सहस्रबाहु अर्जुन एक पराकर्मी और शूर वीर योद्धा थे । भगवान् द्वारा उन्हें हर प्रकार की सिद्धियां प्राप्त थी और वायु की गति से पूरे संसार में कोई भी रूप धारण कर जब चाहे विचरण कर सकते थे।
पुराणो के अनुसार शास्त्र बाहु ने महाराज हेय की 10वी पीढ़ी मात पद्मनी और महाराज कृतवीर्ये के परिवार में हुआ था। चन्द्रवंश कृतवीर्ये के पुत्र होने के कारण इन्हे कृतवीर्ये अर्जुन के नाम से भी जाना जाता था।
इसके आलावा पुराणों और ग्रंथो मे हैहयाधिपति, सहस्रार्जुन, दषग्रीविजयी, सुदशेन, चक्रावतार, सप्तद्रवीपाधि, कृतवीर्यनंदन, राजेश्वर आदि आदि के नामों का भी वर्णन है।
कृतवीर्ये अर्जुन का उल्लेख कई वेद, वाल्मीकि रामयण, महाभारत जैसे कई हिन्दू धर्म ग्रंथो में भी मिलता है । भगवान् विष्णु पुराण के अनुसार कृतवीर्ये -अर्जुन की उत्पाती श्री हरी विष्णु और माता लक्ष्मी द्वारा हुई है।
धार्मिक कथाओं और ग्रंथो के अनुसार सहस्रबाहु अर्जुन विष्णु के दसवे अवतार दत्तात्रेय के उपासक थे और अपनी कठोर तपस्या वा भक्ति आराधना से भगवान् दत्तात्रेय को प्रसन्न क्र उनसे 10 वरदान प्राप्त किये थे । जिसमे उन्हें हजार भुजाओ का वरदान भी मिला था और तभी से इनका नाम सहस्रबाहु अर्जुन व बाहुबली भी कहा जाने लगा था।
दत्तात्रेय दावरा वरदान पाने के बाद सहस्रबाहु महिस्मती नगरी के चक्रवर्ती सम्राट बन गए थे.. वर्तमान में यह नगरी मध्य प्रदेश में महसेवर नाम के नाम से जाना जाता है।
मध्य प्रदेश के वर्तमान शहर माहेश्वर में सहस्रबाहु राजेस्वर नाम का भव्य मंदिर भी है जहा प्रतिवर्ष कार्तिक मॉस की शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि को सहस्रबाहु की जयंती मनाई जाती है जो दीवाली के ठीक बाद पड़ती है । सहस्रबाहु अर्जुन की जयंती के समय महेस्वर नगर में उत्सव जैसे माहोल रहता है और कई दिनों तक उनकी पूजा अर्चना भी की जाती है।
जो एक बड़े भंडारे के साथ समाप्त होता है। सहस्रबाहु के मंदिर के बीचो बीच शिवलिंग वा राजेश्वर सहस्त्रबाहु जी की समाधि है। जहा लगभग 500 वर्षो से घी के दीपक अखंड प्रज्वलती है।
रावण जब पहुंचा सहस्त्रबाहु अर्जुन को हराने
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार एक बार रावण सहस्रबाहु को हारने की इच्छा से उसके नगर महिस्मती पहुँच गया जो नर्मदा नदी के तट पर बसा हुआ था । रावण नर्मदा नदी के तट पर पहुंच अपनी शक्तियों को बढ़ने के लिए भगवान् शिव की आराधना करने लगा।
वही कुछ दूरी पर सहस्रबाहु भी अपनी रानियों के साथ नदी मे जलविहार कर रहे थे और जल विहार करते समय सहस्रबाहु ने अपनी हजारो भुजाओ से नर्मदा नदी के पानी के प्रवाह को रोक दिया।
जिससे एक तरफ पानी का जल स्तर बढ़ने लगा अचनाक नदी में पानी जल स्तर बढ़ने से तट के किनारे बना रावण का शिवलिंग भी बह गया । यह देख रावण ने अपने सैनिको को नदी का यू अचानक जल स्तर बढने का कारण पता लगाने के लिए भेजा।
रावण और सहस्त्रबाहु अर्जुन का भयंकर युद्ध
जब सैनिको ने रावण से आकर नदी के पानी रुकने की बात बताई तो । रावण क्रोधित हो सहस्रबाहु को युद्ध के लिए ललकारने लगा। इधर सहस्रबाहु भी एक प्रकर्मी योद्धा । रावण द्वारा बार बार ललकारने पर वह भी रावण के समक्ष उपस्थित हो गया और देखते ही देखते दोनों योद्धाओ के बीच महा युद्ध छिड़ गया दोनों के बीच युद्ध बराबरी का हो रहा था ।
यह महा युद्ध कई दिनों तक चला अंत म सहस्रबाहु अर्जुन ने इस युद्ध से क्रोधित हो अपने विशाल और विकराल रूप मे आ गया। सहस्रबाहु अर्जुन के विकराल रूप के सामने रावण बोना सा प्रतीत हो रहा था । सहस्रबाहु ने रावण को अपनी हाजरो भुजाओ में जकड लिया।
रावण ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी फिर भी वह आजाद नहीं हो पाया। सहस्रबाहु ने रावण को बंधी बना अपने कारागार में डाल दिया ।
लेकिन बाद मे रावण के दादा महर्षि पुलत्श्य ने शास्त्र बहु से रावण को छोड़ने का आग्रह किया और सहस्रबाहु ने रावण को आजाद कर दिया। अंत में रावण ने सहस्रबाहु से मित्रता कर लंका लौट गया।