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- Create Date October 11, 2023
- Last Updated July 29, 2024
सरस्वतीदिस्तोत्रम् एक संस्कृत स्तोत्र है जो सरस्वती देवी की स्तुति करता है। यह स्तोत्र 10 श्लोकों में विभाजित है, प्रत्येक श्लोक में देवी सरस्वती के एक विशेष गुण या विशेषता की प्रशंसा की गई है।
सरस्वतीदिस्तोत्रम् की रचना 10वीं शताब्दी के कवि श्रीधर मिश्र ने की थी। यह स्तोत्र सरस्वती देवी की पूजा करने और उनकी कृपा प्राप्त करने का एक लोकप्रिय तरीका है।
यहां सरस्वतीदिस्तोत्रम् के कुछ श्लोक दिए गए हैं:
- श्लोक 1:
असुरान् विनाशयन्तीं देवि चंद्रांशुकोटिप्रभाम। शुद्धज्ञानप्रदां सरस्वतीं नमामि विभुताम्।।
अर्थ:
हे देवी, आप असुरों का नाश करने वाली हैं, आप चंद्रमा की किरणों के समान प्रकाशमान हैं, और आप शुद्ध ज्ञान प्रदान करती हैं। मैं आपको नमस्कार करता हूं, जो सभी गुणों से परिपूर्ण हैं।
- श्लोक 2:
अनन्यामब्जवासिनीं सरस्वतीं नमामि। वन्दे शारदायै विद्याधराम् कलारूपिणीम्।
अर्थ:
मैं उस सरस्वती देवी को नमस्कार करता हूं जो कमल पर विराजमान हैं, और मैं शारदा देवी को नमस्कार करता हूं जो ज्ञान और कला की देवी हैं।
- श्लोक 3:
ब्रह्मचारीण्यै भगवतीं नमामि। चंद्रकान्तिं वागीश्वरीं नमामि।
अर्थ:
मैं उस देवी को नमस्कार करता हूं जो ब्रह्मचर्य का पालन करती हैं, और मैं उस देवी को नमस्कार करता हूं जिनकी कांति चंद्रमा के समान है और जो वाणी की देवी हैं।
सरस्वतीदिस्तोत्रम् का पाठ करने के लिए, सबसे पहले एक शुद्ध स्थान पर बैठें और अपने सामने एक सरस्वती प्रतिमा या तस्वीर रखें। फिर, 10 बार स्तोत्र का जाप करें। जाप करते समय, अपनी आंखें बंद करें और देवी सरस्वती की छवि अपने मन में ध्यान करें।
सरस्वतीदिस्तोत्रम् का पाठ करने से ज्ञान, विद्या, बुद्धि, और कला में सफलता प्राप्त होती है। यह स्तोत्र छात्रों, शिक्षकों, और कलाकारों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।
यहां सरस्वतीदिस्तोत्रम् का पूरा पाठ दिया गया है:
सरस्वतीदिस्तोत्रम्
असुरान् विनाशयन्तीं देवि चंद्रांशुकोटिप्रभाम। शुद्धज्ञानप्रदां सरस्वतीं नमामि विभुताम्।।
अनन्यामब्जवासिनीं सरस्वतीं नमामि। वन्दे शारदायै विद्याधराम् कलारूपिणीम्।
ब्रह्मचारीण्यै भगवतीं नमामि। चंद्रकान्तिं वागीश्वरीं नमामि।
सुधाकररुचिं वीणापाणिं सुधाकररूचिं वीणापाणिं। सुधाकररूचिं वीणापाणिं नमामि सरस्वतीं॥
अर्थ:
हे देवी, आप असुरों का नाश करने वाली हैं, आप चंद्रमा की किरणों के समान प्रकाशमान हैं, और आप शुद्ध ज्ञान प्रदान करती हैं। मैं आपको नमस्कार करता हूं, जो सभी गुणों से परिपूर्ण हैं।
मैं उस सरस्वती देवी को नमस्कार करता हूं जो कमल पर विराजमान हैं, और मैं शारदा देवी को नमस्कार करता हूं जो ज्ञान और कला की देवी हैं।
मैं उस देवी को नमस्कार करता हूं जो ब्रह्मचर्य का पालन करती हैं, और मैं उस देवी को नमस्कार करता हूं जिनकी कांति चंद्रमा के समान है और जो वाणी की देवी हैं।
मैं उस सरस्वती देवी को नमस्कार करता हूं जिनके हाथ में वीणा है और जो अमृत की तरह हैं।
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