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- Create Date November 25, 2023
- Last Updated November 25, 2023
बिल्वाष्टकम् एक संस्कृत स्तोत्र है, जिसकी रचना 12वीं शताब्दी में भक्तिकाल के कवि, नंददास ने की थी। यह स्तोत्र बिल्व पत्र की महिमा का वर्णन करता है।
बिल्वाष्टकम् के 8 श्लोक हैं, और प्रत्येक श्लोक में 8 चरणों होते हैं।
नंददास एक महान भक्ति संत थे। वे भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। बिल्वाष्टकम् में नंददास बिल्व पत्र के रूप, गुणों और शक्तियों की प्रशंसा करते हैं। वे बिल्व पत्र को भगवान शिव का प्रिय मानते हैं।
बिल्वाष्टकम् एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है, जो बिल्व पत्र की महिमा का अनुभव कराता है।
बिल्वाष्टकम् के कुछ महत्वपूर्ण विचार इस प्रकार हैं:
Bilvashtaka
- बिल्व पत्र भगवान शिव का प्रिय है।
- बिल्व पत्र सभी पापों को दूर करने वाला है।
- बिल्व पत्र सभी रोगों को दूर करने वाला है।
- बिल्व पत्र सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है।
बिल्वाष्टकम् हिंदू धर्म में एक अमूल्य धरोहर है। यह स्तोत्र बिल्व पत्र की पूजा के लिए प्रेरित करता है।
बिल्वाष्टकम् के कुछ प्रसिद्ध श्लोक इस प्रकार हैं:
- "हे बिल्व पत्र, आप भगवान शिव के प्रिय हैं। आप सभी पापों को दूर करने वाले हैं। आप सभी रोगों को दूर करने वाले हैं। आप सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं।"
- "मैं बिल्व पत्र की पूजा करता हूँ। मैं बिल्व पत्र से प्रार्थना करता हूँ कि वह मुझे सभी पापों से मुक्त करे। वह मुझे सभी रोगों से मुक्त करे। वह मुझे सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करे।"
बिल्वाष्टकम् के 8 श्लोक इस प्रकार हैं:
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम् त्रिजगतां हिताय त्रिभुवननाथार्पणम्।
प्रयागमाधवं दृष्ट्वा एक बिल्वं शिवार्पणम् प्रयागस्य माहात्म्यं श्रुत्वा बिल्वस्य महत्त्वम्।
अघोरपापसंहारं एक बिल्वं शिवार्पणम् अघोरपापसंहारं बिल्ववृक्षस्य दर्शनम्।
मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे अग्रतः शिवरूपाय एक बिल्वं शिवार्पणम्।
त्रिगुणात्मिका देवता त्रैलोक्येश्वरो हरिः त्रिनेत्रा त्रिशूलधारी त्रिभुवननाथो हरिः।
गंगाधरो गौरीश च नन्दीश्वरो हरिः त्रिभुवननाथार्पणं बिल्ववृक्षस्य दर्शनम्।
Bilvashtaka
अर्थ:
- "हे बिल्व पत्र, आप तीन पत्तों वाले हैं, तीन गुणों (सत्त्व, रज और तम) के प्रतीक हैं, तीन नेत्रों वाले हैं, और तीन आयुधों (त्रिशूल, डमरू और दंड) वाले हैं। आप तीनों लोकों के लिए कल्याणकारी हैं, और आप तीनों लोकों के स्वामी भगवान शिव को अर्पित हैं।"
- "मैं प्रयागराज में भगवान शिव के दर्शन करता हूँ, और एक बिल्व पत्र उन्हें अर्पित करता हूँ। मैं प्रयागराज की महानता को सुनता हूँ, और बिल्व पत्र की महत्ता को भी जानता हूँ।"
- "हे बिल्व पत्र, आप सभी पापों को दूर करने वाले हैं, और आप तीनों लोकों के स्वामी भगवान शिव को अर्पित हैं। आप सभी पापों को दूर करने वाले हैं, और बिल्व वृक्ष के दर्शन भी पापों को दूर करने वाले हैं।"
- "हे बिल्व पत्र, आप ब्रह्म, विष्णु और शिव के रूप में त्रिगुणात्मिका देवता हैं। आप तीनों लोकों के स्वामी हैं, और आप तीनों नेत्रों वाले हैं, और आप त्रिशूलधारी हैं।"
- **"हे बिल्व पत्र, आप भगवान शिव के प्रिय हैं। आप तीनों लोकों के स्वामी हैं, और आप तीनों नेत्रों वाले
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