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  • Create Date October 27, 2023
  • Last Updated October 27, 2023

श्रीहरिकुसुमस्तव एक भक्तिपूर्ण स्तोत्र है जो भगवान कृष्ण के रूप और गुणों की स्तुति करता है। यह स्तोत्र भगवान कृष्ण को एक कुसुम के रूप में वर्णित करता है, जो सौंदर्य और प्रेम का प्रतीक है। श्रीहरिकुसुमस्तव की रचना श्रीकृष्ण भक्त स्वामी हरिदास जी द्वारा की गई थी।

श्रीहरिकुसुमस्तव में 10 श्लोक हैं। प्रत्येक श्लोक में, भक्त भगवान कृष्ण की एक अलग विशेषता की स्तुति करते हैं।

प्रथम श्लोक में, भक्त भगवान कृष्ण को "कुसुम" कहते हैं, जिसका अर्थ है कि वे सुंदर और आकर्षक हैं।

दूसरे श्लोक में, भक्त भगवान कृष्ण को "सर्वगुणसम्पन्न" कहते हैं, जिसका अर्थ है कि उनमें सभी गुण मौजूद हैं।

तीसरे श्लोक में, भक्त भगवान कृष्ण को "सर्वस्वमूर्ति" कहते हैं, जिसका अर्थ है कि वे सब कुछ हैं।

चौथे श्लोक में, भक्त भगवान कृष्ण को "सर्वप्रेरक" कहते हैं, जिसका अर्थ है कि वे सभी कार्यों को प्रेरित करते हैं।

पाँचवें श्लोक में, भक्त भगवान कृष्ण को "सर्वव्यापी" कहते हैं, जिसका अर्थ है कि वे सभी जगह मौजूद हैं।

छठे श्लोक में, भक्त भगवान कृष्ण को "सर्वज्ञ" कहते हैं, जिसका अर्थ है कि वे सब कुछ जानते हैं।

सातवें श्लोक में, भक्त भगवान कृष्ण को "सर्वशक्तिमान" कहते हैं, जिसका अर्थ है कि वे सब कुछ कर सकते हैं।

आठवें श्लोक में, भक्त भगवान कृष्ण को "नित्यहंस" कहते हैं, जिसका अर्थ है कि वे हमेशा ज्ञान और आनंद में डूबे रहते हैं।

नवें श्लोक में, भक्त भगवान कृष्ण को "अनन्त" कहते हैं, जिसका अर्थ है कि वे कभी समाप्त नहीं होते हैं।

दसवें श्लोक में, भक्त भगवान कृष्ण से प्रार्थना करते हैं कि वे उन्हें अपने प्रेम और आशीर्वाद से भर दें।

श्रीहरिकुसुमस्तव एक शक्तिशाली भक्तिपूर्ण अभ्यास है जो भक्तों को भगवान कृष्ण के प्रेम और सौंदर्य को प्राप्त करने में मदद कर सकता है। यह स्तोत्र भक्तों को भगवान कृष्ण के साथ एक गहरी आध्यात्मिक संबंध विकसित करने में भी मदद कर सकता है।

shreeharikusumastvah

श्रीहरिकुसुमस्तव के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं:

  • यह स्तोत्र भगवान कृष्ण के रूप और गुणों की स्तुति करता है।
  • यह स्तोत्र एक शक्तिशाली भक्तिपूर्ण अभ्यास है।
  • यह स्तोत्र भक्तों को भगवान कृष्ण के प्रेम और सौंदर्य को प्राप्त करने में मदद कर सकता है।

यहाँ श्रीहरिकुसुमस्तव के कुछ श्लोकों का अनुवाद दिया गया है:

श्लोक 1

अर्थ:

हे कुसुम, हे सर्वगुणसम्पन्न, हे सर्वस्वमूर्ति, हे सर्वप्रेरक, हे सर्वव्यापी, हे सर्वज्ञ, हे सर्वशक्तिमान, हे नित्यहंस, हे अनन्त, कृपा करके मुझे अपने प्रेम और आशीर्वाद से भर दें।

श्लोक 2

अर्थ:

हे भगवान कृष्ण, आप एक कुसुम के रूप में हैं, जो सौंदर्य और प्रेम का प्रतीक है। आप मेरे जीवन को सुंदर और आनंदमय बनाते हैं।

श्लोक 3

अर्थ:

हे भगवान कृष्ण, आप मेरे लिए सब कुछ हैं। आप मेरे प्रेम, मेरे आनंद और मेरे उद्देश्य हैं।

श्रीहरिकुसुमस्तव एक सुंदर और भावपूर्ण स्तोत्र है जो भगवान कृष्ण के प्रेम और सौंदर्य की महिमा का वर्णन करता है। यह स्तोत्र भक्तों को भगवान कृष्ण के प्रेम और सौंदर्य को प्राप्त करने में मदद कर सकता है।


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