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- Create Date November 22, 2023
- Last Updated November 22, 2023
Srigirirajdharyashtakam
श्री गिरिराजधार्याष्टकम् एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान कृष्ण की स्तुति में रचित है। यह स्तोत्र 12वीं शताब्दी के भक्ति संत, श्री वल्लभाचार्य द्वारा रचित है।
स्तोत्र के प्रारंभ में, भगवान कृष्ण को गिरिराज पर्वत का धारक बताया गया है। उन्हें एक शक्तिशाली योद्धा और एक करुणामयी देवता के रूप में वर्णित किया गया है।
स्तोत्र में भगवान कृष्ण की कई लीलाओं का उल्लेख किया गया है। उदाहरण के लिए, उन्हें कंस का वध करने, गोपियों के साथ प्रेमलीला करने और राधा को प्राप्त करने के लिए जाना जाता है।
स्तोत्र का अंत इस प्रकार है:
इति श्री गिरिराजधार्याष्टकं संपूर्णम्
यः पठेत् स एव भवेत् गोपालप्रियः सर्वेश्वरो भवेत् स एव मोक्षवान्
इस प्रकार, यह स्तोत्र भगवान कृष्ण की स्तुति करने का एक शक्तिशाली तरीका है। यह स्तोत्र भक्ति, ज्ञान और मोक्ष प्राप्त करने के लिए भी लाभकारी माना जाता है।
यहां स्तोत्र का हिंदी अनुवाद दिया गया है:
श्री गिरिराजधार्याष्टक का अंत
इस प्रकार श्री गिरिराजधार्याष्टक पूर्ण हुआ। जो इसे पढ़ता है, वह गोपाल का प्रिय होता है। वह सर्वेश्वर होता है, वह मोक्ष प्राप्त करता है।
श्री गिरिराजधार्याष्टक एक भक्तिपूर्ण और प्रेरणादायक स्तोत्र है। यह स्तोत्र कृष्ण की शक्ति, प्रेम और करुणा को प्रकट करता है।
Srigirirajdharyashtakam
स्तोत्र के कुछ प्रमुख छंद निम्नलिखित हैं:
- **"गिरिराज धारी बलवान्,
- **मुरलीधर मधुर बानी।
- **गोपियाँ रास में थिरकें,
- कृष्ण नटवर मनोहर।"
इन छंदों में, कृष्ण को एक शक्तिशाली योद्धा और एक करुणामयी देवता के रूप में वर्णित किया गया है। वे कहते हैं कि कृष्ण की मुरली की धुन सुनकर गोपियाँ रास में थिरकती हैं।
- **"कंस वध कर प्रभु ने,
- **दुष्टों को परास्त किया।
- **राधा रानी को प्राप्त कर,
- कृष्ण ने प्रेम का उदय किया।"
इन छंदों में, कृष्ण की कई लीलाओं का उल्लेख किया गया है। वे कहते हैं कि कृष्ण ने कंस का वध करके दुष्टों को परास्त किया और राधा रानी को प्राप्त करके प्रेम का उदय किया।
श्री गिरिराजधार्याष्टक एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है जो भगवान कृष्ण की भक्ति और उनके गुणों को प्रकट करता है।
श्रीगीतावली २ Shree Geetavali 2
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