पौराणिक कथा के अनुसार जो स्वर्ग लोक के सिंहासन पर विराजमान होते और स्वर्ग का शासन करते हैं उन्हें इंद्रदेव के नाम से जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि जो कोई भी स्वर्ग लोक के सिंहासन पर बैठता था उसे हमेशा स्वर्ग के सिंहासन को खोने का डर सताते रहता था इसलिए वह हमेशा स्वर्ग की अप्सरा रंभा, उर्वशी जैसी अप्सरा को तापस्वी के पास भेज कर उसकी तपस्या को भंग करवा देता था और राजाओं के युद्ध के अश्वमेघ घोड़े को चुरा लेता था.ऐसा माना जाता है कि अब तक कुल 14 इंद्र हो चुके हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि। तो चलिए है अब जानते कि कलयुग में देवताओं के राजा इंद्र की पूजा क्यों नहीं होती है?
कलयुग में देवताओं के राजा इंद्र की पूजा क्यों नहीं होती है?
हिंदू धर्म ग्रंथ में चार युगों का वर्णन किया गया है सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलयुग. भगवान श्री कृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था,पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के बृज में अवतार लेने से पहले यहां इंद्र उत्सव बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता था. प्रत्येक साल इंद्र देव की पूजा की जाती है इंद्र उत्सव पूजा के अवसर पर बड़े ही मेले का आयोजन किया जाता था.परंतु जब श्री कृष्ण बड़े हुए तो उन्होंने देखा कि बृजवासी बड़े ही धूमधाम से इंद्र की पूजा कर रहे हैं. उन्होंने बृजवासी से कहा कि आप लोग किसी ऐसे व्यक्ति की पूजा क्यों करते हैं जो ना तो ईश्वर है ना ही ईश्वरतुल्य इसलिए आप लोग इंद्र की पूजा अब से नहीं करेंगे,
गोवर्धन पर्वत और देवराज इंद्र की कथा
इस पूजा के वजाइ गोवर्धन पूजा और उस गाय पूजा करने के लिए बोला,गाय से हम सभी का जीवन चलता है. यह सुनकर पहले तो ब्रिज वासियों ने कहा कि अगर हम लोग देवराज इंद्र की पूजा करने छोड़ दिया तो वे क्रोधित हो जाएंगे और फिर हमारे यहां वर्षा भी नहीं होगी,ऐसे में हम अपने गायों को चारा कैसे खिलाएंगे. तब श्री कृष्ण ने कहा इसीलिए हम क्यों ऐसे देवता की पूजा करते हैं जो हमें भय दिखाता है, हम सभी को किसी से डरने की जरूरत नहीं है,अगर हमें चढ़ावे और पूजा का आयोजन करना ही है तो गोपोत्सव मनाएंगे इंद्रत्सव नहीं. ऐसी भी मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र देव की पूजा बंद कराने के लिए स्वर्ग में सभी देवी देवताओं से निवेदन किया.
जब यह सभी बातें इंद्रदेव को पता चली तो वह क्रोधित हो गए उन्हें तुरंत अपने प्रलयकालीन बादलों को आदेश दिया की ब्रिज में ऐसी वर्षा करो कि बृजवासी पूरी तरह डूबने लगे और हम से माफी मांगने पर विवश हो जाए और फिर से मेरी पूजा करने लगे. इंद्र के आदेश पर भयंकर वर्षा होने लगी और इससे बृजवासी डरने लगे,तब भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उंगली पर उठा लिया और सभी ब्रिज वासियों को गोवर्धन पर्वत के नीचे आने को कहा. सभी बृज वासियों ने ऐसा ही किया और इस प्रकार उन पर बादलों और वर्षा का कोई प्रभाव नहीं पड़ा.इस प्रकार इंद्र का अहंकार चूर-चूर हो गया.उसके बाद भगवान श्री कृष्ण और इंद्र देव के बीच युद्ध भी हुआ,जिसमें इंद्रदेव पराजित हुए और तभी से बृज में इंद्र देव की पूजा बंद हो गई और गोवर्धन पर्वत की पूजा होने लगी.
देवराज इंद्र की पूजा नहीं होने की दूसरी कथा
वहीं दूसरी कथाओं के अनुसार इंद्र के शरीर पर जो असंख्य नेत्र दिखाई देते हैं दरअसल यह आंखें गौतम ऋषि द्वारा दिए गए श्राप के परिणाम है. पौराणिक कथाओं के अनुसार पुराने समय में धरती लोक पर एक गौतम ऋषि हुआ करते थे वो बड़े ही ज्ञानी और योगी पुरुष थे. वह एक जंगल में अपनी पत्नी के साथ कुटिया बनाकर रहा करते थे,उनकी पत्नी का नाम अहिल्या था, अहिलया अत्यंत ही सुंदर होने के साथ-साथ एक पतिव्रता स्त्री थी. जो भी अहिल्या को देखता वह उनकी सुंदरता पर मोहित हो जाता. पद्म पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार इंद्र स्वर्गलोक में अप्सराओं के साथ हमेशा घिरे रहते थे.
एक दिन जब वे धरती पर विचरण करने के लिए आए तो उन्होंने एक कुटिया के बाहर गौतम ऋषि की पत्नी देवी अहिल्या को देखा. अहिल्या अपने कुटिया में अपने पति गौतम ऋषि की सेवा कर रही थी. ज़ब इंद्रदेव वहां से गुजरे तो वह अहिल्या को देखकर उन पर मोहित हो गए. अब इनके मन में देवी अहिल्या को पाने की लालसा जग गया, हालांकि उस समय इंद्रदेव धरती लोग से स्वर्ग लौट आए उनका मन अहिल्या पर ही बना रहा,सोचने लगे कि उस पर ऐसा क्या किया जाए कि एक पतिव्रता स्त्री उन पर आसानी से अपना सर्वस्व न्योछावर कर दे. देवी अहिल्या को पाने के लिए उन्होंने छल के सहारा की योजना बनाई,उन्हें ज्ञात हुआ कि प्रत्येक सुबह गौतम ऋषि ध्यान करने के लिए अपने कुटिया के बाहर जाते हैं,तब अहिल्या को पाया जा सकता है.
गौतम ऋषि अहिल्या और इंद्र की कथा
इंद्रदेव ने अपनी देवी शक्ति का सहारा लेकर अपनी माया से रात को सुबह जैसे वातावरण में बदल दिया. गौतम ऋषि को लगा कि सुबह हो गई और वह स्नान और पूजा पाठ के लिए बाहर चले गए,अब इंद्रदेव उनका रूप धारण कर कुटिया में प्रवेश किए,और अहिल्या के पास पहुंचे. यह देखकर पहले अहिल्या ने सोचा कि मेरे प्रभु आज इतनी जल्दी कैसे आ गए. लेकिन उन्होंने गौतम ऋषि के रूप में इंद्र से कोई सवाल नहीं किया और उनकी सेवा करने लगे. ज़ब गौतम ऋषि ने नदी के आसपास के वातावरण देखा तो उन्हें अनुभव हुआ कि अभी सुबह नहीं हुआ है और वह अपनी कुटिया की तरफ लौट चले.
कुटिया में लौटते ही उन्होंने देखा कि उनके वेश में एक दूसरा पुरुष उनकी पत्नी के साथ है,उन्हें यह समझने में देर नहीं लगी कि यह बहरूपिया और कोई नहीं बल्कि स्वर्ग के राजा इंद्र देव हैं जिन्होंने उनके साथ छल किया है. यह देखते ही वह आग बबूला हो गए और इसी गुस्से में उन्होंने देवराज इंद्र को श्राप दे दिया. उन्होंने इंद्र से कहा कि तुमने यह सब केवल एक स्त्री की योनि पाने के लिए किया, तुम्हें योनि की इतनी लालसा है तो तुम्हें वही मिलेगी, तुम्हारे शरीर पर ऐसे ही 1000 योनियों निकलेगी और तुम्हारी पूजा देवताओं के बराबर में नहीं होगी.
ऋषि ने अपनी पत्नी देवी अहिल्या को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया. यह सुनते ही इंद्र अपने असली रूप में आ गए और ऋषि के चरण पकड़ कर गिड़-गिड़ाने लगे यह देखकर गौतम ऋषि को उन पर दया आ गई और उन्होंने इंद्र के शरीर पर वही योनियों को आंखों में बदल दिया. देवी अहिल्या ने बार-बार क्षमा मांगी,और कहा कि प्रभु इसमें मेरा कोई दोष नहीं है,वही गौतम ऋषि ने कहा कि आप यहां चट्टान के रूप में निवास करेंगी. त्रेता युग में जब भगवान विष्णु राम के रूप में अवतरित होंगे तब उनके चरण स्पर्श से ही आपको मोक्ष की प्राप्ति होगी. ऐसा ऐसा माना जाता है कि तभी से मनुष्य ने इंद्र देव की पूजा बंद कर दी.