सोमवार का दिन शंकर भगवान को समर्पित होता है. आज के दिन भक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. कुछ लोग आज के दिन व्रत भी रखते हैं ताकि शिव की विशेष कृपा प्राप्त की जा सके. बाबा भोलेनाथ के आशिर्वाद के लिए आप भी सोमवार का व्रत कर रहे हैं, तो शिव व्रत कथा को पढ़कर या सुनकर इस उपवास को पूरा करें

(सोमवार व्रत कथा)

पौराणिक कथा के अनुसार, किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसका घर धन-धान्य से भरा हुआ था। लेकिन वह निःसंतान था। जिसके कारण वह बहुत दुखी रहता था। संतान प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार के दिन व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव संग माता पार्वती की पूजा करता था।

उसकी भक्ति देख मां पार्वती प्रसन्न हो गईं। फिर भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूरी करने का निवेदन किया। माता पार्वती की इच्छा सुनकर शिवजी ने कहा ‘हे पार्वती! इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है। जिसके भाग्य में जो होता है उसे भोगना ही पड़ता है।’ पर फिर भी पार्वती जी अपनी बातों पर अड़ी रही और साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई।

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माता पार्वती के अनुरोध पर भगवान ने साहूकार को संतान-प्राप्ति का वरदान तो दिया। लेकिन उस बालक की आयु कम यानी केवल बारह वर्ष होगी कहकर चले गए। ये सारी बात उधर साहूकार सुन रहा था। वह न तो खुश था और न ही दुखी। वह पहले की तरह ही शिवजी की विधिवत पूजा करता रहा।

कुछ समय के बाद साहूकार के पुत्र का जन्म हुआ। जब वह बालक 11वर्ष का हुआ तो साहूकार ने उसे उसके मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेज दिया। उसके साथ पिता ने बहुत सारा धन दिया और काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाने की आज्ञा दी। साथ ही जाते जाते मार्ग में यज्ञ कराने का भी उपदेश दिया। इसके अलावा जहां भी यज्ञ हो वहां ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा जरूर देने का सलाह देते हुए जाने को कह दिया।

इस तरह दोनों मामा-भांजे साहूकार की आज्ञा का पालन करते हुए चल पड़े। रात में एक नगर में विश्राम करने के लिए रुके। उस नगर में एक राजकुमारी का विवाह था। लेकिन जिस राजकुमार से विवाह होने जा रहा था वह वास्तव में एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता इस बात को छिपाने के लिए एक चाल सोची।

कपटी राजा ने साहूकार के पुत्र को देखकर राजकुमारी से विवाह कराने और विवाह के बाद धन का लालच देकर इसे विदा करने का निर्णय लिया। इसी तरह लड़के को जबरदस्ती दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया। लेकिन साहूकार के पुत्र को यह बात न्यायसंगत नहीं लगी।

उसने मौका मिलते ही राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर अपनी बात लिख दी कि ‘तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के साथ तुम्हें विदा किया जाएगा वह असल में एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा था।’

जैसे ही राजकुमारी की नजर चुन्नी पर पड़ी तो वह अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया और बारात वापस लौटा दी। दूसरी ओर, मामा-भांजा काशी पहुंचे। वहां जाकर उन्होंने यज्ञ कराया। जिस दिन लड़के की आयु 12 साल होने वाली थी, उसी दिन यज्ञ रखवाया गया था। लड़के तबीयत कुछ खराब होने लगती है। तब उसके मामा ने कहा कि तुम कमरे के अंदर आराम कर लो।

कुछ ही देर में उस बालक की मृत्यु हो गई। मृत भांजे की हालत देख मामा ने विलाप शुरू कर दिया। संयोगवश उसी समय माता पार्वती और शिव जी गुजर रहे थे। पार्वती ने एक बार फिर भगवान से कहा- हे स्वामी! मैं इसके रोने का स्वर सहन नहीं कर पा रही हूं। कृपा कर के आप इस व्यक्ति के कष्ट को दूर करें। शिवजी उस मृत बालक को देखकर बोले यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया था और अब इसकी 12 वर्ष पूरी हो चुकी है। लेकिन माता पार्वती इस बात से काफी दुखी थी। उन्होंने महादेव से आग्रह किया और बोलीं, हे महादेव! आप इस बालक की आयु देने की कृपा करें।

इस पर भगवान शिव ने उस लड़के को पुनः जीवित होने का वरदान दे दिया। लड़के का प्राण उसके शरीर में वापस आ गया। फिर शिक्षा पूरी करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर वापस चल पड़ा। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां लड़के का विवाह एक राजकुमारी से हुआ था। नगर के राजा ने उस लड़के को पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की। फिर खूब सारा धन और आशीर्वाद देकर अपनी पुत्री को विदा किया।

इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर बेटे की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने अपने बेटे की मृत्यु के समाचार पर प्राण त्याग देने का प्रण कर रखा था। लेकिन बेटे कोणाही सलामत और जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए। उसी रात भगवान शिव साहूकार के सपने में आए और बोले – हे मनुष्य! मैंने तुम्हारे सोमवार व्रत रखने, इसे विधिवत पूरा करने और व्रत कथा को सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है।

उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न हो गईं और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का आग्रह किया. पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि ‘हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है.’ लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई.

माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी. माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था. उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख. वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा.

(सोमवार व्रत पूजा विधि)

सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनें।

इसके बाद व्रत करने का संकल्प लें।

पूजा शुरू करें और भगवान शिव को गंगाजल से स्नान कराएं।

भोलेनाथ को जलाभिषेक करते समय ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें।

भगवान शिव को बेलपत्र, अक्षत, सफेद चंदन, सफेद फूल, भांग, धतूरा, गाय का दूध, पंचामृत, धूप, दीप, सुपारी अर्पित करें।

फिर शिव चालीसा पढ़ें।

सोमवार व्रत की कथा सुनें।

अंत में भगवान शिव की आरती करें।

इसके बाद आरती करके लोगों में प्रसाद वितरण करें।

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