हनुमान जी की कथा-हनुमान
वानरराज केसरी और अप्रतिम सुंदरी अंजना को शिव की कृपा से पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम अंजनेय था। अंजना को अपने पुत्र को छोड़कर वापस स्वर्ग जाना था। अंजनेय दुःखी थे। उन्होंने अपनी माँ से कहा, “माँ, तुम्हारे बिना मैं कैसे रहूँगा? मैं क्या खाऊँगा?
अंजना ने प्यार से अपने पुत्र से कहा, “जब तुम्हें भूख लगेगी तब सूर्य की तरह लाल और पके फल तुम्हारा पोषण करेंगे।” अंजनेय ने सोचा, “सूर्य की तरह लाल और पका फल…? क्या सूर्य इतना पका फल है?” बालक अंजनेय ने सूर्य को खाने का सोचा। दैवीय बालक होने के कारण अंजनेय ने एक छलांग लगाई और सूर्य को पकड़ने के लिए उड़ने लगे।
सूर्य भगवान ने एक बंदर को अपनी ओर आता देखा। उसका आकार बढ़ता ही जा रहा था और सूर्य की तेज किरणों का उसपर कोई असर नहीं हो रहा था। सूर्य ने इन्द्र देव को सहायता के लिए पुकारा।
आसमान में अचानक काले बादल छा गए और सूर्य उसके पीछे छिप गए। इन्द्र अपने एरावत हाथी पर सवार होकर आए और उड़ते हुए बंदर से बोले, “ठहरो, कौन हो तुम? सूर्य को क्यों पकड़ना चाहते हो? अंजनेय ने कोई उत्तर नहीं दिया और अपना मुँह खोलकर सूर्य को निगल गए। संसार में अंधकार व्याप्त हो गया।
इन्द्र चिल्लाए, “नटखट बंदर, मैं तुम्हें सबक सिखाऊँगा।” यह कहकर उन्होंने अंजनेय के गाल पर वज्र प्रहार किया। सूर्य आज़ाद हो गए और अंजनेय का आकार छोटा होकर शरीर धरती पर गिर पड़ा। उनके गाल सूजकर दोगुने हो गए थे।
अंजनेय के अभिभावक, तथा जीवनदाता वायु देव ने छोटे बालक को अपने हाथों में उठाया और पाताल-लोक लेकर चले गए।
धरती वायुरहित हो गई। पशु-पक्षी- पौधे सबका दम घुटने लगा। सूर्य ने इन्द्रदेव से कहा, “हमें वायु देव से पृथ्वी पर आने के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।” इन्द्र स्वयं पाताल लोक गए। वहाँ वायुदेव ने अंजनेय से उनका परिचय कराया। यह अंजना का पुत्र तथा शिव का अवतार… आपने इसे चोट कैसे पहुँचाई?”
क्षमाप्रार्थी इन्द्र ने कहा, “हे वायु देव, मेरी भूल की सजा पशु, मानव और पौधों को न दें। कृपया धरती पर वापस चलें।”
अपनी शक्ति से इन्द्र ने अंजनेय को ठीक कर दिया और आशीर्वाद देते हुए कहा, “तुम सदा जीवित रहोगे, तुम्हारी मृत्यु कभी नहीं होगी। मैंने तुम्हारे हनु (गाल) पर प्रहार किया था अतः अब से तुम साहसी हनुमान कहलाओगे।”
इस प्रकार अंजनेय हनुमान कहलाए।