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  • Create Date November 8, 2023
  • Last Updated July 29, 2024

श्रीसरवेश्वरप्रपन्नस्तोत्रम् एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान शिव की स्तुति में लिखा गया है। इस स्तोत्र की रचना 14वीं शताब्दी में श्रीपादाचार्य नामक एक संत ने की थी।

श्रीसरवेश्वरप्रपन्नस्तोत्रम् में, श्रीपादाचार्य भगवान शिव को सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी, और सर्वज्ञ मानते हैं। वे भगवान शिव को सभी जीवों के कल्याणकर्ता मानते हैं। वे स्वयं को भगवान शिव का अनन्य भक्त बताते हैं।

श्रीसरवेश्वरप्रपन्नस्तोत्रम् में, श्रीपादाचार्य भगवान शिव की स्तुति करते हुए कहते हैं:

shreesarveshvaraprapattistotram

नमस्ते रुद्राय नमस्ते शम्भवे नमस्ते महेश्वराय।

नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते शिवाय शंभो।

अर्थ:

हे रुद्र, हे शम्भु, हे महेश्वर, हे शिव, मैं आपको नमस्कार करता हूं।

श्रीसरवेश्वरप्रपन्नस्तोत्रम् एक सुंदर और भावपूर्ण स्तोत्र है जो भगवान शिव की भक्ति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

श्रीसरवेश्वरप्रपन्नस्तोत्रम् की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं:

नमस्ते त्रिपुरांतकारी, नमस्ते त्रिलोकेशाय।

नमस्ते करुणाकराय, नमस्ते सर्वाधाराय।

अर्थ:

हे त्रिपुर का अंत करने वाले, हे त्रिलोक के स्वामी, हे करुणा के सागर, हे सभी का आधार, मैं आपको नमस्कार करता हूं।

श्रीसरवेश्वरप्रपन्नस्तोत्रम् एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्तोत्र है जो भगवान शिव के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है।

श्रीसरवेश्वरप्रपन्नस्तोत्रम् के 10 श्लोक हैं। प्रत्येक श्लोक में, श्रीपादाचार्य भगवान शिव की एक विशेष विशेषता की स्तुति करते हैं।

श्रीसरवेश्वरप्रपन्नस्तोत्रम् के 10 श्लोकों का सार इस प्रकार है:

पहला श्लोक: श्रीपादाचार्य भगवान शिव को सर्वशक्तिमान मानते हैं। वे कहते हैं कि भगवान शिव ही जगत के सृजन, पालन, और संहार के कर्ता हैं।

दूसरा श्लोक: श्रीपादाचार्य भगवान शिव को सर्वव्यापी मानते हैं। वे कहते हैं कि भगवान शिव ही समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त हैं।

तीसरा श्लोक: श्रीपादाचार्य भगवान शिव को सर्वज्ञ मानते हैं। वे कहते हैं कि भगवान शिव ही सभी कुछ जानते हैं।

चौथा श्लोक: श्रीपादाचार्य भगवान शिव को सभी जीवों के कल्याणकर्ता मानते हैं। वे कहते हैं कि भगवान शिव ही सभी जीवों को सुख और मुक्ति प्रदान करते हैं।

पाँचवाँ श्लोक: श्रीपादाचार्य स्वयं को भगवान शिव का अनन्य भक्त बताते हैं। वे कहते हैं कि वे केवल भगवान शिव की ही भक्ति करते हैं।

छठा श्लोक: श्रीपादाचार्य भगवान शिव से अपने सभी पापों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। वे कहते हैं कि वे भगवान शिव के चरणों में शरण लेते हैं।

सातवाँ श्लोक: श्रीपादाचार्य भगवान शिव से अपने जीवन में सफलता की प्रार्थना करते हैं। वे कहते हैं कि वे भगवान शिव की कृपा से सभी कार्यों में सफल होंगे।

आठवाँ श्लोक: श्रीपादाचार्य भगवान शिव से अपने जीवन में सुख और शांति की प्रार्थना करते हैं। वे कहते हैं कि वे भगवान शिव की कृपा से हमेशा सुखी और शांतिपूर्ण रहेंगे।

नवाँ श्लोक: श्रीपादाचार्य भगवान शिव से अपने जीवन में ज्ञान और विवेक की प्रार्थना करते हैं। वे कहते हैं कि वे भगवान शिव की कृपा से हमेशा ज्ञानी और विवेकशील रहेंगे।

दसवाँ श्लोक: श्रीपादाचार्य भगवान शिव से अपने जीवन में मोक्ष की प्रार्थना करते हैं। वे कहते हैं कि वे भगवान शिव की कृपा से अंत में मोक्ष प्राप्त करेंगे।

श्रीसरवेश्वरप्रपन्नस्तोत्रम् एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्तोत्र है जो भगवान शिव के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है। यह स्तोत्र भगवान शिव की महिमा और उनकी भक्ति के महत्व को


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