Dharmraj Ki Aarti:धर्मराज की आरती करने के कई लाभ होते हैं, जो भक्तों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाने में सहायक माने जाते हैं। इसके मुख्य लाभ इस प्रकार हैं:
- न्याय में सफलता: धर्मराज को न्याय के देवता माना जाता है। Dharmraj Ki Aarti उनकी आरती करने से व्यक्ति के जीवन में न्याय की स्थापना होती है और कानूनी या व्यक्तिगत विवादों में सफलता प्राप्त होती है।
- सच्चाई और धर्म का मार्ग: धर्मराज की आरती से व्यक्ति को अपने जीवन में सच्चाई, धार्मिकता और Dharmraj Ki Aarti नैतिकता का मार्ग अपनाने की प्रेरणा मिलती है, जिससे जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
- पापों से मुक्ति: धर्मराज की कृपा से व्यक्ति के द्वारा किए गए पिछले कर्मों का परिणाम कम होता है और पापों से मुक्ति मिलती है। यह एक आध्यात्मिक शुद्धिकरण प्रक्रिया के रूप में कार्य करता है।
- पूर्वजों का आशीर्वाद: Dharmraj Ki Aarti धर्मराज की आरती करने से पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। Dharmraj Ki Aarti इससे पितृ दोष और कुल दोष जैसे दोषों में कमी आती है, जिससे जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
- मृत्यु के भय से मुक्ति: धर्मराज मृत्यु के अधिपति माने जाते हैं, उनकी आरती करने से मृत्यु का भय दूर होता है और व्यक्ति आत्मिक शांति का अनुभव करता है।
- धर्म की रक्षा: Dharmraj Ki Aarti धर्मराज की आरती करने से व्यक्ति को अपने जीवन में धर्म और कर्तव्यों का पालन करने की प्रेरणा मिलती है। इससे समाज में धर्म और आदर्श स्थापित करने की शक्ति प्राप्त होती है।
- भय और नकारात्मकता से मुक्ति: धर्मराज की आरती करने से भय और नकारात्मक विचार दूर होते हैं, जिससे मनोबल बढ़ता है और व्यक्ति अपने कार्यों में उत्साह के साथ आगे बढ़ता है।
धर्मराज की आरती नियमित रूप से करने से व्यक्ति का मनोबल, आत्मविश्वास, और आंतरिक शांति प्राप्त होती है, जो उसके जीवन को समृद्ध और सफल बनाता है।
Dharmraj Ki Aarti धर्मराज आरती – धर्मराज कर सिद्ध काज
धर्मराज कर सिद्ध काज,
प्रभु मैं शरणागत हूँ तेरी ।
पड़ी नाव मझदार भंवर में,
पार करो, न करो देरी ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥
धर्मलोक के तुम स्वामी,
श्री यमराज कहलाते हो ।
जों जों प्राणी कर्म करत हैं,
तुम सब लिखते जाते हो ॥
अंत समय में सब ही को,
तुम दूत भेज बुलाते हो ।
पाप पुण्य का सारा लेखा,
उनको बांच सुनते हो ॥
भुगताते हो प्राणिन को तुम,
लख चौरासी की फेरी ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥
चित्रगुप्त हैं लेखक तुम्हारे,
फुर्ती से लिखने वाले ।
अलग अगल से सब जीवों का,
लेखा जोखा लेने वाले ॥
पापी जन को पकड़ बुलाते,
नरको में ढाने वाले ।
बुरे काम करने वालो को,
खूब सजा देने वाले ॥
कोई नही बच पाता न,
याय निति ऐसी तेरी ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥
दूत भयंकर तेरे स्वामी,
बड़े बड़े दर जाते हैं ।
पापी जन तो जिन्हें देखते ही,
भय से थर्राते हैं ॥
बांध गले में रस्सी वे,
पापी जन को ले जाते हैं ।
चाबुक मार लाते,
जरा रहम नहीं मन में लाते हैं ॥
नरक कुंड भुगताते उनको,
नहीं मिलती जिसमें सेरी ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥
धर्मी जन को धर्मराज,
तुम खुद ही लेने आते हो ।
सादर ले जाकर उनको तुम,
स्वर्ग धाम पहुचाते हो ।
जों जन पाप कपट से डरकर,
तेरी भक्ति करते हैं ।
नर्क यातना कभी ना करते,
भवसागर तरते हैं ॥
कपिल मोहन पर कृपा करिये,
जपता हूँ तेरी माला ॥
॥ धर्मराज कर सिद्ध काज..॥