सालों पहले एक गांव में ऐसा गरीब धार्मिक ब्राह्मण रहता था, जिसकी कोई संतान नहीं थी। वह रोज नहा-धोकर मन से देवताओं की पूजा करते हुए संतान की मांग करता, लेकिन ब्राह्मण की पत्नी खूब आलसी थी। वह न स्नान करती थी और न ही पूजा-पाठ। पत्नी की इस आदत से ब्राह्मण दुखी रहता था।
ब्राह्मण के धार्मिक गुणों से उसके घर में जल्द ही संतान के रूप में एक पुत्री ने जन्म लिया। उसकी पुत्री भी ब्राह्मण की ही तरह धार्मिक थी। जैसे-जैसे वो बड़ी हो रही थी, पूजा-पाठ में उसका मन भी उतना ही लगने लगा। वह हर रोज सुबह उठती, स्नान करती और भगवान विष्णु का ध्यान व जप करती थी। इसी तरह वो बृहस्पतिवार का उपवास भी करने लगी। इससे ब्राह्मण के घर की गरीबी भी दूर होती गई।
हर दिन पूजा-पाठ करने के बाद वह पढ़ने के लिए स्कूल भी जाती थी। स्कूल जाते समय वह अपनी हाथों की मुट्ठियों में जौ भरकर स्कूल के रास्ते में गिराती थी। जब वह स्कूल से वापस घर के लिए आती, तो गिराए गए जौ के दाने सोने में बदल जाते थे, जिन्हें उठाकर वह घर लेकर चली आती थी।
एक दिन ब्राह्मण की बेटी सोने के जौ सूप से साफ कर रही थी। तभी वहां आकर उसकी मां ने कहा, “बेटी, सोने के जौ को साफ करने के लिए सोने का सूप होना चाहिए।”
ब्राह्मण की बेटी को मां की बात एकदम सही लगी। उसके अगले बृहस्पतिवार को उपवास रखने के बाद उस लड़की ने बृहस्पति देव से सोने का सूप मांगा।
ब्राह्मण की बेटी हर बार पूरे विधि-विधान से बृहस्पति देव की पूजा-अर्चना करती थी। इससे प्रसन्न होकर भगवान उसकी सारी इच्छाएं भी पूरी कर देते थे। इसी तरह उन्होंने सोने के सूप वाली प्रार्थना को भी स्वीकार कर लिया।
अगले दिन हर रोज की तरह ब्राह्मण की बेटी पूजा-पाठ करके स्कूल गई और रास्ते में जौ के दाने बोते हुए गई। वापस आते समय जब वह जौ के दाने बिन रही थी, तो उसे सोने का सूप भी मिल गया। सोने का सूप लेकर वह घर आई, जिससे उसने सोने के जौ साफ किए।
एक दिन इसी तरह ब्राह्मण की बेटी घर के बाहर बैठ कर सोने के जौ को सोने के सूप से साफ कर रही थी। तभी उसके घर के सामने से एक राजकुमार गुजर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण की बेटी को देखते ही उस पर मोहित हो गया। जब वह अपने महल पहुंचा, तो ब्राह्मण की बेटी के मोह में उसने खान-पीना त्याग दिया। जब राजा को यह पता चला, तो उन्होंने राजकुमार से इसका कारण पूछा। राजकुमार ने अपने दिल का सारा हाल राजा को बताया।
अगले ही दिन राजा अपने मंत्री के साथ ब्राह्मण के घर गया और ब्राह्मण के सामने उसकी बेटी का विवाह अपने राजकुमार से करवाने का प्रस्ताव रखा।
राजा का प्रस्ताव सुनकर ब्राह्मण काफी खुश हो गया। उसने तुरंत ही विवाह करने के लिए हां कर दी। कुछ ही दिनों में राजकुमार और ब्राह्मण की बेटी की शादी हो गई।
इधर, ब्राह्मण की बेटी शादी होने के बाद अपने ससुराल चली गई। उधर, ब्राह्मण फिर से गरीब होने लगा। उसके बुरे दिन दोबारा वापस आ गए।
एक दिन ब्राह्मण अपनी बेटी से मिलने के लिए उसके ससुराल गया। पिता की हालत देखकर उसने बहुत सारा धन देकर ब्राह्मण को विदा किया। बेटी का दिया हुआ धन कुछ ही दिनों में खत्म हो गया और ब्राह्मण गरीबी की वजह से परेशान हो गया।
ब्राह्मण फिर से अपनी बेटी से मिलने के लिए महल गया और उसने बेटी को सारी समस्याएं बताई। अपने गरीब ब्राह्मण पिता की बात सुनकर उसकी बेटी ने कहा, “पिताजी, कल आप मां को लेकर मेरे पास आएं। मैं उन्हें बृहस्पति देव के उपवास और पूजन की विधि बताऊंगी। इसे करने से सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी।”
ब्राह्मण ने ऐसा ही किया। अगले दिन वह अपनी पत्नी को लेकर महल में बेटी से मिलने के लिए गया। पुत्री ने अपनी मां को बहुत समझाया कि उन्हें आसल त्याग कर सुबह स्नान करना चाहिए और भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए, लेकिन ब्राह्मण की पत्नी ने उसकी एक भी बात नहीं सुनी। वह अभी भी पहले की ही तरह रहती थी।
मां की ऐसी हरकतों से तंग आकार एक दिन उसकी पुत्री ने मां को एक कोठरी में बंद कर दिया। उसे जबरन सुबह स्नान करवाया और भगवान विष्णु की पूजा करवाई। इससे उसकी मां की बुद्धी में सुधार हो गया।
अगले ही दिन से ब्राह्मण की पत्नि सुबह उठती, स्नान करती और भगवान विष्णु की पूजा करती। साथ ही बेटी के बताए अनुसार हर बृहस्पतिवार के दिन वह उपवास भी करने लगी। इससे प्रसन्न होकर बृहस्पति देव ने उनकी सारी गरीबी और सम्याएं दूर कर दी। फिर वह एक सुखी और संपन्न जीवन जीने लगे। इस व्रत के प्रभाव से मृत्यु के बाद ब्राह्मण और उसकी पत्नी को स्वर्ग का द्वार भी मिला।
कहानी से सीख – आलस्य करने से किसी भी तरह का काम नहीं बनता है। आलस्य को छोड़कर सुबह जल्दी उठकर पूजा-पाठ की जाए, तो मन भी शांत रहता है और मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं।