श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम कामिका एकादशी है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से हर बिगड़े काम बनते हैं। व्रत करने से उपासकों के साथ-साथ उनके पित्रों के कष्ट भी दूर हो जाते हैं और उपासकों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। संसार सागर तथा पापों में फँसे हुए मनुष्यों को इनसे मुक्ति के लिये कामिका एकादशी का व्रत करना चाहिये। कामिका एकादशी के उपवास से भी पाप नष्ट हो जाते हैं, संसार में इससे अधिक पापों को नष्ट करने वाला कोई और उपाय नहीं है।
कामिका एकादशी व्रत कथा
एक नगर में एक ठाकुर और एक ब्राह्मण रहते थे। दोनों की एक दूसरे से बनती नहीं थी। आपसी झगड़े के कारण ठाकुर ने ब्राह्मण को मार डाला। इस पर नाराज ब्राह्मणों ने ठाकुर के घर खाना खाने से मना कर दिया। ठाकुर अकेला पड़ गया और वह खुद को दोषी मानने लगा। ठाकुर को अपनी गलती महसूस हुई और उसने एक मुनी से अपने पापों का निवारण करने का तरीका पूछा। इस पर, मुनी ने उन्हें कामिका एकादशी का उपवास करने के लिए कहा।
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ठाकुर ने ऐसा ही किया। ठाकुर ने व्रत करना शुरू कर दिया। एक दिन कामिका एकादशी के दिन जब ठाकुर भगवान की मूर्ति के निकट सोते हुए एक सपना देखा, भगवान ने उसे बताया, “ठाकुर, सभी पापों को हटा दिया गया है और अब आप ब्राह्मण हटिया के पाप से मुक्त हैं”।इसलिए, इस एकादशी को आध्यात्मिक साधकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह चेतना से सभी नकारात्मकता को नष्ट करता है और मन और हृदय को दिव्य प्रकाश से भर देता है।
कामिका एकादशी व्रत विधि
एकादशी के दिन स्नानादि से पवित्र होने के पश्चात संकल्प करके श्री विष्णु के विग्रह की पूजन करना चाहिए। भगवान विष्णु को फूल, फल, तिल, दूध, पंचामृत आदि नाना पदार्थ निवेदित करके, आठों प्रहर निर्जल रहकर विष्णु जी के नाम का स्मरण एवं कीर्तन करना चाहिए। एकादशी व्रत में ब्राह्मण भोजन एवं दक्षिणा का बड़ा ही महत्व है अत: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही भोजना ग्रहण करें। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी के दिन किया जाता है। अतः द्वादशी के दिन घर पर ब्राह्मण को बुलाएं और उन्हें खाना खिलाएं और सामर्थ्य अनुसार उन्हें दान दक्षिणा दें। उसके बाद स्वयंं पारण करें। ध्यान रहे कि पारण के समय के दौरान ही पारण किया जाना चाहिए। अगर ब्राह्मण को घर बुलाकर भोजन कराने का सामर्थ्य नहीं है तो आप एक व्यक्ति के भोजन के बराबर अनाज किसी गरीब को या मंदिर में दान कर दें। यह भी आपको उतना ही फल प्रदान करेगा। इस प्रकार जो कामिका एकादशी का व्रत रखता है उसकी कामनाएं पूर्ण होती हैं।
कामिका एकादशी व्रत के नियम
एकादशी व्रत का तीन दिन का नियम होता है। यानी दशमी, एकादश और द्वादशी को कामिका एकादशी के नियमों का पालन होता है। इन तीन दिनों के दौरान जातकों को चावल नहीं खाने चाहिए। इसके साथ ही लहसुन, प्याज और मसुर की दाल का सेवन वर्जित है। मांस और मदिरा का सेवन भूल कर भी नहीं करना चाहिए।
दशमी के दिन एक समय भोजन ग्रहण करना चाहिए और सूर्यास्त के बाद कुछ भी नहीं खाना चाहिए। एकादशी के दिन प्रात: काल उठकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए। एकादशी की रात को जागरण करना चाहिए। एकादशी के दिन जागरण करना भी व्रत का ही हिस्सा है। द्वादशी के दिन पूजा कर पंडित को यथाशक्ति दान देना चाहिए और उसके बाद पारण करना चाहिए।
एकादशी के दिन दातुन नहीं करना चाहिए। अपनी उंगली से ही दांत साफ करें। क्योंकि एकादशी के दिन पेड़ पौधों को तोड़ते नहीं है। इस दिन किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए।
कामिका एकादशी महत्व
इस एकादशी की कथा सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है। कामिका एकादशी के उपवास में शङ्ख, चक्र, गदाधारी भगवान विष्णु का पूजन होता है। जो मनुष्य इस एकादशी को धूप, दीप, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, उन्हें गंगा स्नान के फल से भी उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण में केदार और कुरुक्षेत्र में स्नान करने से जिस पुण्य की प्राप्ति होती है, वह पुण्य कामिका एकादशी के दिन भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करने से प्राप्त हो जाता है। आभूषणों से युक्त बछड़ा सहित गौदान करने से जो फल प्राप्त होता है, वह फल कामिका एकादशी के उपवास से मिल जाता है।
जो उत्तम द्विज श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की कामिका एकादशी का उपवास करते हैं तथा भगवान विष्णु का पूजन करते हैं, उनसे सभी देव, नाग, किन्नर, पितृ आदि की पूजा हो जाती है, इसलिये पाप से डरने वाले व्यक्तियों को विधि-विधान सहित इस उपवास को करना चाहिये।
संसार सागर तथा पापों में फँसे हुए मनुष्यों को इनसे मुक्ति के लिये कामिका एकादशी का व्रत करना चाहिये। कामिका एकादशी के उपवास से भी पाप नष्ट हो जाते हैं, संसार में इससे अधिक पापों को नष्ट करने वाला कोई और उपाय नहीं है। इस कामिका एकादशी की रात्रि को जो मनुष्य जागरण करते हैं और दीप-दान करते हैं, उनके पुण्यों को लिखने में चित्रगुप्त भी असमर्थ हैं।