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- Create Date November 16, 2023
- Last Updated November 16, 2023
अच्युताष्टकम् ३
१॥ विश्वमङ्गल विभो जगदीश नन्दनन्दन नृसिंह नरेन्द्र ।
२॥ रामचन्द्र रघुनायक देव दीननाथ दुरितक्षयकारिन् ।
३॥ देवकीतनय दुःखदवाग्ने राधिकारमण रम्यसुमूर्ते ।
४॥ गोपिकावदनचन्द्रचकोर नित्य निर्गुण निरञ्जन जिष्णो ।
५॥ गोकुलेश गिरिधारण धीर यामुनाच्छतटखेलनवीर ।
६॥ द्वारकाधिप दुरन्तगुणाब्धे प्राणनाथ परिपूर्ण भवारे ।
Achyutashtakam 3
अर्थ:
१॥ हे विश्वमंगलकारी, हे विभो, हे जगदीश, हे नंदनंदन, हे नृसिंह, हे नरेन्द्र ।
२॥ हे रामचन्द्र, हे रघुनायक, हे देव, हे दीननाथ, हे दुरितक्षयकारी ।
३॥ हे देवकीतनय, हे दुःखदवाग्ने, हे राधिकारमण, हे रम्यसुंदर स्वरूप ।
४॥ हे गोपिकावदनचंद्रचकोर, हे नित्य निर्गुण, हे निरञ्जन, हे जिष्णु ।
५॥ हे गोकुलेश, हे गिरिधारण धीर, हे यमुनाच्छतटखेलनवीर ।
६॥ हे द्वारकाधिप, हे दुरन्तगुणाब्धे, हे प्राणनाथ, हे परिपूर्ण भवारे ।
अच्युताष्टकम् एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान विष्णु की स्तुति करता है। यह स्तोत्र १५वीं शताब्दी के भक्त कवि, तुलसीदास द्वारा रचित है।
स्तोत्र के पहले छः श्लोकों में, तुलसीदास भगवान विष्णु के विभिन्न नामों और गुणों की स्तुति करते हैं। वे भगवान विष्णु को विश्वमंगलकारी, जगदीश, नंदनंदन, नृसिंह, रामचन्द्र, रघुनायक, देव, दीननाथ, दुरितक्षयकारी, देवकीतनय, दुःखदवाग्ने, राधिकारमण, गोपिकावदनचंद्रचकोर, नित्य निर्गुण, निरञ्जन, जिष्णु, गोकुलेश, गिरिधारण धीर, यमुनाच्छतटखेलनवीर, द्वारकाधिप और दुरन्तगुणाब्धे आदि नामों से पुकारते हैं।
चौथे श्लोक में, तुलसीदास भगवान विष्णु को नित्य निर्गुण और निरञ्जन कहते हैं। वे कहते हैं कि भगवान विष्णु में कोई गुण नहीं हैं, वे निर्गुण हैं। वे कहते हैं कि भगवान विष्णु में कोई आकार नहीं है, वे निरञ्जन हैं।
पांचवें श्लोक में, तुलसीदास भगवान विष्णु को गोकुलेश कहते हैं। वे कहते हैं कि भगवान विष्णु गोकुल के स्वामी हैं। वे कहते हैं कि भगवान विष्णु गिरिधारण धीर हैं, वे पर्वतों को धारण करने में समर्थ हैं। वे कहते हैं कि भगवान विष्णु यमुनाच्छतट पर खेलने वाले वीर हैं।
छठे श्लोक में, तुलसीदास भगवान विष्णु को द्वारकाधिप कहते हैं। वे कहते हैं कि भगवान विष्णु द्वारका के राजा हैं। वे कहते हैं कि भगवान विष्णु में अनेक गुण हैं, वे दुरन्तगुणाब्धे हैं। वे कहते हैं कि भगवान विष्णु प्राणनाथ हैं, वे सभी प्राणियों के नाथ हैं। वे कहते हैं कि भगवान विष्णु परिपूर्ण भवारे हैं, वे पूर्ण ब्रह्म हैं।
अच्युताष्टकम् एक सुंदर और भावपूर्ण स्तोत्र है जो भगवान विष्णु की स्तुति करता है। यह स्तोत्र भक्तों को भगवान विष्णु के प्रति प्रेम और भक्ति उत्पन्न करने में सहायता करता है।
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