आज शुक्रवार का दिन माता लक्ष्मी (Mata Lakshmi) की पूजा के लिए समर्पित है. आज मैं आपको माता लक्ष्मी से जुड़ी एक कथा के बारे में बताता हूं, जिसमें माता लक्ष्मी स्वर्ग छोड़कर चली जाती हैं. इसके फलस्वरूप सभी देवता श्रीहीन हो जाते हैं. धन संपदा के साथ ही उनका बल भी खत्म हो जाता है. ऐसे में असुर उन पर आक्रमण करके स्वर्ग पर अधिकार कर लेते हैं. आइए पढ़ते हैं माता लक्ष्मी से जुड़ी यह कथा.

एक समय की बात है. दुर्वासा ऋषि अपने शिष्यों के साथ भगवान शिव के दर्शन के लिए कैलाश जा रहे थे. तभी रास्ते में उनको देवराज इंद्र मिले. वे ऐरावत पर सवार थे. उन्होंने दुर्वासा जी को प्रणाम किया, तो उन्होंने आशीर्वाद देते हुए भगवान विष्णु का दिव्य पुष्प पारिजात इंद्र को दे दिया. इंद्र ने उस पुष्प को ऐरावत हाथी के सिर पर रख दिया. यह इंद्र के अहंकार का प्रमाण था.

दिव्य पुष्प के प्रभाव से ऐरावत हाथी भी तेजस्वी हो गया और वह इंद्र को छोड़कर पुष्प को रौंदते हुए वन में चला गया. यह देखकर दुर्वासा ऋषि क्रोधित हो गए. उन्होंने इंद्र को श्राप दे दिया कि तुम श्रीहीन हो जाओगे. दुवार्सा जी के श्राप के कारण माता लक्ष्मी तुरंत स्वर्ग छोड़कर चली गईं. इस वजह से सभी देवता धन-वैभव और शक्ति से हीन हो गए.

तब असुरों ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया, जिसमें देवगण पराजित हो गए. स्वर्ग पर असुरों का राज्य हो गया. देवराज इंद्र समेत सभी देवगण ब्रह्मा जी के पास गए और माता लक्ष्मी को वापस लाने का उपाय पूछा. तब ब्रह्म देव ने कहा कि आपने भगवान विष्णु के दिव्य पुष्प का अपमान किया है, जिसके कारण देवी लक्ष्मी नाराज होकर स्वर्ग से चली गई हैं. इसके लिए तुम सब भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करो, ताकि देवी लक्ष्मी प्रसन्न होकर वापस यहां आ जाएं.

जब सभी देवगण भगवान विष्णु के पास गए, तब उन्होंने समुद्र मंथन का सुझाव दिया. समुद्र मंथन के बाद ही माता लक्ष्मी फिर से स्वर्ग वापस आईं और देवताओं को खोया हुआ धन, वैभव और बल प्राप्त हुआ. अहंकार के कारण आपका बल और धन दोनों ही चला जाता है.

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