गोला गोकर्णनाथ। छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध गोला गोकर्णनाथ के पौराणिक शिव मंदिर के महात्म्य और प्रसंग पुराणों और लोक कथाओं में मिलते हैं। यह पूरे तराई क्षेत्र का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। यह मंदिर प्रदेश की अनमोल धरोहर तो है ही, यहां होने वाले धार्मिक आयोजन और मेले सांस्कृतिक विरासत भी हैं।
मान्यता है कि भगवान शंकर ने यहां मृग रूप में विचरण किया था। वराह पुराण में वर्णन है कि भगवान शंकर वैराग्य उत्पन्न होने पर यहां के वन क्षेत्र में भ्रमण करने आए और रमणीक स्थल देखकर यही रम गए। ब्रह्मा, विष्णु और इंद्र को चिंता हुई और वह उन्हें ढूंढने के लिए निकले तो इस वन प्रांत में विशाल मृग को सोते देखकर समझ गए कि यही शिव हैं। वे जैसे ही उनके निकट गए तो आहट पाकर मृग भागने लगा।
कथा के अनुसार देवताओं ने उनका पीछा कर उनके सींग पकड़ लिए तो सींग तीन टुकड़ों में विभक्त हो गया। सींग का मूल भगवान विष्णु ने यहां स्थापित किया, जो गोकर्ण नाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सींग का दूसरा टुकड़ा ब्रह्मा जी ने बिहार के श्रंगवेश्वर में स्थापित किया। तीसरा टुकड़ा देवराज इंद्र अपने साथ ले गए, जिसे उन्होंने अमरावती में स्थापित किया।
यहां के महत्व का वर्णन शिव पुराण वामन, पुराण, कूर्म पुराण, पद्म पुराण और स्कंद पुराण में भी मिलता है। पौराणिक शिव मंदिर से जुड़ी एक किवदंती भी लोक मान्यता का रूप ले चुकी है कि भगवान शिव लंकापति रावण की तपस्या से प्रसन्न हुए और रावण भगवान शिव को अपने साथ लंका ले जाने लगा। भगवान शिव ने शर्त रखी कि उन्हें रास्ते में कहीं भी रखा, तो वह उस स्थान से नहीं जाएंगे।
छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध है गोला गोकर्णनाथ, सावन में जरूर करें दर्शन
शर्त के अनुसार रावण भगवान शिव को लेकर लंका के लिए चला। जब रावण गोला गोकर्णनाथ के पास पहुंचा तो उसे लघुशंका का आभास हुआ। रावण एक चरवाहे को इस हिदायत के साथ शिवलिंग देकर लघुशंका के लिए चला गया कि वह शिवलिंग भूमि पर नहीं रखेगा। काफी देर तक वापस ना आने पर चरवाहे ने भगवान शिवलिंग को भूमि पर रख दिया।
वापस लौटे रावण ने शिवलिंग उठाने की कोशिश की मगर नहीं उठा सका। इस पर गुस्से में अपने अंगूठे से शिवलिंग को भूमि में दबा दिया। मान्यता है कि गोला के पौराणिक शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग में रावण के अंगूठे का निशान आज भी मौजूद है।
भूतल से नौ फिट की गहराई में स्थापित है शिवलिंग – पौराणिक शिव मंदिर परिसर में प्रवेश द्वार सहित चारों दिशा में द्वार हैं। वहीं, मंदिर के तीन द्वार हैं। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग भूतल से नौ फीट की गहराई में है। शिवभक्त दंडवत करके ही दर्शन पाते हैं। पौराणिक शिव मंदिर के निकट गोकर्ण तीर्थ 5300 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में है।
जिसका 2016 में आवास विकास योजना के तहत एक करोड़ 10 लाख रुपए की लागत से जीर्णोद्धार कराया गया था। वहीं वर्ष 2014 में शिव सेवार्थ समिति द्वारा शिव भक्तों के सहयोग से तीर्थ के मध्य विशालकाय भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित कराई थी।
डेढ़ शताब्दी पहले जूना अखाड़ा के नागा साधु करते थे मंदिर की देखभाल – पौराणिक शिव मंदिर कमेटी अध्यक्ष जनार्दन गिरी ने बताया कि करीब डेढ़ सदी पहले जूना अखाड़ा के नागा पंथ शिव मंदिर की देखरेख करता था, जो हाथियों पर आसीन होकर यहां आते थे। जूना अखाड़ा के नागा पंथ ने ही गोस्वामी समाज को मंदिर की देखरेख का जिम्मा दिया था।
मंदिर निर्माण सर्वप्रथम किसने कराया, इसके प्रमाण उपलब्ध नहीं है। हालांकि, पूर्वज बताते थे कि यहां एक गोल गुंबद का छोटा मंदिर हुआ करता था। जिसे शिव भक्तों ने जीर्णोद्धार करा कर भव्य रुप दिया। वर्तमान में शिव मंदिर का जो स्वरूप है उसका जीर्णोद्धार बरेली के शिवभक्त परिवार के डॉ. संजय अग्रवाल. डा.ॅ रेनू अग्रवाल, डॉ. हिमांशु अग्रवाल, डॉ. प्रियंका अग्रवाल ने कराया है।