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  • Create Date October 8, 2023
  • Last Updated October 8, 2023

पितृसूक्तम् ऋग्वेद के दशम मण्डल के 15वें सूक्त का नाम है। यह सूक्त पितरों की स्तुति में रचा गया है। इस सूक्त में पितरों को देवताओं के समान माना गया है। पितृसूक्त में पितरों के नामों का भी उल्लेख किया गया है।

पितृसूक्त के अनुसार, पितृ ब्रह्मा के पुत्र हैं। वे मृत्यु के बाद स्वर्ग में जाते हैं और वहां रहते हैं। पितृ अपने पुत्रों पर कृपा करते हैं और उन्हें सुख और समृद्धि प्रदान करते हैं।

पितृसूक्त का पाठ करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है। यह सूक्त विशेष रूप से पितृपक्ष में पढ़ा जाता है।

पितृसूक्त के 10 ऋचाएँ हैं। प्रत्येक ऋचा में पितरों की स्तुति की गई है। पितृसूक्त के कुछ श्लोक इस प्रकार हैं:

1. उद्दिरतामवर उत्परांस उन्मध्यमाः पितरो सोम्यासः । असुं य ईयुर वृका ऋतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरः सवितृमतीः ।।

अर्थ: वे पितृ जो ऊंचे, नीचे और मध्यम हैं, जो सोमपान करने वाले हैं, जो ऋत (सत्य) को जानते हैं, जो वृक (भेड़) के समान हैं, वे पितृ सवितृ के समान प्रकाशमान हों, वे हमें आशीर्वाद दें।

2. ये पूर्वासो ये च पराश्चा ये पार्थिवे रजस्या निषत्ताः । तेभ्यो नो ऽवन्तु पितरः सवितृमतीः ।।

अर्थ: जो पितृ पूर्व में थे, जो पश्चिम में थे, जो पृथ्वी के रजस (रजस्वला) में स्थित हैं, वे पितृ सवितृ के समान प्रकाशमान हों, वे हमें आशीर्वाद दें।

3. ये नः पूर्वासो अपि चैव ये च पराश्चा ऽनुहिरे सोमं । तेभ्यो नो ऽवन्तु पितरः सवितृमतीः ।।

अर्थ: जो पितृ हमें पहले भी सोमपान कराने वाले थे, जो अभी भी सोमपान कराने वाले हैं, वे पितृ सवितृ के समान प्रकाशमान हों, वे हमें आशीर्वाद दें।

4. ये नः पूर्वासो अपि चैव ये च पराश्चा ऽनुहिरे समिधं । तेभ्यो नो ऽवन्तु पितरः सवितृमतीः ।।

अर्थ: जो पितृ हमें पहले भी समिधा (अग्नि) प्रदान करने वाले थे, जो अभी भी समिधा प्रदान करने वाले हैं, वे पितृ सवितृ के समान प्रकाशमान हों, वे हमें आशीर्वाद दें।

5. ये नः पूर्वासो अपि चैव ये च पराश्चा ऽनुहिरे कर्माणि । तेभ्यो नो ऽवन्तु पितरः सवितृमतीः ।।

अर्थ: जो पितृ हमें पहले भी कर्मों को करने के लिए प्रेरित करने वाले थे, जो अभी भी कर्मों को करने के लिए प्रेरित करने वाले हैं, वे पितृ सवितृ के समान प्रकाशमान हों, वे हमें आशीर्वाद दें।

पितृसूक्त का पाठ करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है। यह सूक्त विशेष रूप से पितृपक्ष में पढ़ा जाता है।


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