KARMASU

Datta Jayanti

अवधूत चिंतन श्री गुरुदेव दत्त:Avadhoot Chintan Shri Gurudev Dutt

Datta Jayanti 2025 Mein Kab Hai: दत्त जयंती या दत्तात्रेय जयंती, हिंदू धर्म में मनाया जाने वाला एक अत्यंत शुभ और पवित्र त्योहार है, जो भगवान दत्तात्रेय Datta Jayanti के जन्मदिन के उपलक्ष्य में बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है. मार्गशीर्ष (अग्रहायण) महीने की पूर्णिमा (पूर्णिमा) की रात को दत्तात्रेय जयंती का उत्सव आयोजित किया जाता है. यह दिन हर दत्त भक्त के लिए एक पावन दिवस होता है.

इस दिन दत्तात्रय महाराजाओं की मूर्ति, प्रतिमा और पादुकाओं की पूजा की जाती है. शाम के समय दत्त महाराजा का पालना हलवाया जाता है.

दत्तात्रेय जयंती 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त:Date and auspicious time of Datta treya Jayanti 2025

आपके स्रोतों के अनुसार, मार्गशीर्ष पौर्णिमा के दिन दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है.

उदय तिथि के अनुसार, इस वर्ष दत्त जयंती गुरुवार, 04 दिसंबर 2025 को मनाई जाएगी.

मार्गशीर्ष पौर्णिमा तिथि 04 दिसंबर 2025 को सुबह 8:38 बजे शुरू होगी (एक अन्य स्रोत के अनुसार 08:37 बजे).

दत्तात्रेय महाराजा का जन्म मार्गशीर्ष पौर्णिमा को मृगशीर्ष नक्षत्र में सायंकाल हुआ था. यही कारण है कि दत्त जयंती प्रदोष काल में मनाई जाती है, और दत्त महाराजा का पालना भी संध्या को ही हिलाया जाता है.

भगवान दत्तात्रेय कौन हैं और उनका महत्व क्या है: Who is Lord Datta Jayanti and what is his importance?

भगवान दत्तात्रेय को हिंदू पवित्र त्रिमूर्ति—ब्रह्मा, विष्णु, और महेश—में तीन देवताओं का अवतार माना जाता है. उन्हें भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है.

उन्हें गुरु और देवता का दिव्य अवतार माना जाता है, और उनके अनुयायी उन्हें श्री गुरुदेवदूत के रूप में भी जानते हैं.

श्री दत्तात्रेय सामाजिक समता और बंधुत्व की कल्पना के संस्थापक थे.

श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार, दत्तात्रेय को 24 गुरुओं से ज्ञान और अंतर्दृष्टि प्राप्त हुई थी.

दत्तात्रेय जयंती के दिन श्री दत्ता का तत्व पृथ्वी पर अन्य दिनों की अपेक्षा 1000 गुना ज्यादा सक्रिय होता है.

यह पर्व महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, और गुजरात जैसे राज्यों में अत्यंत महत्वपूर्ण है, जहाँ Datta Jayanti भगवान दत्तात्रेय को समर्पित कई मंदिर हैं.

दत्तात्रेय जयंती का इतिहास:History of Dattatreya Jayanti

भगवान दत्तात्रेय के माता-पिता अनुसूया और अत्रि ऋषि थे. अनुसूया को एक भक्त और पवित्र पत्नी का आदर्श उदाहरण माना जाता था.

पौराणिक कथा के अनुसार:according to legend:

1. देवी सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती को नारद मुनि ने बताया कि अनुसूया जैसी कोई विनम्र और गुणी स्त्री उन्हें नहीं मिली, जिससे तीनों देवियों का अहंकार आहत हुआ.

2. इसके बाद, त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) ने ऋषियों के वेश में Datta Jayanti अनुसूया के सती धर्म की परीक्षा लेने के लिए उनके निवास स्थान पर पहुँचे.

3. उन्होंने अनुसूया से यह शर्त रखी कि यदि वह उन्हें उनके प्राकृतिक अवस्था में (नग्न) भोजन देंगी तभी वे भोजन करेंगे.

4. जब अनुसूया ने त्रिदेवों को गले लगाया, तो वे तीनों बालक तीन सिरों और छह हाथों के साथ एक हो गए.

5. देवी-देवताओं के अनुरोध पर, Datta Jayanti त्रिमूर्ति ने अपना वास्तविक रूप धारण किया और अत्रि तथा अनुसूया को दत्तात्रेय नामक पुत्र का आशीर्वाद दिया.

Saphala Ekadashi: सफला एकादशी के दिन करवाएं विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ, बन जाएंगे सारे बिगड़े काम Saphala Ekadashi

Saphala Ekadashi: सफला एकादशी के दिन करवाएं विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ, बन जाएंगे सारे बिगड़े काम

Saphala Ekadashi: सफला एकादशी पर विष्णु सहस्त्रनाम पाठ करवाएं बन जाएंगे रुके हुए काम, जीवन में आएगी स्थिरता और सौभाग्य क्या आपके…

Skanda Sashti 2025 Date And Time: स्कंद षष्ठी व्रत भगवान कार्तिकेय की विशेष कृपा पाने का तरीका Skanda Sashti 2025

Skanda Sashti 2025 Date And Time: स्कंद षष्ठी व्रत भगवान कार्तिकेय की विशेष कृपा पाने का तरीका

 Skanda Sashti 2025 Mein Kab Hai: हर महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी का पर्व मनाया…

दत्त जयंती पूजा विधि और उपासना:Dutt Jayanti puja method and worship

दत्त जयंती के अवसर पर, भक्तों को इन नियमों का पालन करना चाहिए:

1. स्नान और पूजा: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और दत्तात्रेय महाराजा की मूर्ति या फोटो की पूजा करें. भक्त पवित्र नदियों में स्नान करते हैं.

2. अभिषेक और अर्पण: पूजा के दौरान मूर्ति का अभिषेक किया जा सकता है. इसके बाद, मूर्ति पर चंदन का लेप, सिंदूर, और हल्दी लगाई जाती है. अष्टगंध लगाकर महाराजा को हार और फूल अर्पित किए जाते हैं.

3. दीपक और धूप: धूप, अगरबत्ती और शुद्ध गाय के घी का दीपक जलाया जाता है.

4. पाठ और नामजप: पूजा के बाद दत्त महाराजा का नामजप करें. Datta Jayanti दत्त संप्रदाय से संबंधित ग्रंथ जैसे दत्त बावनी, गुरुचरित्र (अध्याय 16 और 18), गुरुलीलामृत, और स्वामी चरित्र सारामृत पढ़ना फलदायी माना जाता है. कुछ स्थानों पर, ‘अवधूत गीता’ और ‘जीवमुक्त गीता’ का पाठ भी किया जाता है.

5. मंत्र जप: मन और आत्मा की शुद्धि के लिए मंत्रों Datta Jayanti का जाप करें, जैसे: ‘श्रीगुरु दत्तात्रेय नमः’, ‘ओम श्री गुरुदेव दत्त’, या ‘हरी ओम तत्सत् जय गुरु दत्त’.

6. परिक्रमा और प्रसाद: पूजा शुरू होने के बाद, भक्त देवता की मूर्ति की सात बार परिक्रमा करते हैं. इसके बाद आरती करें और लोगों में प्रसाद बांटें.

7. नैवेद्य: दत्त महाराजा को नैवेद्य में पूरणपोळी या कोई पीली मिठाई या फल चढ़ाए जा सकते हैं.

गुरुचरित्र पारायण और उपवास:Gurucharitra Parayan and fasting

कई दत्त भक्त इस अवसर पर श्री गुरुचरित्र ग्रंथ का पारायण करते हैं. Datta Jayanti यह पारायण दत्त जयंती से सात दिन पहले शुरू किया जाता है और पौर्णिमा (दत्त जयंती) के दिन समाप्त होना चाहिए.

पारायण की समाप्ति के बाद, एक विवाहित जोड़े को घर बुलाकर भोजन कराना चाहिए, साथ ही गाय को भी नैवेद्य खिलाना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन, दान-दक्षिणा देनी चाहिए.

कुछ भक्त इस दिन उपवास भी करते हैं. Datta Jayanti उपवास के दौरान, शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनाए रखने के लिए अनाज और पका हुआ भोजन खाने से बचना चाहिए, इसके बजाय दूध, फल और अन्य सात्विक पदार्थ खाए जाते हैं. कई भक्त ‘निर्जला व्रत’ भी करते हैं (बिना खाए या पानी पिए).

दत्तात्रेय जयंती 2025 के लाभ:Benefits of Dattatreya Jayanti 2025

जब कोई व्यक्ति पूरे समर्पण के साथ भगवान दत्तात्रेय की पूजा करता है Datta Jayanti और व्रत करता है, तो उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

यह जयंती जीवन की मुख्य समस्याओं को हल करने में मदद कर सकती है और व्यक्ति की सफलता में आने वाली बाधाओं को दूर कर सकती है.

यह पर्व भक्तों को एकाग्रता की शक्ति प्रदान करता है और नई चीजें सीखने की उनकी क्षमता में सुधार करता है.

भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से अहंकार दूर होता है, Datta Jayanti और व्यक्ति सभी के लिए करुणा, Datta Jayanti प्रेम और देखभाल के साथ व्यवहार करने लगता है.

दत्तात्रेय उपनिषद के अनुसार, पूजा और उपवास से अनुयायियों की भौतिक और संपत्ति की इच्छाएं पूरी होती हैं.

भगवान दत्तात्रेय ग्रहों के दुखों को दूर करने, मानसिक दुःख दूर करने और पूर्वजों की समस्याओं को हल करने में मदद करते हैं.

यह त्योहार भक्तों को भगवान के ज्ञान और मार्गदर्शन की तलाश करने और शांति, एकाग्रता, ज्ञान और आध्यात्मिक विकास से भरा जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *