उपासना का पर्व है। गजब का है ये शक्तिपीठ, यहां दर्शन से एक, दो नहीं सात जन्मों के पापों से मिल जाती है मुक्ति शारदीय नवरात्र पर्व की पौराणिक कथा शास्त्रों में नवरात्र पर्व मनाए जानेशारदीय नवरात्र मां नवदुर्गा जी की उपासना का पर्व हर साल यह पावन पर्व श्राद्ध खत्म होते ही शुरू हो जाता है। लेकिन इस बार ऐसा अधिक मास के कारण संभव नहीं हो पाया।
क्या है शारदीय नवरात्र का महत्व और क्या है इसकी पौराणिक कथा?
शारदीय नवरात्र का महत्व
धर्म ग्रंथों एवं पुराणों के अनुसार, शारदीय नवरात्र भगवती दुर्गाजी की आराधना का श्रेष्ठ समय होता है। नवरात्र के पावन दिनों में हर दिन मां के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है। जो अपने भक्तों को खुशी, शक्ति और ज्ञान प्रदान करती हैं। नवरात्र का हर दिन देवी के विशिष्ठ रूप को समर्पित होता है और हर देवी स्वरूप की कृपा से अलग-अलग तरह के मनोरथ पूर्ण होते हैं। नवरात्र का पर्व शक्ति की उपासना का पर्व है।
शारदीय नवरात्र पर्व की पौराणिक कथा
शास्त्रों में नवरात्र पर्व मनाए जाने की दो पौराणिक कथाएं हैं। पहली पौराणिक कथा के अनुसार महिषासुर नाम का एक राक्षस था जो ब्रह्माजी का बड़ा भक्त था। उसने अपने तप से ब्रह्माजी को प्रसन्न करके एक वरदान प्राप्त कर लिया। वरदान में उसे कोई देव, दानव या पृथ्वी पर रहने वाला कोई मनुष्य मार ना पाए। वरदान प्राप्त करते ही वह बहुत निर्दयी हो गया और तीनों लोकों में आतंक माचने लगा। उसके आतंक से परेशान होकर देवी देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ मिलकर मां शक्ति के रूप में दुर्गा को जन्म दिया। मां दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ और दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। इस दिन को अच्छाई पर बुराई की जीत के रूप में मनाया जाता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम ने की थी नवदुर्गा की उपासना
दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले और रावण के साथ होने वाले युद्ध में जीत के लिए शक्ति की देवी मां भगवतीजी की आराधना की थी। रामेश्वरम में उन्होंने नौ दिनों तक माता की पूजा की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने श्रीराम को लंका में विजय प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। दसवें दिन भगवान राम ने लंका नरेश रावण को युद्ध में हराकर उसका वध कर लंका पर विजय प्राप्त की। इस दिन को विजयदशमी के रूप में जाना जाता है।
नवरात्र में होती है मां के इन 9 रूपों की पूजा
नवरात्र के 9 दिनों में देवी भगवती के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-उपासना की जाती है। पहले दिन मां शैलपुत्री, दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा, चौथे दिन मां कुष्मांडा, पांचवें दिन मां स्कंदमाता, छठे दिन मां कात्यायनी, सातवें दिन मां कालरात्रि, आठवें दिन मां महागौरी और नौवें और अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।नवरात्र के पहले दिन विधिनुसार घटस्थापना का विधान है।