Khatu Shyam खाटू श्याम मंदिर भारत के राजस्थान राज्य के सीकर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर भगवान श्याम को समर्पित है, जो भगवान कृष्ण के एक रूप हैं। मंदिर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और यहाँ से आसपास का दृश्य बहुत ही सुंदर है।
मंदिर की वास्तुकला बहुत ही सुंदर और आकर्षक है। मंदिर का मुख्य द्वार बहुत ही भव्य है और इसके ऊपर भगवान श्याम की एक सुंदर प्रतिमा है। मंदिर के अंदर भगवान श्याम की एक विशाल प्रतिमा है, जो बहुत ही आकर्षक है। मंदिर में भगवान श्याम के अलावा भगवान कृष्ण, राधा और अन्य देवी-देवताओं की भी प्रतिमाएँ हैं।
मंदिर में हर साल लाखों भक्त आते हैं। विशेष रूप से, हर साल फाल्गुन माह में आयोजित होने वाले खाटू मेले में लाखों भक्त आते हैं। मेले में भक्त भगवान श्याम से अपनी मनोकामनाएँ पूरी करने की प्रार्थना करते हैं।
कौन हैं बाबा खाटू श्याम Khatu Shyam
बाबा खाटू श्याम भगवान कृष्ण के एक रूप हैं। वे महाभारत के पात्र घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक के अवतार माने जाते हैं। बर्बरीक में बचपन से ही वीर और महान योद्धा के गुण थे और इन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे तीन अभेद्य बाण प्राप्त किए थे। इसी कारण इन्हें तीन बाण धारी भी कहा जाता है।
क्या है मान्यता
इस मंदिर की एक बहुत ही खास और अनोखी बात प्रचलित है। कहा जाता है कि जो भी इस मंदिर में जाता है इसे बाबा श्याम का हर बार एक नया रूप देखने को मिलता है। कई लोगों को उनके आकार में भी बदलाव नजर आता है।
बर्बरीक कैसे बने खाटू श्याम
महाभारत के युद्ध से पहले, घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने भगवान कृष्ण से वरदान मांगा कि वह युद्ध में दोनों पक्षों का नाश न करे, बल्कि केवल अधर्म का नाश करे। भगवान कृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया, लेकिन युद्ध में दोनों पक्षों के बीच समानता बनाए रखने के लिए, उन्होंने बर्बरीक से अपना शीश दान करने को कहा।
महाभारत के युद्ध के दौरान बर्बरीक ने अपनी माता अहिलावती के समक्ष इस युद्ध में जाने की इच्छा प्रकट की। जब मां ने इसकी अनुमति दे दी तो उन्होंने माता से पूछा, ‘मैं युद्ध में किसका साथ दूं?’ इस प्रश्न पर माता ने विचार किया कि कौरवों के साथ तो विशाल सेना, स्वयं भीष्म पितामह, गुरु द्रोण, कृपाचार्य, अंगराज कर्ण जैसे महारथी हैं, इनके सामने पांडव अवश्य ही हार जाएंगे। इसलिए उन्होंने बर्बरीक से कहा कि ‘जो हार रहा हो, तुम उसी का सहारा बनो।’
खाटू श्याम कैसे बने हारे का सहारा
युद्ध की समाप्ति के बाद सभी पांडव विजय का श्रेय अपने ऊपर लेने लगे। आखिरकार निर्णय के लिए सभी श्रीकृष्ण के पास गए तो वह बोले, ‘‘मैं तो स्वयं व्यस्त था इसलिए मैं किसी का पराक्रम नहीं देख सका। ऐसा करते हैं, सभी बर्बरीक के पास चलते हैं।’’ वहां पहुंच कर भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे पांडवों के पराक्रम के बारे में पूछा तो बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया, ‘‘भगवन युद्ध में आपका सुदर्शन चक्र नाच रहा था और जगदम्बा लहू का पान कर रही थीं, मुझे तो ये लोग कहीं भी नजर नहीं आए।’’बर्बरीक का उत्तर सुन सभी की नजरें नीचे झुक गईं। तब श्रीकृष्ण ने उनसे प्रसन्न होकर इनका नाम श्याम रख दिया।
अपनी कलाएं एवं अपनी शक्तियां प्रदान करते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि, ‘‘बर्बरीक धरती पर तुम से बड़ा दानी न तो कोई हुआ है और न ही होगा। मां को दिए वचन के अनुसार, तुम हारने वाले का सहारा बनोगे। लोग तुम्हारे दरबार में आकर जो भी मांगें उन्हें मिलेगा।’’ इस तरह से खाटू श्याम मंदिर अस्तित्व में आया।