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- Create Date October 2, 2023
- Last Updated October 2, 2023
शुक्लयजुर्वेदीय पुरुषसूक्तः Shuklayajurvediya Purushsukta:
शुक्लयजुर्वेदीय पुरुषसूक्त ऋग्वेद संहिता के दसवें मण्डल का एक प्रमुख सूक्त यानि मंत्र संग्रह (10.90) है, जिसमे पुरुष की चर्चा हुई है और उसके अंगों का वर्णन है। इसको वैदिक ईश्वर का स्वरूप मानते हैैं । विभिन्न अंगों में चारों वर्णों, मन, प्राण, नेत्र इत्यादि की बातें कहीं गई हैैं। यही श्लोक यजुर्वेद (31वें अध्याय) और अथर्ववेद में भी आया है। क्योकि इस सूक्त मेे अनेक बाार यज्ञ आया है और यज्ञ की ही चर्चा यजुर्वेद में हुई है।
पुरुषसूक्त का सारांश इस प्रकार है:
- पुरुष एक विराट पुरुष है जिसके सौ सिर, सौ आँख, सौ पैर और सौ हाथ हैं।
- वह संसार का रचयिता है और वह ही संसार में व्याप्त है।
- वह चार वर्णों, मन, प्राण, नेत्र इत्यादि का प्रतीक है।
- वह यज्ञ का मूल है।
पुरुषसूक्त वैदिक साहित्य का एक महत्वपूर्ण सूक्त है। यह सूक्त ब्रह्मांड की उत्पत्ति और मानव जीवन के उद्देश्य को समझने में मदद करता है।