व्यक्ति पाप मानसिक और शारीरिक, दोनों रूप में करता है। इससे नैतिकता का हनन एवं व्यक्ति का मन कलुषित तथा वातावरण दूषित-कलंकित होता है। इसका परिणाम जीवन और समाज में अशांति, दुख, अनाचार, अत्याचार, प्राकृतिक आपदा के रूप में दृष्टिगोचर होता है
पाप की सजा प्रकृति में ईश्वरीय विधान अकाट्य है। गलत की सजा गलत और अच्छाई का फल पुरस्कार के रूप में प्राप्त होता है। अर्थात पुण्य का फल कर्म के उपहार स्वरूप सुख-शांति के रूप में प्राप्त होता है और पाप की सजा कष्ट-दुख के रूप में भोगनी पड़ती है।
पुण्यार्जन के लिए मनुष्य को सत्कर्म करने पड़ते हैं। सत्कर्म का मार्ग कठिन जरूर होता है, पर जिनका मन पवित्र और सच्चाई से सराबोर होता है, उनके लिए यह सरल हो जाता है। इसी के कारण उनकी गणना लौकिक संसार में अच्छे व्यक्तियों में की जाती है। उन्हें सदा मान-सम्मान और पद-प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती रहती है। पुण्य की प्रबलता ही व्यक्ति के जीवन को सफल और सार्थक बनाती है, जबकि पाप की प्रबलता मनुष्य को दुखों की दलदल में सजा भोगने के लिए धकेल देती है। निज स्वार्थ के लिए बेईमानी, हत्या, चोरी, निंदा और झूठ-फरेब का सहारा लेना सबसे बड़ा पाप है। प्रकृति में ईश्वरीय विधान अकाट्य है। गलत की सजा गलत और अच्छाई का फल पुरस्कार के रूप में प्राप्त होता है। अर्थात पुण्य का फल कर्म के उपहार स्वरूप सुख-शांति के रूप में प्राप्त होता है और पाप की सजा कष्ट-दुख के रूप में भोगनी पड़ती है।
व्यक्ति पाप मानसिक और शारीरिक, दोनों रूप में करता है। इससे नैतिकता का हनन एवं व्यक्ति का मन कलुषित तथा वातावरण दूषित-कलंकित होता है। इसका परिणाम जीवन और समाज में अशांति, दुख, अनाचार, अत्याचार, प्राकृतिक आपदा के रूप में दृष्टिगोचर होता है। व्यक्ति समझता है कि हम बुराई कर रहे हैं, कोई देख नहीं रहा है, पर हमारी गलती हमारे आत्मा से छुपी नहीं रहती है। हम पाप जितना भी छुपकर करें, पर ईश्वर व्यक्ति के अंतरात्मा की नेत्र से जरूर देख लेता है। जाहिर है व्यक्ति पाप करके पुलिस-कानून से भले बच जाए, पर ईश्वर से नहीं बच सकता है।
हालांकि हमारा आत्मा पाप करने से हमें रोकता है, पर हमारा आसुरी मन लोभ-मोह और अहंकार में अंधा होकर पाप में प्रवृत्त हो जाता है। ऐसे में हमें अपने मन को नियंत्रण में रखने के प्रयास करने चाहिए। यह मानव जीवन पाप-कुकर्म के लिए नहीं, पुण्य-सत्कर्म करके निज का उद्धार, जन-जन की भलाई के लिए प्राप्त हुआ है।