- Version
- Download 144
- File Size 0.00 KB
- File Count 1
- Create Date October 22, 2023
- Last Updated July 29, 2024
हाटकेश्वर स्तोत्रम् भगवान शिव के एक रूप, हाटकेश्वर की स्तुति करता है। यह स्तोत्र भगवान शिव के सभी गुणों और शक्तियों की प्रशंसा करता है।
स्तोत्र की शुरुआत भगवान शिव की स्तुति से होती है। भक्त भगवान शिव को सर्वशक्तिमान, दयालु और कृपालु भगवान के रूप में स्तुति करते हैं। वे भगवान शिव से अपनी प्रार्थनाओं को सुनने और उनका आशीर्वाद देने के लिए कहते हैं।
स्तोत्र में भगवान शिव के विभिन्न रूपों और अवतारों की भी स्तुति की जाती है। भक्त भगवान शिव के रूपों को उनके गुणों और शक्तियों के प्रतीक के रूप में स्तुति करते हैं।
स्तोत्र की समाप्ति भगवान शिव के लिए प्रार्थना के साथ होती है। भक्त भगवान शिव से अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करने के लिए कहते हैं।
हाटकेश्वर स्तोत्र एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भक्तों को भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने में मदद कर सकता है। स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को अपने जीवन में आध्यात्मिक और भौतिक दोनों तरह के लाभ मिल सकते हैं।
स्तोत्र के लाभ:
- भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करें
- मार्गदर्शन और सुरक्षा प्राप्त करें
- आध्यात्मिक और भौतिक दोनों तरह के लाभ प्राप्त करें
- जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त करें
स्तोत्र का पाठ कैसे करें:
- स्तोत्र का पाठ करने से पहले, एक शांत और आरामदायक जगह खोजें।
- अपने हाथों को जोड़ें और भगवान शिव से प्रार्थना करें।
- स्तोत्र का पाठ करें, ध्यान से प्रत्येक शब्द का उच्चारण करें।
- स्तोत्र का पाठ करने के बाद, भगवान शिव से धन्यवाद दें।
स्तोत्र के कुछ महत्वपूर्ण श्लोक निम्नलिखित हैं:
- प्रथम श्लोक:
जटातटान्तरोल्लसत्सुरापगोर्मिभास्वरं ललाटनेत्रमिन्दुनाविराजमानशेखरम् । लसद्विभूतिभूषितं फणीन्द्रहारमीश्वरं नमामि नाटकेश्वरं भजामि हाटकेश्वरम् ॥
अर्थ:
मैं उस शिव को नमन करता हूँ, जो जटाओं से निकलते हुए प्रकाश से चमक रहा है, जिनके नेत्र लाल कमल के समान हैं, और जो चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण करते हैं। मैं उस शिव को नमन करता हूँ, जो विभूतियों से सुशोभित हैं, और जिनके गले में नागों की माला है।
- दूसरा श्लोक:
पुरान्धकादिदाहकं मनोभवप्रदाहकं महाघराशिनाशकं अभीप्सितार्थदायकम् । जगत्त्रयैककारकं विभाकरं विदारकं नमामि नाटकेश्वरं भजामि हाटकेश्वरम् ॥
अर्थ:
मैं उस शिव को नमन करता हूँ, जो पुराणों में वर्णित सभी अंधकार को जला देता है, जो मन की कामनाओं को जला देता है, जो महान दुखों को नष्ट करता है, और जो मनुष्य की सभी इच्छाओं को पूरा करता है। मैं उस शिव को नमन करता हूँ, जो तीनों लोकों का एकमात्र कारण है, और जो समस्त ब्रह्मांड को प्रकाशित करता है।
- तीसरा श्लोक:
मदीय मानसस्थले सदाऽस्तु ते पदद्वयं मदीय वक्त्रपङ्कजे शिवेति चाक्षरद्वयम् । मदीय लोचनाग्रतः सदाऽर्धचन्द्रविग्रहं नमामि नाटकेश्वरं भजामि हाटकेश्वरम् ॥
अर्थ:
मैं चाहता हूँ कि मेरे मन में हमेशा आपके दो पद हों, मेरे मुख पर "शिव" शब्द की दो अक्षर हों, और मेरे नेत्रों के सामने हमेशा आपका अर्धचंद्र रूप हो। मैं उस शिव को नमन करता हूँ, और मैं हाटकेश्वर की पूजा करता हूँ।
हाटकेश्वर स्तोत्र एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भक्तों को भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने में मदद कर सकता है। स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को अपने जीवन में आध्यात्मिक
Download