सावन माह सभी महीनों में सबसे पवित्र माना जाता है. इस माह को भगवान शिव की उपासना के लिए सर्वोत्तम माना जाता है. शिव जी को नीलकंठ भी कहा जाता है. जानते हैं इससे जुड़ी पौराणिक कथा. सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है. इस महीने में पूरी श्रद्धा के साथ शंकर भगवान की पूजा- अर्चना की जाती है. हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए भगवान शिव को कई नामों से जाना जाता है. देवों के देव महादेव को कई नामों से जाना जाता है. इनमें से कुछ नाम हैं- भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र और नीलकंठ. शंकर भगवान को नीलकंठ क्यों कहा जाता है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. पुराणों के अनुसार देवताओं और राक्षसों के बीच एक बार अमृत के लिए समुद्र मंथन हुआ था. यह मंथन क्षीरसागर में हुआ. इस मंथन में से लक्ष्मी, शंख, कौस्तुभमणि, ऐरावत, पारिजात, उच्चैःश्रवा, कामधेनु, कालकूट, रम्भा नामक अप्सरा, वारुणी मदिरा, चन्द्रमा, धन्वन्तरि, अमृत और कल्पवृक्ष ये 14 रत्न निकले थे. समुद्र मंथन में से निकली इन बहुमूल्य वस्तुओं को देवताओं और दानवों ने आपस में बराबर बांट लिया लेकिन इसमें से एक ऐसी चीज भी निकली जिसे कोई भी लेने को तैयार नहीं था. यह था समुद्र मंथन से निकला हलाहल विष.
सावन में क्यों होती है शिव पूजा, कैसे पड़ा इस महीने का नाम; जानिए शिव पूजा से जुड़ी परंपराएं और कथाएं
कैसे शुरू हुआ श्रावण मास?
स्वयंभू शिवशंकर को हम कई नामों से जानते हैं। इन्हें महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र समेत कई नामों से जाना जाता है। वहीं, शिव जी को नीलकंठ भी कहा जाता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि भोलेनाथ का नाम नीलकंठ कैसे पड़ा। इसे लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इस लेख में हम आपको इसी पौराणिक कथा के बारे में बता रहे हैं जिसमें वर्णित है कि आखिर भगवान शिव को नीलकंठ क्यों कहा जाता है।
यह विष इतना ज्यादा खतरनाक था कि अगर इसकी एक बूंद भी संसाकर पर गिर जाती तो वह संसार को खत्म करने की शक्ति रखता था। देवता और राक्षस यह जानकर डर गए। वो इसका हल नहीं निकाल पा रहे थे। ऐसे में देवगण और राक्षस सभी शिवजी के पास पहुंच गए। शिवजी ने सभी की बात सुनी और एक हल निकाला। उन्होंने कहा कि वो पूरा विष खुद पी जाएंगे। इतने में ही शिवजी ने वो घड़ा उठाया जिसमें विष था और देखते ही देखते पूरा विष स्वयं पी गए। लेकिन यह विष उन्होंने अपने गले से नीचे नहीं उतारा। उन्होंने इसे गले में ही रखा। इससे उनका गला नीला पड़ गया और यही कारण था कि उनका नाम नीलकंठ पड़ गया। जिस समय शिवजी ने विष पिया उस समय विष की कुछ बूंदे जमीन पर गिर गईं जिसके चलते बिच्छू, सांप आदि जीवों और कुछ वनस्पतियों ने उसे ग्रहण कर लिया। इसी के चलते ये जीव विषैले हो गए।