों का अनुवाद दिया गया है:
श्लोक २
न आत्मा, न परमात्मा न जन्म, न मृत्यु न कर्ता, न कर्म न भोक्ता, न भोग॥
अर्थ:
न कोई आत्मा है, न परमात्मा न कोई जन्म है, न मृत्यु न कोई कर्ता है, न कर्म न कोई भोक्ता है, न भोग॥
श्लोक ३
सर्वं ब्रह्ममयं ज्ञात्वा मोक्षं प्राप्नुहि॥
अर्थ:
ब्रह्ममय सब कुछ जानकर मोक्ष प्राप्त करो॥
श्लोक ४
अहं ब्रह्मास्मि इति ज्ञात्वा मोक्षं प्राप्नुहि॥
अर्थ:
मैं ब्रह्म हूं इति जानकर मोक्ष प्राप्त करो॥
श्लोक ५
सर्वं ब्रह्ममयं ज्ञात्वा सर्वं परमात्मा॥
अर्थ:
ब्रह्ममय सब कुछ जानकर सब परमात्मा॥
श्लोक ६
सर्वं आत्मा॥
अर्थ:
सब आत्मा॥
श्लोक ७
सर्वं निर्गुणं॥
अर्थ:
सब निर्गुण॥
श्लोक ८
सर्वं निराकारं॥
अर्थ:
सब निराकार॥
मुझे उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी।
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