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  • Create Date October 30, 2023
  • Last Updated October 30, 2023

नित्यानंदष्टकम् एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान श्रीकृष्ण के परम मित्र और भक्त, नित्यानंद प्रभु की स्तुति करता है। यह स्तोत्र 16वीं शताब्दी के वैष्णव संत और कवि रूपगोस्वामी द्वारा रचित था।

स्तोत्र के आठ श्लोक हैं, प्रत्येक श्लोक में नित्यानंद प्रभु के एक विशेष गुण या पहलू की स्तुति की गई है।

Nityanandashtakam

स्तोत्र के कुछ महत्वपूर्ण पहलू

  • स्तोत्र नित्यानंद प्रभु की सुंदरता, बुद्धिमत्ता, शक्ति, दया और प्रेम की महिमा का बखान करता है।
  • स्तोत्र नित्यानंद प्रभु की कृष्ण भक्ति की गहराई को दर्शाता है।
  • स्तोत्र नित्यानंद प्रभु की आध्यात्मिकता का वर्णन करता है।

स्तोत्र का महत्व

नित्यानंदष्टकम् एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो नित्यानंद प्रभु की महिमा का प्रचार करता है। यह स्तोत्र नित्यानंद प्रभु की भक्ति और समर्पण की भावना को बढ़ावा देता है, और यह भक्तों को नित्यानंद प्रभु के साथ एक करीबी संबंध बनाने में मदद कर सकता है।

स्तोत्र के पाठ से लाभ

नित्यानंदष्टकम् के पाठ से भक्तों को निम्नलिखित लाभ प्राप्त हो सकते हैं:

  • नित्यानंद प्रभु के प्रति भक्ति और समर्पण की भावना बढ़ती है।
  • मन को शांति और आनंद मिलता है।
  • जीवन में सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है।
  • मोक्ष प्राप्ति की संभावना बढ़ती है।

स्तोत्र का पाठ कैसे करें

नित्यानंदष्टकम् का पाठ करने के लिए, भक्तों को निम्नलिखित चरणों का पालन करना चाहिए:

  1. एक स्वच्छ और शांत स्थान चुनें।
  2. एक चौकी पर बैठें और अपने सामने एक चित्र या मूर्ति रखें।
  3. स्तोत्र का पाठ करना शुरू करें।
  4. प्रत्येक श्लोक को ध्यान से पढ़ें और अर्थ समझने की कोशिश करें।
  5. स्तोत्र का पाठ पूरे दिन में कई बार कर सकते हैं।

नित्यानंदष्टकम् एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो नित्यानंद प्रभु की महिमा का प्रचार करता है। यह स्तोत्र नित्यानंद प्रभु की भक्ति और समर्पण की भावना को बढ़ावा देता है, और यह भक्तों को नित्यानंद प्रभु के साथ एक करीबी संबंध बनाने में मदद कर सकता है।

स्तोत्र के कुछ उदाहरण

  • श्लोक 1:

नित्यानंदं नित्यं मधुसूदनं कृष्णं वंदे

हे नित्य आनंदमय, हे नित्य मधुसूदन, हे कृष्ण, मैं आपको नमस्कार करता हूं।

  • श्लोक 2:

कृष्णप्रियं नित्यं गोपिकासेवीं गोपालं वंदे

हे कृष्ण के प्रिय, हे नित्य गोपियों के सेवक, हे गोपाल, मैं आपको नमस्कार करता हूं।

  • श्लोक 3:

गोवर्धनधनुं तोरणं रचितं नित्यं वंदे

हे नित्य गोवर्धनधनुं तोरण, मैं आपको नमस्कार करता हूं।

  • श्लोक 8:

कृष्णभक्तानां नाथं नित्यं वंदे

हे कृष्ण भक्तों के नाथ, मैं आपको नमस्कार करता हूं।

स्तोत्र का अर्थ

नित्यानंदष्टकम् का अर्थ है "नित्यानंद प्रभु की आठ स्तुतियाँ"। स्तोत्र में, नित्यानंद प्रभु के बाल रूप, उनकी कृष्ण भक्ति और उनकी आध्यात्मिकता की महिमा का बखान किया गया है। स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को नित्यानंद प्रभु के प्रति गहरी भक्ति और समर्पण की भावना विकसित करने में मदद मिल सकती है।

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