शिव के दूसरे पुत्र कार्तिकेय के जन्म की कथा भी विचित्र है। पौराणिक कथा के अनुसार जब पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी ‘सती’ कूदकर भस्म हो गईं, तब शिवजी विलाप करते हुए गहरी तपस्या में लीन हो गए। उनके ऐसा करने से सृष्टि शक्तिहीन हो जाती है।
इस मौके का फायदा दैत्य उठाते हैं और धरती पर तारकासुर नामक दैत्य का चारों ओर आतंक फैल जाता है। देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ता है। चारों तरफ हाहाकार मच जाता है तब सभी देवता ब्रह्माजी से प्रार्थना करते हैं। तब ब्रह्माजी कहते हैं कि तारक का अंत शिव पुत्र करेगा।
इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं, तब भगवान शंकर ‘पार्वती’ के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेते हैं और पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होते हैं और इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिवजी और पार्वती का विवाह हो जाता है। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है। कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं।पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है। शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय को सुब्रमण्यम, मुरुगन और स्कंद भी कहा जाता है। कार्तिकेय की पूजा मुख्यत: दक्षिण भारत में होती है। अरब में यजीदी जाति के लोग भी इन्हें पूजते हैं, ये उनके प्रमुख देवता हैं। उत्तरी ध्रुव के निकटवर्ती प्रदेश उत्तर कुरु के क्षेत्र विशेष में ही इन्होंने स्कंद नाम से शासन किया था। इनके नाम पर ही स्कंद पुराण है।
स्कंद षष्ठी: जानें, व्रत कथा और पूजन विधि
बहुत कम लोग जानते होंगे परंतु बाकी त्यौहारों की तरह इस त्यौहार का भी बहुत महत्व है। बता दें कि भगवान कार्तिकेय को युद्ध का राजा माना जाता है यही कारण था कि देवताओं ने इन्हें अपना सेनापति नियुक्त किया था। जैसे हिंदू धर्म के सभी त्योहार अच्छी की बुराई पर जीत का प्रतीक माने जाते हैं ठीक वैसे ही स्कंद पष्ठी भी बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि इनके आशीर्वाद से मान सम्मान, प्रतिष्ठा और विजय प्राप्त होती है।इस शुभ अवसर पर भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। परंतु सबसे पहले इसमें स्कंद देव (कार्तिकेय) की स्थापना करके पूजा की जाती है और साथ ही अखंड दीपक जलाए जाते हैं। वहीं, भक्तों द्वारा स्कंद षष्ठी का पाठ किया जाता है। भगवान को स्नान कराया जाता है, उसके बाद नए वस्त्र पहनाए जाते हैं फिर विधिपूर्वक की पूजा कर भोग लगाया जाता है।इस दिन कुछ कामों को करने की मनाही होती है। अगर इस दिन ये काम किए जाए तो इसका अंजाम बहुत बुरा भुगतना पड़ता है। जैसे कि हम सब जानते हैं कि पूजा की कई अलग-अलग विधियां होती हैं, इनकी पूजन विधि में भी कुछ खास नियम का अपनाया जाना बहुत आवश्यक माना जाता है। ज्योतिष के अनुसार ध्यान इस दिन भगवान क्रार्तिकेय की पूजा करने से पहले मांस, शराब, प्याज, लहसुन का त्याग कर देना चाहिए और साथ ही इसमें ये भी कहा गया है कि ब्रह्मचर्य का संयम रखना बहुत ज़रूरी होता है। ध्यान रहें कि किसी भी खास काम की सिद्धि के लिए इस समय कि गई पूजा-अर्चना सबसे ज्यादा फलदायी मानी जाती है।
स्कंद षष्ठी के दिन करें इन मंत्रों का जाप
ज्योतिष की मानें को अगर इन मंत्रों के साथ भगवान की पूजा करना बहुत फलदायक होती है।“ॐ तत्पुरुषाय विधमहे: महा सैन्या धीमहि तन्नो स्कंदा प्रचोदयात” “ॐ शारवाना-भावाया नम: ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा वल्लीईकल्याणा सुंदरा, देवसेना मन: कांता कार्तिकेया नामोस्तुते”