धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनि देव न्याय के देवता और कर्मफल दाता  हैं. जो जैसा कर्म करता है, उसे वे वैसा ही फल देते हैं. वे सबके साथ न्याय करते हैं, इसलिए न्याय के देवता हैं. लेकिन जब ये राहु के साथ युति करते हैं, तो दंडनायक की भूमिका में होते हैं. दुष्ट लोगों को उनके कर्मों के लिए दंड भी देते हैं. तभी तो राहु के प्रभाव में आकर उन्होंने अपने वाहन काकोल की मां को भस्म करने के लिए इंद्र देव को दंडित किया था. शनि देव प्रारंभ से ही ऐसे नहीं थे. अपने पिता सूर्य देव से बार बार अपमानित होने के कारण शनि देव कठोर हो गए. आखिर शनि देव कर्मफल दाता कैसे बनें?

शिव कृपा से शनि देव बने श्रेष्ठ

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य देव जब अपनी पत्नी छाया के पास गए तो उनकी तेज से पत्नी ने आंखें बंद कर ली. कुछ समय बाद शनि देव का जन्म हुआ. माता छाया के आंखें बंद कर लेने के कारण वे श्यामवर्ण के हो गए. सूर्य देव उनके रंग को देखकर दुखी हो गए. उन्होंने अपनी पत्नी छाया से कहा कि शनि उनका पुत्र नहीं हो सकता है. इससे उनकी पत्नी बहुत दुखी हुईं और शनि देव यह देखकर क्रोधित हो गए.माता छाया के प्रति पिता सूर्य देव के व्यवहार से शनि देव काफी दुखी और क्रोधित रहते ​थे. उन्होंने शिव उपासना का प्रण लिया. उन्होंने हजारों वर्षों तक भगवान शिव की तपस्या की, जिससे उनका शरीर काला पड़ गया. शनि देव की कठोर तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा l

तब शनि देव ने कहा कि उनके पिता सूर्य देव ने हमेशा उनकी माता छाया का अपमान किया है. वह चाहते हैं कि सूर्य देव का अभिमान टूट जाए. तब भगवान शिव ने कहा कि तुम सभी ग्रहों में श्रेष्ठ होगे. आज से तुम सभी लोगों को उनके कर्मों के आधार पर फल दोगे. तुम सबके साथ न्याय करोगे और न्याय के देवता होगे. भगवान शिव की कृपा से ही शनि देव कर्मफल दाता बनें और सभी ग्रहों में श्रेष्ठ हुए.

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