
Lord Brahma:सनातन धर्म में भगवान ब्रह्मा एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा tridev त्रिदेवों में से एक हैं जो सृष्टि के सृजन का कार्यभार संभालते हैं। सृष्टि के सृजन के लिए ही उन्होंने मानस पुत्रों को भी जन्म दिया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिसने इस सृष्टि का निर्माण किया है खुद उनका जन्म कैसे हुआ।
Lord Brahma: सनातन धर्म में ब्रह्मा जी को सृष्टि के सृजनकर्ता के रूप में जना जाता है। वह त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश (भगवान शिव) में से एक हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, त्रिदेव के पास सृष्टि के सृजन, संतुलन और विनाश करने का कार्यभार है। लेकिन आपके मन में यह सवाल जरूर उठता होगा कि जिसने इस पुरी सृष्टि का सृजन किया है खुद उनका जन्म कैसे हुआ। आइए जानते हैं कि ब्रह्मा जी के जन्म को लेकर शिव पुराण में क्या कहा गया है।
How did Brahma ji come into existence:कैसे हुई ब्रह्मा जी की उत्पत्ति
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा जी की उत्पत्ति क्षीरसागर में विराजमान भगवान विष्णु की नाभि से निकले कमल के द्वारा हुई थी। इसलिए वह स्वयंभू भी कहे जाते हैं। ब्रह्मा जी के 4 मुख होने के पीछे ये कारण बताया जाता है कि जब उनकी उत्पत्ति हुई तो उन्होंने अपने चारों और देखा जिस कारण उनके चार मुख हो गए।
वहीं, शिवपुराण में कथा मिलती है कि एक बार ब्रह्मा जी अपने पुत्र नारद जी से कहते हैं कि विष्णु को उत्पन्न करने के बाद सदाशिव और शक्ति ने पूर्ववत प्रयत्न करके मुझे (ब्रह्माजी को) अपने दाहिने अंग से उत्पन्न किया और तुरंत ही मुझे विष्णु के नाभि कमल में डाल दिया। इस प्रकार उस कमल से पुत्र के रूप में मेरा जन्म हुआ।
क्यों पड़ा ब्रह्मा नाम:Why was he named Brahma?
भारतीय दर्शन शास्त्र के अनुसार, जो निर्गुण (जो तीनों गुणों -सत्व, रज और तम से से परे हो) निराकार और सर्वव्यापी है वह ब्रह्म कहलाता है। इसलिए ये सभी गुण होने के कारण उन्हें ब्रह्मा नाम से पुकारा जाता है। साथ ही ब्रह्मा जी को स्वयंभू, विधाता, चतुरानन आदि नामों से भी जाना जाता है।
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ब्रह्मा जी के रोचक तथ्य:Interesting facts about Brahma Ji
Lord Brahma ब्रह्मा जी ने अपने हाथों में क्रमशः वरमुद्रा, अक्षरसूत्र, वेद और कमण्डलु धारण किए हुए हैं। ब्रह्मा जी का वाहन हंस माना जाता है। ब्रह्मा जी की पत्नी का नाम सावित्रि है। देवी सरस्वती को उनकी पुत्री माना जाता है। भगवान विष्णु की प्रेरणा से देवी सरस्वती को Lord Brahma ब्रह्मा जी ने ही सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान कराया था। सभी देवताओं को Lord Brahma ब्रह्मा जी का पौत्र माना गया है। यही कारण है कि उन्हें पितामह भी कहा जाता है। ब्रह्मा जी देवता, दावन तथा समस्त जीवों के पितामह माने जाते हैं।
Lord Brahma:ब्रह्मा जी ने कैसे की थी सृष्टि की रचना? जानें इसके पीछे की खास कथा
सनातन धर्म के अनुसार, ब्रह्मा जी को सृष्टि का रचयिता माना जाता है. उन्होंने जल का छिड़काव करके एक विशाल अंड का निर्माण किया, जिसमें सदाशिव ने अपनी चेतना प्रवाहित की. इसी चेतना से विभिन्न अंग उत्पन्न हुए और उन्होंने संपूर्ण पृथ्वी को आवृत कर लिया. इसके उपरांत, ब्रह्मा जी ने सृष्टि की संरचना प्रारंभ की. ब्रह्म पुराण में भी इस बात का जिक्र है कि सृष्टि का जन्म Lord Brahma ब्रह्मदेवता द्वारा हुआ है. सत्यार्थ नायक की ‘महागाथा’ किताब के जरिए जानते हैं कि आखिर ब्रह्मा जी ने किस तरह से सृष्टि की रचना की थी और इसके पीछे की क्या कथा है?
सृष्टि में केवल परब्रह्म था. वह एक सर्वोच्च सिद्धांत (तत्त्व) था जिसका ना कोई आरंभ था, ना अंत. वह परम सत्य था जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता. वह एक दिव्य सार-तत्त्व था जिसके भीतर अनंत क्षमता मौजूद थी. कारण और प्रभाव मिलकर एक हो गए थे. Lord Brahma उसका आकार नहीं था किंतु वह निराकार भी नहीं था. उसमें कोई गुण नहीं था किंतु वह गुणों से रहित भी नहीं था. विचारों और इंद्रियों की पहुंच से परे से वह एक विशुद्ध चेतना थी. एक ऐसा उत्प्रेरक, जो खुद तो परिवर्तित नहीं होता किंतु हर तरह का परिवर्तन ला सकता था.
परब्रह्म की इच्छा हुई तभी भौतिक ब्रह्मांड का निर्माण आरंभ हुआ. ब्रह्मांड प्रकट होने को तैयार था. परब्रह्म की इस इच्छा ने एक कंपन पैदा किया जिससे पहली ध्वनि का जन्म हुआ और वह ध्वनि थी-ओम (ऊं). इस एक ध्वनि में समस्त ध्वनियां समाहित थीं. सबसे पहले बनने वाले मूल तत्त्व को महत् तत्त्व कहा गया, जिससे तीन गुणों की उत्पत्ति हुई. सत्व गुण- जो संरक्षण का प्रतीक है, रजो गुण- जो क्रिया को दर्शाता है और तमो गुण- जो विनाश का सूचक है. इन तीन गुणों के पारस्परिक प्रभाव से पांच भौतिक तत्त्वों यानी पंचतत्त्व का जन्म हुआ. वायु, जल, पृथ्वी, अग्नि और आकाश.
इन तत्त्वों के साथ में मिलने से प्रकृति अस्तित्व में आई. इन गुणों ने पांच इंद्रियों को भी उत्पन्न किया. दृष्टि, श्रवण, स्पर्श, गंध और स्वाद. इन पांचों को महसूस करने के लिए पांच ज्ञानेन्द्रियां विकसित हुईं जिन्हें मन द्वारा संचालित किया गया. पदार्थ की उत्पत्ति के साथ संवेदना प्रकट हुई. इसके बाद जल प्रवाहित हुआ जिसने सब कुछ ढक लिया. हर जगह केवल जल था किंतु ऐसा कुछ नहीं था जो उस जल में डूब जाता. तब परब्रह्म ने स्वयं एक दिव्य स्वरूप धारण किया जो जल से भरे सरोवर में कमल-दल बनकर प्रकट हुआ.
जल को ‘नार’ और निवास को ‘अयन’ कहते हैं. इस तरह इस दिव्य स्वरूप को नाम मिला- नारायण. फिर परब्रह्म ने अपना अंश जल में प्रत्यारोपित किया. इस तरह जल ने स्वयं निषेचित होकर उस अंश का पालन-पोषण किया. एक सुनहरा अंड, जो प्रकाश-वृत्त की तरह चमक रहा था. चूंकि यह अंड, परब्रह्म से उत्पन्न हुआ इसलिए इसे ‘ब्रह्मांड’ कहा गया. फिर नारायण ने विष्णु बनकर इस अंड में प्रवेश किया. जिसमें विष्णु सर्वव्यापी थे और वे संरक्षक कहलाए, उन्हें सत्त्व गुण का अधिष्ठाता माना गया. चूंकि उस सुनहरे वृत्त अर्थात् हिरण्य ने विष्णु को गर्भ की तरह ढक लिया था इसलिए उस अंड को नाम मिला- हिरण्यगर्भ.
विष्णु की नाभि से चौदह पंखुड़ियों वाला एक कमल-पुष्प निकला और फिर इस पुष्प से ब्रह्मा प्रकट हुए. यह परब्रह्म की एक और दिव्य अभिव्यक्ति थी. ब्रह्मा सृष्टि के रचयिता थे. उन्हें रजो गुण का अधिष्ठाता माना गया. सृष्टि के इस जनक के एक हाथ में कमंडल था और दूसरे में माला थी. इस प्रकार नाभि से निकले कमल में से उत्पन्न होने के कारण Lord Brahma ब्रह्मा को ‘पद्मयोनि’ और ‘नाभिज’ जैसे अन्य नाम मिले.
सीप में जिस तरह मोती पलता है, उस तरह हिरण्यगर्भ के भीतर एक वर्ष रहने के बाद ब्रह्मा ने उस सुनहरे अंडे को दो हिस्सों में विभाजित कर दिया. उसका ऊपर का आधा भाग, स्वर्ग कहलाया Lord Brahma और निचले आधे भाग से पृथ्वी बनी. दोनों के बीच में आकाश व्याप्त था. ब्रह्मा ने सृष्टि के चक्र का आरंभ कर दिया था और वे जानते थे कि इसका अंत कैसे होगा. रचना (सर्ग) के बाद संरक्षण (स्थिति) और अंत में, विघटन (प्रलय). इस चक्र का अंत होने पर एक नया चक्र आरंभ होगा. प्रत्येक चक्र के अंत में जब सब कुछ अव्यवस्था के अतिप्राचीन सागर में विलीन हो जाएगा, तो ब्रह्मा इस प्रक्रिया को पुनः आरंभ करेंगे.
चक्रों का एक शाश्वत क्रम. परस्पर गुंथे हुए वृत्तों से निर्मित ब्रह्मांड. यह ब्रह्मांड, अंधकार से भरे आकाश में हुई आतिशबाजी की तरह अस्तित्व में आया था. Lord Brahma ब्रह्मा बैठे अपनी इस रचना को निहार रहे थे. फिर उन्होंने ध्यान की अवस्था में प्रवेश किया और उसकी गहराइयों से चारों वेदों की उत्पत्ति हुई. ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद.