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- Create Date October 11, 2023
- Last Updated July 29, 2024
अथ श्रीस्तनवकास्तोत्रम्
ऋषिः: ब्रह्मा देवताः: श्रीस्तनवकाः छन्दः: अनुष्टुप
श्लोक १
अयोध्यापुरीवासिन: श्रीस्तनवका: प्रभो, स्तवनं करिष्यामहे त्वां नमस्तेऽस्तु शम्भो।
अर्थ:
हे भगवान, अयोध्यापुरी में रहने वाले श्रीस्तनवका, हम आपकी स्तुति करते हैं। आपको नमस्कार है, हे शंकर।
श्लोक २
तुम त्रिभुवन के पालनहार, ज्ञान के भंडार, दया के सागर, करुणा के धाम हो। तुमने इस संसार को रचा, तुम ही इसके पालनहार हो, तुम ही इसके रक्षक हो, तुम ही इसके प्रकाश हो।
अर्थ:
तुम तीनों लोकों के पालनहार हो, ज्ञान के भंडार हो, दया के सागर हो, करुणा के धाम हो। तुमने इस संसार को रचा, तुम ही इसके पालनहार हो, तुम ही इसके रक्षक हो, तुम ही इसके प्रकाश हो।
श्लोक ३
तुम शिव हो, तुम शंकर हो, तुम विष्णु हो, तुम ब्रह्मा हो, तुम गणेश हो, तुम कार्तिकेय हो। तुम त्रिदेव हो, तुम पंचदेव हो, तुम अष्टदेव हो, तुम सर्वदेव हो, तुम सर्वशक्तिमान हो।
अर्थ:
तुम शिव हो, तुम शंकर हो, तुम विष्णु हो, तुम ब्रह्मा हो, तुम गणेश हो, तुम कार्तिकेय हो। तुम त्रिदेव हो, तुम पंचदेव हो, तुम अष्टदेव हो, तुम सर्वदेव हो, तुम सर्वशक्तिमान हो।
श्लोक ४
तुम ही हो हमारे पिता, तुम ही हो हमारे माता, तुम ही हो हमारे मित्र, तुम ही हो हमारे स्वामी। तुम ही हो हमारे आश्रय, तुम ही हो हमारे उद्धारकर्ता, तुम ही हो हमारे जीवन के आधार।
अर्थ:
तुम ही हो हमारे पिता, तुम ही हो हमारे माता, तुम ही हो हमारे मित्र, तुम ही हो हमारे स्वामी। तुम ही हो हमारे आश्रय, तुम ही हो हमारे उद्धारकर्ता, तुम ही हो हमारे जीवन के आधार।
श्लोक ५
हमारे सभी पापों को धोकर हमें शुद्ध करो, और हमें सद्मार्ग पर ले चलो। हम आपकी शरण में आते हैं, हमें अपने आशीर्वाद प्रदान करें।
अर्थ:
हमारे सभी पापों को धोकर हमें शुद्ध करो, और हमें सद्मार्ग पर ले चलो। हम आपकी शरण में आते हैं, हमें अपने आशीर्वाद प्रदान करें।
श्लोक ६
हे श्रीस्तनवका, हम आपकी स्तुति करते हैं, आपके चरणों में अपना सिर झुकाते हैं। आप हमें अपने आशीर्वाद प्रदान करें, और हमें अपने मार्गदर्शन से युक्त करें।
अर्थ:
हे श्रीस्तनवका, हम आपकी स्तुति करते हैं, आपके चरणों में अपना सिर झुकाते हैं। आप हमें अपने आशीर्वाद प्रदान करें, और हमें अपने मार्गदर्शन से युक्त करें।
फलश्रुति:
जो कोई इस श्रीस्तनवकास्तोत्र का पाठ करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है, और उसे सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
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