बहुत समय पहले की बात है, सर्वशास्त्र ज्ञाता श्री सूतजी से हजारों की संख्या में ऋषि-मुनि गण मिलने पहुंचे। वहां पहुंचकर सभी मुनियों ने सूत जी को नमन किया और पूछा, “हे परमपिता! कलयुग के समय में ईश्वर की भक्ति के लिए मनुष्यों को क्या करना होगा? कलयुग में उन्हें मोक्ष की प्राप्ति कैसे होगी? हे प्रभु! कृपया आप हमें किसी ऐसे तप के बारे में बताएं, जिसे करने से मन की मुराद पूरी होने के साथ ही पुण्य की प्राप्ति हो जाए।”

ऋषियों की बात सुनने के बाद सूत जी बोले, “हे मुनि गण! आप सभी ने मनुष्यों के हित के बारे में एक अच्छा सवाल किया है। मैं आप सभी को एक ऐसे व्रत के बारे में बताऊंगा, जिसके बारे में खुद लक्ष्मीपति ने नारद मुनि को बताया था। आप सभी इस व्रत को ध्यानपूर्वक सुनें।”

एक बार नारद मुनि दूसरों के हित की अभिलाषा लिए कई लोकों के भ्रमण पर निकले। इस भ्रमण के दौरान घुमते-घुमते एक दिन वह मृत्युलोक यानी धरती पहुंचे। यहां नारद मुनि ने देखा कि सभी मनुष्य अपने कर्मों का फल भोग रहे हैं। इसके कारण सभी दुख से पीड़ित हैं। यह देख उनके मन में एक सवाल आया कि ऐसा कौन-सा उपाय निकाला जाए, जिसका पालन करने से मनुष्यों के दुखों का अंत किया जा सके।

अपने इस सवाल को लेकर नारद मुनि विष्णु लोक पहुंच गए। वहां उन्होंने भगवान नारायण की आराधना की। प्रार्थना करते हुए नारद मुनि बोले, “हे प्रभु! आप तो सर्व शक्तिशाली हैं, आपका कोई अंत नहीं है। आप सभी भक्तों के कष्ट को दूर करते हैं, आपको मेरा प्रणाम है। नारद मुनि की यह बातें सुनकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और कहा, “हे नारद मुनि! आपके मन में ऐसा कौन सा सवाल है, जिसके लिए आप यहां पधारे हैं।

परमपिता विष्णु की बात सुनकर नारद मुनि बोले, “प्रभु! मृत्युलोक में मनुष्य अपने कर्मों के दुख झेल रहे हैं। भगवन! आप अगर मुझ पर तनिक भी दया करते हैं, तो कृपा करके मुझे बताइए कि मानव ऐसे कौन से काम करे, जिससे उन्हें इस दुख से मुक्ति मिल सके।”

विष्णु भगवान ने जवाब में कहा, “हे मुनि ! मानव जाति की भलाई के लिए आपने एक अच्छा सवाल किया है। मैं आपको वह बात बताऊंगा जिसका पालन करने से मनुष्यों का मोह से नाता छूट सकता है।”

इतना कहने के बाद भगवान विष्णु ने व्रत के बारे में बताना शुरू किया। उन्होंने कहा, “स्वर्ग और मृत्यु दोनों लोकों में एक ऐसा व्रत है, जिसे करने से पुण्य की प्राप्ति हो सकती है। उस व्रत का नाम है श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा। इस व्रत को पूरे विधि विधान से जो भी करेगा उसे सुख और मोक्ष की प्राप्ति होगी।

विष्णु भगवान से इस व्रत के बारे में सुनते ही नारद मुनि ने फिर पूछा, “हे ईश्वर! इस व्रत को करने से कौन-सा फल मिलेगा और इसे करने की विधि क्या है? इस व्रत को सबसे पहले किसके द्वारा किया गया था और इस व्रत को किस दिन करना शुभ होगा? प्रभु! आप इन सभी सवालों के जवाब दें।”

नारद के सवालों का जवाब देते हुए भगवान विष्णु कहते हैं, “दुखों को दूर करने वाले इस व्रत को करना बहुत आसान है। इसको करने के लिए मनुष्यों को पूरी भक्ति से शाम के समय ब्राह्मणों के साथ श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा करनी होगी। इसके लिए सबसे पहले भोग तैयार होगा। भोग के लिए दूध, केला, घी और गेहूं के आटे को एक चौथाई भाग में लेना होगा। गेहूं नहीं है, तो उसकी जगह साठी के आटे का उपयोग किया जा सकता है। फिर शक्कर और गुड़ सहित सभी खाने योग्य पदार्थों को मिलाकर भगवान को भोग लगाना होगा।

व्रत रखने वाले को भजन, कीर्तन का आयोजन करना होगा। भक्ति में लीन होकर भगवान सत्यनारायण की अर्चना करनी होगी। इसके बाद व्रत रखने वाले को ब्राह्मणों और सभी परिजनों को भोजन कराना चाहिए। इसके बाद व्रत रखने वाला खुद भोजन करेगा।

इस तरह पूरी विधि के साथ सत्यनारायण भगवान की पूजा करने से मनुष्यों की हर इच्छा पूरी हो सकती है। साथ ही यह कलयुग में मोक्ष प्राप्त करने का एकमात्र सरल उपाय है।

इस तरह श्री सत्यनारायण कथा का पहला अध्याय पूरा होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *