श्री कृष्ण लीला अध्यात्म की सबसे प्रसिद्ध कथाओं में से एक है। कृष्ण को लोग बिलकुल अलग अलग रूपों में देखते थे। आइये पढ़ते हैं कृष्ण की कहानियाँ और जानते हैं कि दुर्योधन, शकुनी और शिखंडी जैसे लोग उनके बारे में क्या कहते थे। साथ ही जानते हैं उनकी कुछ लीलाएं।
कृष्ण इतने बहुआयामी हैं, कि उनके आस-पास रहने वाले लोगों ने उन्हें बिलकुल अलग-अलग रूप में देखा था। आइये जानते हैं कि दुर्योधन, शकुनी और शिखंडी जैसे लोग उनके बारे में क्या कहते थे। साथ ही जानते हैं उनकी कुछ लीलाएं
कृष्ण एक बहुत नटखट बच्चे हैं। वे एक बांसुरी वादक हैं और बहुत अच्छा नाचते भी हैं। वे अपने दुश्मनों के लिए भयंकर योद्धा हैं। कृष्ण एक ऐसे अवतार हैं जिनसे प्रेम करने वाले हर घर में मौजूद हैं। वे एक चतुर राजनेता और महायोगी भी हैं। वो एक सज्जन पुरुष हैं, और ऐसे अवतार हैं जो जीवन के हर रंग को अपने भीतर समाए हुए हैं। जानते हैं उनके आस-पास के लोग उन्हें किस रूप में देखते थे।
1. कृष्ण के बारे में दुर्योधन, शकुनी और अन्य की राय
दुर्योधन
कृष्ण को अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग तरीकों से देखा और अनुभव किया है। इसे समझने के लिए दुर्योधन का उदाहरण लेते हैं। वह अपनी पूरी जिंदगी एक खास तरह की स्थितियों से घिरा रहा। इतिहास उसे एक ऐसे शख़्स की तरह देखता है, जो बहुत ही गुस्सैल, लालची और असुरक्षित था। वह हमेशा सब से ईर्ष्या करता रहा और सबका बुरा चाहता रहा। अपनी ईर्ष्या और लालच में उसने जो भी काम किये, वे उसके और उसके कुल के विनाश की वजह बन गए। ऐसा दुर्योधन कृष्ण के बारे में कहता है – “कृष्ण एक बहुत ही आवारा और मूढ़ व्यक्ति है, जिसके चेहरे पर हमेशा एक शरारती मुस्कान रहती है। वह खा सकता है, पी सकता है, गा सकता है, प्रेम कर सकता है, झगड़ा कर सकता है, बड़े उम्र की महिलाओं के साथ वह गप्पें मार सकता है, और छोटे बच्चों के साथ खेल भी सकता है। ऐसे में कौन कहता है कि वह ईश्वर है?”
शकुनी
महाभारत का ही एक और चरित्र है – शकुनि। शकुनि को कपट और धोखेबाजी का प्रतीक माना जाता है। वह कहता है – “अगर हम मान लें कि वह भगवान है तो इससे क्या फर्क पढ़ता है। आखिर भगवान कर क्या सकता है? भगवान बस अपने उन भक्तों को खुश कर सकता है, जो उसकी पूजा करते हैं और उसे प्रसन्न रखते हैं। होने दो उसे भगवान, लेकिन मैं तो उसे बिलकुल पसंद नहीं करता। जब आप किसी को बिलकुल पसंद नहीं करते, तब भी आपको उसकी प्रशंसा करनी चाहिए।”
राधा
कृष्ण की बचपन की सखी और प्रेमिका राधे उनको बिलकुल अलग तरीके से देखती थी। राधा कौन थी? एक साधारण सी गांव की लड़की, जो दूध का काम करती थी। लेकिन राधा के नाम के बिना कृष्ण का नाम अधूरा माना जाता है, क्योंकि कृष्ण के प्रति उनमें अत्यंत श्रद्धा और प्रेम था। हम कृष्ण-राधे कभी नहीं कहते हैं; हम कहते हैं राधे-कृष्ण। एक साधारण सी गांव की लड़की इतनी महत्वपूर्ण हो गयी, जितने कि स्वयं कृष्ण।और कहीं-कहीं तो वे कृष्ण से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गयी है। कृष्ण के बारे में राधा कहती है – “कृष्ण मेरे भीतर हैं। मैं कहीं भी रहूँ, वे हमेशा मेरे साथ हैं। वे किसीके भी साथ रहें, तो भी वे मेरे साथ हैं।”
गरुड़ के पुत्र वेन्तेय
गोमांतक पर्वत पर रहने वाले गरूड़ के पुत्र थे – वेन्तेय। वे किसी बीमारी की वजह से पूरी तरह अपंग हो गए थे। जब वे कृष्ण से मिले तो उनकी बीमारी पूरी तरह ठीक हो गयी, और वे अपने दम पर चलने लगे। वे कहते हैं – “मेरे लिए तो कृष्ण भगवान हैं।”
कृष्ण के चाचा अक्रूर
कृष्ण के चाचा अक्रूर एक बुद्धिमान और सज्जन पुरुष थे। उन्होंने कृष्ण के बारे में अपनी सोच को इस तरह बताया है – “इस युवा बालक को देखकर मुझे लगता है मानो सूर्य, चन्द्र, तारे सब कुछ उसके चारों तरफ चक्कर काट रहे हों। जब वो बोलता है तो ऐसा लगता है, मानो कोई शाश्वत और अविनाशी आवाज़ सुनाई दे रही हो। अगर इस संसार में आशा नाम की कोई चीज़ है, तो वह स्वयं कृष्ण ही है। “
शिखंडी
शिखंडी के बारे में तो हम सभी जानते हैं कि उसकी स्थितियां कुछ अलग तरह की थीं। बचपन से ही उन्हें काफी सताया गया था। उनकी सुनिए – “वैसे तो कृष्ण ने मुझे उम्मीद की कोई किरण नहीं दिखाई है। लेकिन वह जहां भी होते हैं, आशा की एक लहर चलती है जो सबको छूती है। और सबका जीवन बदल देती है।”
2.श्री कृष्ण की बचपन की कहानी
कृष्ण जन्म
वसुदेव ने अपने आठवें पुत्र को नंद और यशोदा की पुत्री के स्थान पर रख दिया और उस नन्ही बच्ची को लेकर वापस आ गए। जब कंस वहाँ पहुंचा तो वसुदेव और देवकी ने उसे कहा इसे छोड़ दो ये तो लड़की है। पर कंस नहीं माना उर उसने उस बच्ची को जमीन पर पटकना चाहा। पर वो बच्ची जमीन पर नहीं गिरी उसने एक अलग ही रूप धारण कर लिया…
कृष्ण का बाल्यकाल
कृष्ण माखन चुराया करते थे, और माखन ही गोप गोपियों की आजीविका थी। ऐसे में वे कृष्ण की माँ से शिकायत करतीं थीं। पर कृष्ण मासूम बनकर उन्हें फिर से मना लेते थे।
कृष्ण की मधुर मुस्कान
कृष्ण के सांवले होने पर भी हर कोई उनपर मुग्ध था। ऐसा इसलिए था क्योंकि वे हर समय मुस्कुराते रहते थे।
कृष्ण ने उठाया गोवेर्धन पर्वत
गोकुल के लोगों में इन्द्रोत्सव मनाने की परंपरा थी। पर कृष्ण के कहने पर उन्होंने गोपोत्सव मनाने का फैसला किया। उसी समय गोकुल में भारी वर्षा हुई और यमुना का स्तर इतना बढ़ गया कि सब कुछ डूबने लगा। ऐसे में कृष्ण सभी को गोवेर्धन पर्वत की गुफाओं तक ले गए। तभी अचानक एक च्चम्त्कार हुआ और पर्वत जमीन से ऊपर उठ गया।
3.कृष्ण – एक गुरु के रूप में
भक्ति योग का महत्व
श्रीमद भगवद गीता के बारहवे अध्याय में कृष्ण से अर्जुन ने चैतन्य के निराकार और साकार स्वरुप के अंतर के बारे में पूछा था। श्री कृष्ण बताते हैं कि निराकार की साधना कठिन है, पर भक्ति का मार्ग सरल है। वे अर्जुन को बताते हैं कि अगर वो पूरे विश्वास के साथ उनमें मन लगाए तो वो मुक्ति को प्राप्त हो जाएगा।
मृत्यु के पल का महत्व
श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि मृत्यु के समय जो भी मनुष्य उन्हें याद करते हुए अपना शरीर त्यागता है, वे उन्हें प्राप्त हो जाता है। सद्गुरु हमें आखिरी पल पर उठने वाले विचारों का महत्व समझाते हैं और बताते हैं कि मुक्ति को पाने के लिए अंतिम समय में कैसी भीतरी स्थिति की जरूरत होती है।
कृष्ण भक्तों को क्यों झेलने पड़े कष्ट?
बलराम ने एक बार कृष्ण से ये प्रश्न पुछा कि तुम्हारे होते हुए, हमें इतने कष्ट क्यों झेलने पड़ रहे हैं। इस पर श्री कृष्ण ने उन्हें आध्यात्मिक पथ की प्रकृति के बारे में समझाया। वे बता रहे हैं कि एक बार पथ पर आने के बाद किस तरह आपके कर्म तेज़ी से चलते हैं और आप जीवन को हर रूप में बहुत तीव्रता से अनुभव करते हैं।
4.कृष्ण का जीवन
भगवान कृष्ण की साधना
एक साधक ने सद्गुरु से प्रश्न पूछा कि भगवान कृष्ण ने अपने जीवन में क्या साधना की थी। सद्गुरु हमें बता रहे हैं कि कृष्ण जीवन के हर पल आनंदित और चेहरे पर मुस्कान लिए रहते थे। यही उनकी साधना थी। इसके अलावा वे हमें उस साधना के बारे में भी बता रहे हैं जो कृष्ण ने गुरु संदीपनी के सानिध्य में की थी।
कृष्ण का ब्रह्मचर्य और उनकी लीलाएं
भगवान कृष्ण ने गोपियों के साथ रस लीलाएं रचाई थीं। पर फिर उन्होंने कुछ वर्ष ब्रह्मचारी का जीवन भी जिया था। सद्गुरु हमें बता रहे हैं कि ब्रह्मचर्य का जीवन जीने का मतलब है – मैं और तुम का फर्क न होना। कृष्ण में ये गुण बचपन से ही था, जब उन्होंने माता यशोदा को अपने मुख में पूरे ब्रह्माण्ड के दर्शन कराये थे।
जरासंध और शिशुपाल का अंत
शिशुपाल कृष्ण की बुआ का बेटा था। उसे कृष्ण से बहुत ईर्ष्या थी, और वो हमेशा कृष्ण को अपशब्द कहता रहता था। कृष्ण ने वचन दिया था कि वे उसकी निन्यानवे गलतियां माफ़ कर देंगे, पर एक और गलती करने पर वे खुद को नहीं रोक पाएंगे। एक दिन शिशुपाल भीष्म और उनकी माता गंगा के बारे में अपशब्द कहने लगा और वो उसकी एक सौ वीं गलती थी…
श्रीगला वासुदेव का अंत
करावीरपुर का राजा श्रीगाला वासुदेव खुद को भगवान का अवतार मानता था। उसे यही लगता था कि असली वासुदेव वही है, जिसके बारे में भविष्य वाणी की गयी थी। एक बार श्री कृष्ण और श्रीगला आमने सामने आए, और श्रीगला ने कृष्ण पर बाण चलाने शुरू कर दिए। कृष्ण ने इशारों से उसे समझाना चाहा, पर वो नहीं माना। आखिरकार कृष्ण ने सुदर्शन चला दिया…
5.कृष्ण लीला की कहानी – कृष्ण के जीवन में महिलायें
कृष्ण और राधे
कृष्ण ने राधे से विवाह करने का फैसला अपने माता पिता को बता दिया था। लेकिन फिर गुरु गर्गाचार्य ने जब ये बताया कि वे तारनहार हैं, तो उनके भीतर एक रूपांतरण हुआ और उन्होंने अपना फैसला बदल लिया।
कृष्ण और शैब्या
करावीरपुर के राजा श्रीगला वासुदेव को मारने के बाद कृष्ण शैब्या को अपने साथ अपनी बहन बना कर ले गए थे। पर शैब्या कृष्ण से क्रोधित थी क्योंकि वो श्रीगला को भगवान मानती थी। श्री कृष्ण ने उसे एक दिन उसे श्रीगला की एक मुर्ति भेंट की और उसकी पूजा करने को कहा। फिर धीरे धीरे उसमें रूपांतरण आने लगा…
कृष्ण और यशोदा
जब कृष्ण छोटे बालक थे तब यशोदा के भीतर मातृत्व का प्रेमपूर्ण भाव था। लेकिन कृष्ण जब एक युवा में रूपांतरित हुए तो यशोदा भी एक गोपी की तरह उनसे जुड़ गयीं।
कृष्ण और रुक्मणि
रुक्मणि ने कृष्ण को तब देखा था, जब वे 12 वर्ष की थीं। उसी समय रुक्मणि ने ये निर्णय कर लिया था, कि वे श्री कृष्णा से ही विवाह करेंगी। लेकिन उसके घरवालों ने रुक्मणि का कहीं और विवाह करने का फैसला किया। आखिरकार कृष्ण ने उन्हें उस स्थिति से निकाला
6.कृष्ण की कृपा
द्रौपदी का चीर हरण बचाया कृष्ण ने
पांडवों और कौरवों के बीच के जुए के खेल में हार जाने के बाद, दुह्शासन ने द्रौपदी का चीर हरण करने का प्रयास किया। उस समय कृष्ण वहाँ मौजूद नहीं थे, वे द्वारका में थे। सद्गुरु हमें बता रहे हैं, कि अगर शिष्य दीक्षित हो तो कैसे कृपा गुरु की मौजूदगी के बिना भी काम कर सकती है। वे बताते हैं, कि ऐसा जरुरी नहीं – कि जिसके माध्यम से कृपा कार्य कर रही है, उसे उस समय इस बात की जानकारी हो।
कृष्ण का नीला रंग
कृष्ण को जहां भी चित्रित किया जाता है, उन्हें नीले रंग का दर्शाया जाता है। सद्गुरु हमें बता रहे हैं, कि नीला रंग कृष्ण से कैसे जुड़ा है। वे बता रहे हैं कि समस्त ब्रह्माण्ड को समाहित करने की उनके क्षमता के कारण उनका आभामंडल नीला हो गया था।
कृष्ण की त्रिवक्रा पर कृपा
त्रिवक्रा मथुरा में रहती थी, और वो किसी बीमारी की वजह से अपंग हो गयी थी। उसे किसी ने बताया था, कि वसुदेव पुत्र श्रे कृष्ण तारणहार हैं, और वे उसे मुक्त कर सकते हैं। सद्गुरु हमें बता रहे हैं कि कैसे त्रिवक्रा ने कृष्ण को देखते ही पहचान लिया, और फिर कृष्ण ने उसके अंगों को ठीक कर दिया।
क्यों झेलने पड़े कृष्ण को कष्ट?
एक साधक ने प्रश्न पूछा कि अवतारी पुरुष जैसे कृष्ण और शिव भी कष्ट झेलते हैं। मनुष्यों के ऊपर कष्ट उनके प्रारब्ध की वजह से आते हैं , फिर अवतारों के जीवन में कष्ट क्यों आते हैं। सद्गुरु बता रहे हैं कि शरीर धारण करने पर वे भी भौतिक जगत के नियमों के अंतर्गत आ जाते हैं।
कृष्ण भक्त मीरा बाई की कथा
मीरा बाई को उनकी माँ ने बचपन में कृष्ण की छवि की ओर इशारा करते हुए कहा था – ये तुम्हारे पति हैं। उस दिन से ही मीरा ने उन्हें अपना पति मान लिया, और ये भक्ति इतनी गहरी हुई कि विष का प्याला भी उन पर बेअसर हो गया। सद्गुरु हमें मीरा बाई के जीवन की कथा और उनके मेड़ता और चित्तौड़ से वृंदावन और द्वारका के सफर के बारे में बता रहे हैं।