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- Create Date October 30, 2023
- Last Updated October 30, 2023
Govindarajstuti (Sudarshanvaradnarayandaskrita)
गोविन्दराजस्तुति (सुदर्शनवरदनारायणदृष्टा) एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान कृष्ण की स्तुति करता है। यह स्तोत्र 17वीं शताब्दी के वैष्णव संत और दार्शनिक सुदर्शनवरदनारायण द्वारा लिखा गया था।
स्तोत्र का प्रारंभ भगवान कृष्ण के रूप और गुणों के वर्णन से होता है। स्तोत्र में भगवान कृष्ण को एक बालक के रूप में वर्णित किया गया है, जो अपने रूप और गुणों से सभी को मोहित करते हैं।
गोविन्दराजस्तुति का पाठ करने से भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र भक्तों को भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति को बढ़ावा देता है।
गोविन्दराजस्तुति के 10 श्लोक इस प्रकार हैं:
1. गोविन्दराजाय नमः । गोपीवल्लभाय नमः । कृष्णाय नमः ।
अर्थ:
गोविन्दराज को नमस्कार, गोपीवल्लभ को नमस्कार, कृष्ण को नमस्कार।
2. श्यामसुन्दरं मधुसूदनं । वृन्दावनवासिनं । राधाकृष्णं नमामि ।
अर्थ:
श्यामसुन्दर, मधुसूदन, वृन्दावनवासी, राधाकृष्ण को मैं नमस्कार करता हूं।
3. यस्य नामोच्चारणमात्रेण । पापमोक्षो भवेत् । तस्मै कृष्णाय नमामि ।
अर्थ:
जिसका नामोच्चारणमात्र से, पापों से मुक्ति मिलती है, उस कृष्ण को मैं नमस्कार करता हूं।
4. वंशीवादिनं मुरलीधरं । गोपीवल्लभाय नमः । कृष्णाय नमः ।
अर्थ:
वंशी बजाने वाले, मुरलीधर, गोपीवल्लभ को नमस्कार, कृष्ण को नमस्कार।
5. यस्य दर्शनमात्रेण । मोहजालभंजनं । तस्मै कृष्णाय नमामि ।
अर्थ:
जिसके दर्शनमात्र से, मोहजाल का भंजन होता है, उस कृष्ण को मैं नमस्कार करता हूं।
6. गोपियों के साथ रास खेलने वाले । कृष्ण को मैं नमस्कार करता हूं।
7. राधिका के साथ प्रेम लीला करने वाले । कृष्ण को मैं नमस्कार करता हूं।
8. समस्त लोकों के स्वामी । कृष्ण को मैं नमस्कार करता हूं।
9. सर्वव्यापी । कृष्ण को मैं नमस्कार करता हूं।
10. सर्वशक्तिमान । कृष्ण को मैं नमस्कार करता हूं।
गोविन्दराजस्तुति एक बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति को बढ़ावा देता है।
Govindarajstuti (Sudarshanvaradnarayandaskrita)
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