नारायणस्तुतिः Narayanastuti

नारायणस्तुति, जिसे हिंदी में “नारायण की स्तुति” भी कहा जाता है, एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान विष्णु की स्तुति में रचित है। यह स्तोत्र 108 श्लोकों में विष्णु के विभिन्न नामों और गुणों का वर्णन करता है। नारायणस्तुति की…

निकुञ्जकेलिविरुदावली NikunjKeliViruDavali

निकुंज केली विरुदावली, जिसे हिंदी में “निकुंज में लीलाएं” भी कहा जाता है, एक संस्कृत ग्रंथ है जो भगवान कृष्ण और उनकी लीलाओं का वर्णन करता है। यह ग्रंथ 16वीं शताब्दी के कवि और दार्शनिक श्रीवल्लभाचार्य द्वारा रचित है। निकुंज…

नित्यानन्दाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् Nityanandashottarashatanamastotram

नित्यानंदशोत्तरशतनामास्तोत्रम्, जिसे हिंदी में “नित्यानंद के 128 नामों का स्तवन” भी कहा जाता है, एक संस्कृत स्तोत्र है जो चैतन्य महाप्रभु के प्रथम शिष्य, नित्यानंद प्रभु की स्तुति में रचित है। यह स्तोत्र 128 श्लोकों में नित्यानंद प्रभु के विभिन्न…

निरोधलक्षणम् nirodhalakshanam

योगदर्शन में, निरोधलक्षणम (nirodhalakṣaṇam) एक शब्द है जिसका अर्थ है “निरोध की विशेषता”। यह ध्यान की एक अवस्था को संदर्भित करता है जिसमें चित्त की सभी गतिविधियाँ पूरी तरह से समाप्त हो जाती हैं। निरोधलक्षणम को योगदर्शन के आठ अंगों…

नैवेद्यसमर्पणप्रार्थना naivedyasamarpanapraarthana

पंचपद्यानि, जिसे हिंदी में “पांच पद्य” भी कहा जाता है, संस्कृत साहित्य की एक विधा है जिसमें पाँच पद्य होते हैं। ये पद्य एक ही छंद में होते हैं और एक ही विषय पर आधारित होते हैं। पंचपद्यानि का उपयोग…

पञ्चपद्यानि Panchpadyani

पंचपद्यानि, जिसे हिंदी में “पांच पद्य” भी कहा जाता है, संस्कृत साहित्य की एक विधा है जिसमें पाँच पद्य होते हैं। ये पद्य एक ही छंद में होते हैं और एक ही विषय पर आधारित होते हैं। पंचपद्यानि का उपयोग…

पतितपावनाष्टकम् patitpaavnashtakam

पतितपावनाष्टकम् एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान श्रीकृष्ण की प्रशंसा में लिखा गया है। यह स्तोत्र आठ श्लोकों में विभाजित है, प्रत्येक श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न रूपों और गुणों की वर्णन है। प्रथम श्लोक: सचिनश्चिदानन्दरूपो भगवन् कृष्णो नमोऽस्तु…

परिवृढाष्टकम् parivrudhashtakam

परिव्रुढाष्टकम् एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान कृष्ण की भक्त, परिव्रुढा की प्रशंसा में लिखा गया है। यह स्तोत्र आठ श्लोकों में विभाजित है, प्रत्येक श्लोक में परिव्रुढा के विभिन्न रूपों और गुणों की वर्णन है। प्रथम श्लोक: अष्टांगयोगमभ्यास्य योगिनि…

पिब रे कृष्णरसम् Pib Re Krishnarasam

पीठे कृष्णरसम् एक संस्कृत वाक्यांश है जिसका अर्थ है “पीठ में कृष्ण रस”। यह वाक्यांश भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति और प्रेम की गहरी भावना को दर्शाता है। इस वाक्यांश का उपयोग अक्सर कृष्णभक्तों द्वारा किया जाता है, जो भगवान…

पुष्टिप्रवाहमर्यादाभेदः pushtipravaahamaryaadaabhedah

पुष्टिमार्ग और माध्व संप्रदाय दो प्रमुख वैष्णव संप्रदाय हैं। इन दोनों संप्रदायों में कई समानताएं हैं, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण अंतर भी हैं। सामान्यताएं: दोनों संप्रदाय भगवान विष्णु को ही परमेश्वर मानते हैं। दोनों संप्रदाय भक्ति को ही मोक्ष का मार्ग…

पुष्टिमार्गलक्षणानि pushtimaargalakshanaani

पुष्टिमार्गलक्षणानि वेदान्त के एक सम्प्रदाय के लक्षण हैं। इस सम्प्रदाय के संस्थापक संत श्रीवल्लभाचार्य थे। पुष्टिमार्ग का अर्थ है “प्रेम का मार्ग”। इस सम्प्रदाय में भगवान कृष्ण को ही परमेश्वर माना जाता है। भगवान कृष्ण को प्रेम और करुणा के…

प्रार्थनाष्टकम् praarthanaashtakam

प्रार्थनाष्टकम् एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान शिव की प्रशंसा में लिखा गया है। यह स्तोत्र आठ श्लोकों में विभाजित है, प्रत्येक श्लोक में भगवान शिव के विभिन्न रूपों और गुणों की वर्णन है। प्रथम श्लोक: नमस्ते रुद्राय नीलकंठाय शशिशेखराय।…