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- Create Date October 8, 2023
- Last Updated October 8, 2023
महागणपति एकविंशतिनामावली एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान गणेश की 21 नामों की प्रशंसा करता है। यह स्तोत्र 21 श्लोकों में विभाजित है, और प्रत्येक श्लोक में गणेश के एक विशेष नाम की प्रशंसा की जाती है।
स्तोत्र की शुरुआत में, गणेश को "गणपति" के रूप में संबोधित किया जाता है। फिर, गणेश की नामों का वर्णन किया जाता है, जैसे कि "एकदन्त", "विघ्नहर्ता", और "सिद्धिविनायक"। स्तोत्र के अंत में, गणेश से प्रार्थना की जाती है कि वे भक्तों को सभी प्रकार के भय और खतरों से बचाएं।
महागणपति एकविंशतिनामावली का पाठ करने का सबसे अच्छा समय मंगलवार या रविवार को माना जाता है। भक्त स्तोत्र को घर पर या मंदिर में बैठे हुए पाठ कर सकते हैं। स्तोत्र को पाठ करते समय, भक्तों को भगवान गणेश की छवि या मूर्ति के सामने बैठना चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए।
महागणपति एकविंशतिनामावली का पाठ करने से भक्तों को निम्नलिखित लाभ होने की उम्मीद है:
- सभी प्रकार के भय और खतरों से सुरक्षा
- सफलता और समृद्धि
- आध्यात्मिक विकास
महागणपति एकविंशतिनामावली एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भक्तों को कई तरह से लाभ पहुंचा सकता है।
महागणपति एकविंशतिनामावली का पाठ निम्नलिखित है:
श्लोक 1
गणपतिं नमस्तुभ्यं प्रथमं च प्रभुं। द्वितीयं च गणेशं तं नमामि सदा।।
अर्थ
हे गणपति, आप पहले और सबसे बड़े भगवान हैं। आपको हमेशा नमस्कार है।
श्लोक 2
एकदन्तं महाकायं लम्बोदरं सुंदरम्। विघ्ननाशं तं देवं तं नमामि सदा।।
अर्थ
हे एकदन्त, महाकाय, लम्बोदर, सुंदर, और विघ्ननाशक देव, आपको हमेशा नमस्कार है।
श्लोक 3
वरदं हस्तयुक्तं तं नमामि सदा। गजवदनं तं देवं तं नमामि सदा।।
अर्थ
हे वर देने वाले, हाथों में वर और अभय मुद्रा धारण करने वाले, गजवदन देव, आपको हमेशा नमस्कार है।
श्लोक 4
नागराजावतंसं तं नमामि सदा। सुमुखं तं देवं तं नमामि सदा।।
अर्थ
हे नागराज की आज्ञा का पालन करने वाले, सुमुख देव, आपको हमेशा नमस्कार है।
श्लोक 5
विघ्नराजो नृसिंहो तं नमामि सदा। विघ्ननाशं तं देवं तं नमामि सदा।।
अर्थ
हे विघ्नराज, नृसिंह देव, आपको हमेशा नमस्कार है।
श्लोक 6
गजवदनं तं देवं तं नमामि सदा। सिद्धिविनायकं तं देवं तं नमामि सदा।।
अर्थ
हे गजवदन देव, सिद्धि प्रदान करने वाले, आपको हमेशा नमस्कार है।
श्लोक 7
एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशवराभयायुधम्। सर्वविघ्नविनाशं तं नमामि सदा।।
अर्थ
हे एकदन्त, चतुर्हस्त, पाश, वर, और अभय मुद्रा धारण करने वाले, सभी विघ्नों को दूर करने वाले, आपको हमेशा नमस्कार है।
श्लोक 8
गौरीपुत्रं गणेशं तं नमामि सदा। सिद्धिबुद्धिप्रदायं तं नमामि सदा।।
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