सालों पहले एक गांव में कोकिला और महेशभाई नाम के पति-पत्नी रहते थे। उनका जीवन सुख के साथ बीत रहा था। दोनों में प्रेम और स्नेह भी बहुत था, लेकिन कभी-कभी कोकिला के पति महेश गुस्से में पत्नी से झगड़ा कर लेता था। कुछ समय बाद जब उसका गुस्सा शांत होता, तो उसे अपने किए पर शर्मिंदगी भी होती थी।

कोकिला को पता था कि उसके पति को अपने व्यवसाय में फायदा नहीं हो रहा है, जिसकी वजह से उनका स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया है। इसी वजह से कोकिला पलटकर कोई जवाब नहीं देती थी। काम सही से न चलने के कारण महेश का ज्यादातर समय घर में ही बीत रहा था। उसकी पत्नी बड़ी ही धार्मिक स्वभाव की थी। घर में खुशियां लाने के लिए वो धर्म-कर्म करती रहती थी।

एक दिन दोपहर के समय उनके घर में एक बूढ़े महात्मा आए। उनके चेहरे के तेज को देखकर दोनों का सिर श्रद्धा से झुक गया। महात्मा ने उनसे कुछ दान करने के लिए कहा। कोकिला ने महात्मा को भिक्षा में दाल और चावल दिए और प्रणाम करके उनके सामने बैठ गई। उसी समय कोकिला की आंखों से आंसू बहने लगे।

कोकिला के आंसू देखकर महात्मा ने इसका कारण पूछा। जवाब में कोकिला ने अपने घर का सारा हाल बता दिया। उसकी बातों को सुनकर महात्मा ने कोकिला को उपाय के रूप में साईं बाबा का व्रत करने को कहा। साथ ही इसकी विधि बताते हुए बोले कि लगातार नौ गुरुवार तक एक समय खाना खाकर पूरी विधि से साईं बाबा की पूजा करने से उसके सारे दुख दूर हो जांएगे।

कोकिला ने महात्मा के अनुसार बताई गई विधि से प्रत्येक गुरुवार को साईं बाबा का व्रत किया। फिर आखिरी यानी 9वें गुरुवार को उसे गरीबों को भोजन कराना और साईं पुस्तकें बांटनी थी। किसी तरह से खाना और किताबों का इंतजाम करके कोकिला ने ये सब कार्य भी पूरा कर लिया। जैसे ही यह सारे कार्य सम्पन्न हुए कोकिला के घर में होने वाले झगड़े और महेशभाई के कारोबार में आई अड़चनें दूर हो गईं।

अब दोनों पति-पत्नी सुख से अपनी जिंदगी जी रहे थे। एक दिन कोकिला की जठानी और कोकिला आपस में घर-परिवार से जुड़ी बातें करने लगे। उसी समय कोकिला की जेठानी ने उसे बताया कि उसके बच्चों का मन पढ़ाई में नहीं लगता और वो स्कूल की हर परीक्षा में फेल हो जाता है।

जेठानी की बातें सुनकर कोकिला का मन भर आया। उसने तुरंत साईं व्रत के बारे में अपनी जेठानी को बताया। पहले कोकिला ने अपने घर का किस्सा सुनाया कि वो कितने परेशान थे और साईं बाबा कि कृपा से आज कितने सुखी हैं। उसके बाद कोकिला ने अपनी जेठानी को पूरे 9 गुरुवार साईं व्रत करने को कहा और उसकी विधि भी बताई।

कोकिला की जेठीनी ने ठीक वैसा ही किया और कुछ ही समय में उसके जीवन का संकट भी दूर हो गया। उसका बच्चे का मन पढ़ाई में लगने लगा और उसके अच्छे अंक आने लगे।

कहानी से सीख: मुसीबत के समय घबराने की जगह आराध्य पर सच्ची श्रद्धा रखते हुए परेशानी दूर करने की कोशिश में लगे रहना चाहिए।

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