हनुमान जंयती हनुमान जयंती पूरे भारतवर्ष में हर साल बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन को भक्तगण हनुमान जी के जन्म दिवस के रूप में मनाई जाती है। भारतीय हिन्दी कैलेंडर के अनुसार यह त्यौहार हर साल चैत्र (चैत्र पूर्णिमा) माह के शुक्ल पक्ष में 15वें दिन मनाया जाता है।
श्री हनुमान जी, भगवान श्रीराम के बहुत बड़े भक्त थे ये हम सभी जानते है तो इस दिन हनुमान जी के साथ साथ प्रभु श्रीराम की भी पूजा करते है, पूरे भारत में हिन्दू धर्म के लोगों के द्वारा प्रभु श्री राम में अपनी गहरी आस्था के कारण पूजे जाते हैं। हनुमान जयंती हिन्दू धर्म के लोगों के द्वारा हिन्दूओं के एक महत्वपूर्ण त्यौहार के रुप में बड़े उत्साह और जोश के साथ मनाई जाती है। यह एक महान हिन्दू पर्व है, जो सांस्कृतिक और परंपरागत तरीके से मनाया जाता है।
लोग हनुमान जी की पूजा आस्था, जादूई शक्तियों, ताकत और ऊर्जा के प्रतीक के रुप में करते हैं। लोग हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं, क्योंकि यह बुरी शक्तियों का विनाश करने और मन को शान्ति प्रदान करने की क्षमता रखती है। इस दिन हनुमान भक्त सुबह जल्दी नहाने के बाद श्री हनुमान जी के मंदिर जाते हैं, और हनुमान जी की मूर्ति पर लाल सिंदूर का चोला चढ़ाते हैं, हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं, लड्डू का प्रसाद चढ़ाते हैं, और मंत्रों का जाप करते हुए आरती करते हैं, मंदिर की परिक्रमा आदि करके बहुत सारी रस्में करते हैं।
जैसा कि सभी जानते हैं, कि हनुमान जी का जन्म वानर समुदाय में लाल-नारंगी शरीर के साथ हुआ था, इसी कारण सभी हनुमान मंदिरों में लाल-नारंगी रंग की हनुमान जी की मूर्ति होती है। पूजा के बाद लोग अपने मस्तिष्क पर लाल सिन्दूर का टीका प्रसाद के रुप में लगाते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करने के लिये लड्डुओं का भोग लगा कर प्रसाद वितरण करते हैं।
कब मनाई जाती है हनुमान जयंती :-
महाराष्ट्र में हनुमान जयंती हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यद्दपि अन्य हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह अश्विन माह के अंधेरे पक्ष में 14वें दिन पड़ती है। पूजा के बाद पूरा आशीर्वाद पाने के लिए लोगों में प्रसाद बाँटा जाता है। उड़ीसा में हनुमान जयंती वैशाख (अप्रैल) महीने के पहले दिन मनाई जाती है।
कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में हनुमान जयंती वैशाख महीने के 10वें दिन मनाई जाती है, जो चैत्र पूर्णिमा से शुरु होती है और वैशाख महीने के 10वें दिन कृष्ण पक्ष पर खत्म होती है। तमिलानाडु और केरल में हनुमान जयंती मार्ग शीर्ष माह (दिसम्बर और जनवरी के बीच में) में इस विश्वास के साथ मनाई जाती है, कि भगवान हनुमान इस महीने की अमावश्या को पैदा हुए थे।
हनुमान जयंती मनाने का महत्व :
प्रभु हनुमान वानर समुदाय से थे, और हिन्दू धर्म के लोग हनुमान जी को एक दैवीय जीव के रुप में पूजते हैं। यह त्यौहार सभी के लिए बहुत अधिक महत्व रखता है, हालांकि ब्रह्मचारी, पहलवान और बलवान इस समारोह की ओर से विशेष रुप से प्रेरित होते हैं। हनुमान जी अपने भक्तों के बीच में बहुत से नामों से जाने जाते हैं; जैसे- बजरंगबली, पवनसुत, पवन कुमार, महावीर, बालीबिमा, मारुतिसुत, संकट मोचन, अंजनिपुत्र, मारुति, आदि।
हनुमान जी के अवतार को महान शक्ति, आस्था, भक्ति, ताकत, ज्ञान, दैवीय शक्ति, बहादुरी, बुद्धिमत्ता, निःस्वार्थ सेवा-भावना आदि गुणों के साथ भगवान शिव का 11वाँ रुद्र अवतार माना जाता है। इन्होंने अपना पूरा जीवन भगवान श्री राम और माता सीता की भक्ति में लगा दिया और बिना किसी उद्देश्य के कभी भी अपनी शक्तियों का प्रदर्शन नहीं किया। हनुमान भक्त हनुमान जी की प्रार्थना उनके जैसा बल, बुद्धि, ज्ञान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए करते हैं। इनके भक्तों के द्वारा इनकी पूजा बहुत से तरीकों से की जाती है। कुछ लोग अपने जीवन में शक्ति, प्रसिद्धी, सफलता आदि प्राप्त करने के लिए बहुत समय तक इनके नाम का जाप करने के द्वारा ध्यान करते हैं, वहीं कुछ लोग इस सब के लिए हनुमान चालीसा का जाप करते हैं।
हनुमान जयंती कथा :
एकबार एक महान संत अंगिरा स्वर्ग के स्वामी इन्द्र से मिलने के लिए स्वर्ग गए, और उनका स्वागत स्वर्ग की अप्सरा पुंजीक्ष्थला के नृत्य के साथ किया गया। हालांकि संत को इस तरह के नृत्य में कोई रुचि नहीं थी, उन्होंने उसी स्थान पर उसी समय अपने प्रभु का ध्यान करना शुरु कर दिया। नृत्य के अन्त में इन्द्र ने उनसे नृत्य के प्रदर्शन के बारे में पूछा। तो संत उस समय चुप थे, और उन्होंने कहा कि, मैं अपने प्रभु के गहरे ध्यान में था, क्योंकि मुझे इस तरह के नृत्य प्रदर्शन में कोई रुचि नहीं है। यह इन्द्र और अप्सरा के लिए बहुत अधिक लज्जा का विषय था, उसने संत को निराश करना शुरु कर दिया और तब अंगिरा ने उसे शाप दिया कि, ‘देखो! तुमने स्वर्ग से पृथ्वी को नीचा दिखाया है। तुम पर्वतीय क्षेत्र के जंगलों में मादा बंदर के रुप में पैदा हो।’
उसे फिर अपनी गलती का अहसास हुआ और संत से क्षमा याचना की। तब उस संत को उस पर थोड़ी सी दया आई और उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया कि, ‘प्रभु का एक महान भक्त तुमसे पैदा होगा। वह सदैव परमात्मा की सेवा करेगा।’ इसके बाद वह कुंजार (पृथ्वी पर बन्दरों के राजा) की बंटी बनी और उनका विवाह सुमेरु पर्वत के राजा केसरी से हुआ। उन्होंने पाँच दिव्य तत्वों जैसे- ऋषि अंगिरा का शाप और आशीर्वाद, उसकी पूजा, भगवान शिव का आशीर्वाद, वायु देव का आशीर्वाद और पुत्रश्रेष्ठी यज्ञ से हनुमान को जन्म दिया। यह माना जाता है, कि भगवान शिव ने पृथ्वी पर मनुष्य के रुप पुनर्जन्म 11वें रुद्र अवतार के रुप में हनुमान बनकर जन्म लिया, क्योंकि वे अपने वास्तविक रुप में भगवान श्री राम की सेवा नहीं कर सकते थे।
सभी वानर समुदाय सहित मनुष्यों को बहुत खुशी हुई और महान उत्साह और जोश के साथ नाच, गाकर और बहुत सी अन्य खुशियों वाली गतिविधियों के साथ उनका जन्मदिन मनाया। तभी से यह दिन उनके भक्तों के द्वारा उन्हीं की तरह ताकत और बुद्धिमत्ता प्राप्त करने के लिए हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है।
साधना हेतु मंत्र :-
मनोजवं मारुततुल्यवेगम्
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं
श्री रामदूतं शरणं प्रपद्ये।।