हरतालिका तीज व्रत का रहस्य- बारहवें सतयुग की कथा- भगवान शिव को पती रुप में प्राप्त करने के लिए गिरिजा तथा अनुराधा नाम की दो कुमारियों ने भगवान शिव की घोर तपस्या की। शिव जी माता गिरिजा की तपस्या से ख़ुश हुए। और उन्हें मनोवांछित वर प्रदान किया ।
इधर अनुराधा घोर तप मे लीन थी। उधर भगवान शिव का व्याह माता गिरिजा के साथ हो गया। भगवान शिव माता गिरिजा को लेकर कैलाश आ गये । तब नारद जी नारायण नारायण कहते हुए अनुराधा के पास पहुंच गये।नारद जी ने भगवान शिव के विवाह की बात अनुराधा को बताई। अनुराधा को क्रोध आ गया और क्रोध में नारद से बोलीं- “जिन्हें हम पती रूप में पाने के लिए भीषण तप किया जब वो ही इस जीवन में मुझे नहीं मिलेंगे तो इस जीवन का क्या करूं” ।
इतना कहकर अनुराधा ने तप के बल से अग्नि को उत्पन्न कर दिया और उसी अग्नि में कूद गयीं। अनुराधा का शरीर जलने लगा । इधर शिव जी को अनुराधा के जलने की बात मालुम हुई। शिव जी तत्काल अनुराधा के पास पहुंच गये। तब तक अनुराधा के प्राण निकल चुके थे।
अनुराधा का आधा शरीर जल चुका था। भगवान शिव को बडा दुःख हुआ। भगवान शिव ने अनुराधा के शरीर को अपने दायें हाथ के करतल पे रख कर तीसरे नेत्र की ज्वाला से अन्तिम संस्कार किया।
जिससे अनुराधा का शरीर जलने लगा साथ में भगवान शिव का शरीर भी जलने लगा। भगवान शिव और अनुराधा के शरीर जलकर भस्म हो गये।
अनुराधा के शरीर की भस्म काली थी और शिव के शरीर की भस्म सफेद थी। दोनो एक में मिली हुईं थीं ।उस भस्म को (बालू) कहा गया। और वहीं उसी बालू से बालुकामयी शिवलिंग प्रकट हो गया।
अनुराधा का शिव से मिलन हुआ। शिवजी ने अनुराधा को बरदान दिया कि आज के दिन तुम मेरी एक दिन रात की पत्नी बनोगी ।यह अनंत काल तक होता रहेगा। इस दिन जो भी कन्या बालुकामयी शिवलिंग को बनाकर, निराहार रहकर व्रत करेगी उसे मनोवांछित फल प्राप्त होगा और सुहागनों के पती की आयु लम्बी होगी। यह काली रात कजरीतीज(हरतालिका)के नाम से जानी जायेगी ।