Saraswati Chalisa:श्री सरस्वती चालीसा: ज्ञान की देवी की स्तुति

Saraswati Chalisa:श्री सरस्वती चालीसा ज्ञान, संगीत और कला की देवी माता सरस्वती की स्तुति में गाया जाने वाला एक प्रसिद्ध चालीसा है। Saraswati Chalisa यह चालीसा विद्यार्थियों, लेखकों, कलाकारों और सभी उन लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जो ज्ञान और बुद्धि प्राप्त करना चाहते हैं।

Saraswati Chalisa:श्री सरस्वती चालीसा का महत्व

  • ज्ञान वृद्धि: यह चालीसा ज्ञान वृद्धि के लिए जानी जाती है।
  • बुद्धि विकास: यह बुद्धि को तेज करती है।
  • सृजनात्मकता: यह सृजनात्मकता को बढ़ावा देती है।
  • विद्या प्राप्ति: यह विद्या प्राप्ति का एक शक्तिशाली साधन है

Saraswati Chalisa:श्री सरस्वती चालीसा का पाठ कैसे करें?

  • शुद्ध मन से: चालीसा का पाठ करते समय मन को शुद्ध रखना चाहिए और Saraswati Chalisa माँ सरस्वती पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए।
  • नियमित पाठ: नियमित रूप से पाठ करने से अधिक लाभ मिलता है।
  • विधि-विधान: कुछ भक्त विशेष विधि-विधानों के साथ चालीसा का पाठ करते हैं, जैसे कि दीपक जलाना, फूल चढ़ाना आदि।

Saraswati Chalisa:श्री सरस्वती चालीसा के कुछ लाभ

  • ज्ञान वृद्धि: यह ज्ञान में वृद्धि करती है।
  • बुद्धि विकास: यह बुद्धि को तेज करती है।
  • सृजनात्मकता: यह सृजनात्मकता को बढ़ावा देती है।
  • मन की शांति: यह मन को शांत करती है।

Saraswati Chalisa:सरस्वती चालीसा

॥ दोहा ॥
जनक जननि पद्मरज,
निज मस्तक पर धरि ।
बन्दौं मातु सरस्वती,
बुद्धि बल दे दातारि ॥

पूर्ण जगत में व्याप्त तव,
महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को,
मातु तु ही अब हन्तु ॥

॥ चालीसा ॥
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी ।
जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी ॥

जय जय जय वीणाकर धारी ।
करती सदा सुहंस सवारी ॥

रूप चतुर्भुज धारी माता ।
सकल विश्व अन्दर विख्याता ॥4

जग में पाप बुद्धि जब होती ।
तब ही धर्म की फीकी ज्योति ॥

तब ही मातु का निज अवतारी ।
पाप हीन करती महतारी ॥

वाल्मीकिजी थे हत्यारा ।
तव प्रसाद जानै संसारा ॥

रामचरित जो रचे बनाई ।
आदि कवि की पदवी पाई ॥8

कालिदास जो भये विख्याता ।
तेरी कृपा दृष्टि से माता ॥

तुलसी सूर आदि विद्वाना ।
भये और जो ज्ञानी नाना ॥

तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा ।
केव कृपा आपकी अम्बा ॥

करहु कृपा सोइ मातु भवानी ।
दुखित दीन निज दासहि जानी ॥12

पुत्र करहिं अपराध बहूता ।
तेहि न धरई चित माता ॥

राखु लाज जननि अब मेरी ।
विनय करउं भांति बहु तेरी ॥

मैं अनाथ तेरी अवलंबा ।
कृपा करउ जय जय जगदंबा ॥

मधुकैटभ जो अति बलवाना ।
बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना ॥16

समर हजार पाँच में घोरा ।
फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा ॥

मातु सहाय कीन्ह तेहि काला ।
बुद्धि विपरीत भई खलहाला ॥

तेहि ते मृत्यु भई खल केरी ।
पुरवहु मातु मनोरथ मेरी ॥

चंड मुण्ड जो थे विख्याता ।
क्षण महु संहारे उन माता ॥20

रक्त बीज से समरथ पापी ।
सुरमुनि हदय धरा सब काँपी ॥

काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा ।
बारबार बिन वउं जगदंबा ॥

जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा ।
क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा ॥

भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई ।
रामचन्द्र बनवास कराई ॥24

एहिविधि रावण वध तू कीन्हा ।
सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा ॥

को समरथ तव यश गुन गाना ।
निगम अनादि अनंत बखाना ॥

विष्णु रुद्र जस कहिन मारी ।
जिनकी हो तुम रक्षाकारी ॥

रक्त दन्तिका और शताक्षी ।
नाम अपार है दानव भक्षी ॥28

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा ।
दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा ॥

दुर्ग आदि हरनी तू माता ।
कृपा करहु जब जब सुखदाता ॥

नृप कोपित को मारन चाहे ।
कानन में घेरे मृग नाहे ॥

सागर मध्य पोत के भंजे ।
अति तूफान नहिं कोऊ संगे ॥32

भूत प्रेत बाधा या दुःख में ।
हो दरिद्र अथवा संकट में ॥

नाम जपे मंगल सब होई ।
संशय इसमें करई न कोई ॥

पुत्रहीन जो आतुर भाई ।
सबै छांड़ि पूजें एहि भाई ॥

करै पाठ नित यह चालीसा ।
होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा ॥36

धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै ।
संकट रहित अवश्य हो जावै ॥

भक्ति मातु की करैं हमेशा ।
निकट न आवै ताहि कलेशा ॥

बंदी पाठ करें सत बारा ।
बंदी पाश दूर हो सारा ॥

रामसागर बाँधि हेतु भवानी ।
कीजै कृपा दास निज जानी ॥40

॥दोहा॥
मातु सूर्य कान्ति तव,
अन्धकार मम रूप ।
डूबन से रक्षा करहु,
परूँ न मैं भव कूप ॥

बलबुद्धि विद्या देहु मोहि,
सुनहु सरस्वती मातु ।
राम सागर अधम को,
आश्रय तू ही देदातु ॥

Saraswati Chalisa

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