किसी भी पर्व पर पूजा-पाठ के साथ ही कथा का भी विशेष महत्व होता है। होलिका दहन के समय भी कथा करने का विधान है। मान्यता है इस दिन होलिका दहन की कथा करके पूजा
होलिका दहन पर पढ़ें ये पौराणिक कथा
होलिका दहन के मौके पर असुर राज हिरण्यकश्यप की कथा पढ़ी जाती है। इसके मुताबिक हिरण्यकश्यप काफी बलशाली असुर था। यही वजह थी कि उसको अपनी शक्तियों का भी खूब गुमान था। उसका यह अभिमान इस कदर बढ़ गया था कि उसने संपूर्ण प्रजा को उसे भगवान मानकर पूजा करने का आदेश दे डाला। उसने यह भी कहा कि अगर उसके अलावा किसी और भगवान की पूजा की गई तो वह ठीक नहीं होगा।
असुर राज को बेटे की भक्ति भी नहीं आई रास
असुर राज हिरण्यकश्यप का अभिमान इतना बढ़ गया था कि क्या प्रजा क्या उसका अपना वारिस। यानी कि बेटा। उसे यह नहीं पसंद था कि उसके अलावा किसी और की पूजा की जाए। लेकिन उसका बेटा प्रह्लााद नारायण का परम भक्त था। वह हर समय श्री हरि-श्री हरि का नाम जपता रहता था। हिरण्यकश्यप को इससे काफी समस्या थी। कई बार उसे खुद समझाया तो कई बार अपनी सभा के मंत्रिमंडल को भेजा। लेकिन प्रह्लााद पर इसका कोई असर नहीं हुआ। वह तो बस हरि भक्ति में ही लीन रहते।
जब नहीं बनी बात तो बुलवा भेजा बहन को
हिरण्यकश्यप के लाख समझाने के बाद भी जब प्रह्लााद नहीं माने तो असुर राज ने दूसरी ही युक्ति निकाली। उसने अपनी बहन होलिका को बुलवाया। इसके पीछे यह कारण था कि उसे वरदान में एक ऐसा दुशाला मिला था जिसे ओढ़ने के बाद अग्नि उसे छू भी नहीं सकती थी। हिरण्यकश्यप ने होलिका को यह आदेश दिया कि उन्हें प्रह्लााद को अपने गोदी में लेकर अग्नि में बैठना है। ताकि भगवान विष्णु का नाम लेने वाला प्रह्लााद जलकर भस्म हो जाए। या फिर अग्नि के डर से वह हिरण्यकश्यप को अपना भगवान मानने लगेगा।
फिर भी श्री हरि का जपते रहे नाम
हिरण्यकश्यप के आदेश पर होलिका अपने भतीजे प्रह्लााद को लेकर अग्नि में बैठ गई। उस समय होलिका ने वरदान में प्राप्त वही दुशाला ओढ़ा हुआ था। यह सबकुछ देखकर भी प्रह्लााद तनिक भी विचलित न हुए। पूरी श्रद्धा से वह भगवान विष्णु का नाम जपते रहे। थोड़ी ही देर में कुछ ऐसा हुआ कि शांत मौसम में भी तेज हवाएं चलने लगीं। वह भी इतनी तेज कि होलिका का दुशाला हवा में उड़कर प्रह्लााद के ऊपर चला गया और वह अग्नि में जलकर भस्म हो गई।
इस कथा के श्रवण मात्र से बनते है बिगड़े काम
होलिका दहन के पूर्व पूजन के दौरान असुर राज हिरण्यकश्यप और भक्तपरायण प्रह्लााद की यह कथा पढ़ने का विधान है। मान्यता है कि जो भी जातक इस कथा को पूरी श्रद्धा से पढ़ता या सुनता है। उसपर श्री हरि विष्णु की कृपा बनी रहती है। उसकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती हैं। साथ ही जीवन की सभी परेशानियां भी दूर हो जाती हैं। सुख-समृद्धि का वास होता है।