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  • Create Date October 11, 2023
  • Last Updated July 29, 2024

इन्द्रकृतं रामस्तोत्रम् एक स्तोत्र है जो भगवान राम की स्तुति में लिखी गई है। यह स्तोत्र 16वीं शताब्दी के कवि तुलसीदास द्वारा रचित है और रामचरितमानस में पाई जाती है।

इन्द्रकृतं रामस्तोत्रम् में, इन्द्र भगवान राम की महिमा का वर्णन करते हैं। वह कहते हैं कि भगवान राम सभी गुणों के प्रतिनिधि हैं। वह दयालु, करुणामय, न्यायप्रिय और शक्तिशाली हैं। वह हमेशा सही काम करते हैं, भले ही उन्हें इसके लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़े।

इन्द्रकृतं रामस्तोत्रम् का पाठ इस प्रकार है:

कोन्वीश ते पादारसोबभाजां सुदुर्लभोऽर्थेषु चतुर्ष्वपीह । तथाऽपि नाहं प्रवृणोमि भूमन् भवत्पदामभोजनिषेवता ।

त्वमेव साक्षात्परमः स्वतन्त्रस्त्वमेव साक्षादखिलोरुशक्तिः । त्वमेव चागण्यगुणार्णवः सदा रमाविरिञ्चादिभिरप्यशेषैः ।

समेत्य सर्वेऽपि सदा वदन्तोऽप्यनन्तकालाच्च न वै समाप्नुयुः । गुणान्स्त्वदीयान् परिपूर्णसौख्यज्ञानात्मकस्त्वं हि सदाऽतिशुद्धः ।

यस्ते कथासेवक एव सर्वदा सदा रतिस्त्वय्यचलैकभक्तिः । स जीवमानो न परः कथञ्चित् तज्जीवनं मेऽस्त्वधिकं समस्तात् ।

प्रवर्धतां भक्तिरलं क्षणे क्षणे त्वयीश मे ह्रासविवर्जिता । अनुग्रहस्ते मया चिररूपधौ तौ मम सर्वकामः ।

इतीरितस्तस्य ददौ स तद्वयं पदं विधातुः सकलैश्च शोभनम् । समाशलिश्चैनमथार्द्रया धिया यथोचितं सर्वजनानपूजयत् ।

अनुवाद:

हे राम, मुझे तुम्हारे चरणकमल का स्पर्श करना बहुत कठिन है। मैं तुम्हारे चरणों की सेवा करना चाहता हूँ, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता।

तुम ही परम सत्य और स्वतंत्र हो। तुम ही सभी शक्तियों के स्वामी हो। तुम ही करुणा, दया और ज्ञान के समुद्र हो।

तुम्हारे गुणों का वर्णन करने के लिए सभी देवता मिलकर भी नहीं कह सकते। तुम हमेशा सर्वज्ञ और शुद्ध हो।

मैं तुम्हारा भक्त हूँ और मैं तुम्हारी सेवा करना चाहता हूँ। मैं तुम्हारी कृपा से मोक्ष प्राप्त करना चाहता हूँ।

हे राम, मेरे हृदय में तुम्हारी भक्ति हमेशा बढ़ती रहे। मुझे तुम्हारी कृपा से सभी दुखों से छुटकारा मिले।

हे राम, मुझे तुम्हारी कृपा से सभी कामनाओं की प्राप्ति हो।

इन्द्रजी को भगवान राम की कृपा से पद्म प्राप्त हुआ। उन्होंने सभी देवताओं के साथ मिलकर पद्म को सुशोभित किया और सभी लोगों को प्रणाम किया।

व्याख्या:

इन्द्रकृतं रामस्तोत्रम् एक बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण स्तोत्र है जो भगवान राम की महिमा का वर्णन करती है। इस कविता के पाठ से भक्तों को भगवान राम का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनके जीवन में सुख और शांति आती है।

इस स्तोत्र में, इन्द्र भगवान राम की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि भगवान राम सभी गुणों के प्रतिनिधि हैं। वह दयालु, करुणामय, न्यायप्रिय और शक्तिशाली हैं। वह हमेशा सही काम करते हैं, भले ही उन्हें इसके लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़े।

इन्द्र कहते हैं कि वह भगवान राम के चरणकमल का स्पर्श करना चाहते हैं, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकते। वह भगवान राम के चरणकमल को बहुत पवित्र मानते हैं।

इन्द्र कहते हैं कि भगवान राम ही परम सत्य और स्वतंत्र हैं। वह ही सभी शक्तियों के स्वामी हैं। वह ही करुणा, दया और ज्ञान के समुद्र हैं।

इन्द्र कहते हैं कि सभी देवता मिलकर भी भगवान राम के गुणों का वर्णन नहीं कर सकते। वह


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