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- Create Date October 16, 2023
- Last Updated October 16, 2023
श्रीमुकुंदष्टकम्, जिसे श्रीमुकुंदष्टक भी कहा जाता है, भगवान कृष्ण की आठ श्लोकों वाली एक स्तुति है। यह स्तुति श्रीमद्भगवद्गीता के एक भक्त और विद्वान, श्रीमद्भागवताचार्य श्री रामकृष्ण भट्टाचार्य द्वारा रचित है।
श्रीमुकुंदष्टकम् में, श्री रामकृष्ण भट्टाचार्य भगवान कृष्ण की सुंदरता, प्रेम और दया का वर्णन करते हैं। वे उन्हें पूर्ण प्रेम के प्रतीक के रूप में देखते हैं, और वे भक्तों को उनके प्रेम में निमग्न होने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
श्रीमुकुंदष्टकम् के कुछ महत्वपूर्ण श्लोकों में शामिल हैं:
- पहला श्लोक: इस श्लोक में, श्री रामकृष्ण भट्टाचार्य भगवान कृष्ण की सुंदरता का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि उनके चेहरे पर प्रेम और करुणा का प्रकाश है।
- दूसरा श्लोक: इस श्लोक में, श्री रामकृष्ण भट्टाचार्य भगवान कृष्ण के प्रेम का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि उनका प्रेम इतना शक्तिशाली है कि यह सभी दुखों को दूर कर सकता है और सभी को आनंद दे सकता है।
- तीसरा श्लोक: इस श्लोक में, श्री रामकृष्ण भट्टाचार्य भक्तों को भगवान कृष्ण की भक्ति में निमग्न होने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वे कहते हैं कि उनकी भक्ति ही मोक्ष प्राप्त करने का एकमात्र तरीका है।
श्रीमुकुंदष्टकम् एक शक्तिशाली स्तुति है जो भक्तों को भगवान कृष्ण के प्रेम में निमग्न होने में मदद कर सकती है। यह भक्तों को प्रेम, आनंद और मोक्ष की प्राप्ति में मदद कर सकता है।
श्रीमुकुंदष्टकम् का पाठ करने के कई तरीके हैं। कुछ लोग इसे एक बार में सभी श्लोकों का पाठ करके करते हैं, जबकि अन्य इसे एक समय में एक श्लोक करके करते हैं। कुछ लोग इसे मंत्र की तरह दोहराते हैं, जबकि अन्य इसे एक भजन के रूप में गाते हैं।
श्रीमुकुंदष्टकम् का पाठ करने का सबसे अच्छा तरीका वह है जो आपके लिए सबसे अच्छा काम करता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि आपके पास एक भक्ति भाव हो और आप भगवान कृष्ण के श्लोकों का अर्थ समझने का प्रयास करें।
श्रीमुकुंदष्टकम् के श्लोक:
1. श्याम वर्ण, मुकुंद रूप, गोपियों के प्रिय, कृष्ण। कृपा करो, दर्शन दो, महाप्रभु, मैं शरणागत हूँ।
2. प्रेम के सागर, भक्तों के नाथ, मुझे अपना बना लो, मैं तुम्हारा हूँ। तुम ही मेरे आराध्य हो, तुम ही मेरे भगवान हो।
3. तुम्हारी भक्ति में मैं रम जाऊँ, तुम्हारे दर्शन से मैं आनंदित हो जाऊँ। तुम ही मेरे जीवन का आधार हो, तुम ही मेरे सब कुछ हो।
4. तुम ही हो पूर्ण प्रेम के सागर, तुम ही हो भक्तों के आधार। तुम ही हो मोक्ष के मार्ग, तुम ही हो मेरे सर्वस्व।
5. मैं तुम्हारी भक्ति में निमग्न रहूँ, तुमसे कभी अलग न होऊँ। तुम ही मेरे प्राण हो, तुम ही मेरे सब कुछ हो।
6. मैं तुम्हारा नाम जपता रहूँ, तुम्हारी कीर्तन करता रहूँ। तुम ही मेरे आराध्य हो, तुम ही मेरे भगवान हो।
7. मैं तुम्हारी कृपा से मोक्ष प्राप्त करूँ, और तुम्हारे श्रीचरणों में लीन रहूँ। तुम ही मेरे आराध्य हो, तुम ही मेरे भगवान हो।
8. मैं तुम्हारी भक्ति में निमग्न रहूँ, और तुम्हारे दर्शन पाऊँ। तुम ही मेरे आराध्य हो, तुम ही मेरे भगवान हो।
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