शरद पूर्णिमा: महत्व, धार्मिक मान्यताएँ, मंत्र और वैदिक प्रमाण
शरद पूर्णिमा हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसे आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इसे कोजागरी पूर्णिमा और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन को चंद्रमा की विशेष महिमा के लिए जाना जाता है, और धार्मिक रूप से यह त्यौहार लक्ष्मी पूजन, भगवान कृष्ण के रास और अमृत वर्षा के लिए विशेष महत्व रखता है।
शरद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
- चंद्रमा की अमृत वर्षा: शास्त्रों में मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है और उसकी किरणों में अमृत तत्व का वास होता है। इस दिन चंद्रमा धरती पर अपनी किरणों के माध्यम से स्वास्थ्य और समृद्धि का वरदान देता है। वैदिक ग्रंथों में चंद्रमा को औषधियों का देवता कहा गया है। अथर्ववेद में चंद्रमा का वर्णन इस प्रकार किया गया है:
- मंत्र:
ॐ श्र्वेता भानुः श्र्वेता राजास्तं वस्ने चंद्रमसा। पृथिव्यां ज्योतिषांपति:।
इसका अर्थ है कि चंद्रमा औषधियों का राजा है और उसकी किरणों से पृथ्वी पर जीवनदायिनी शक्ति प्रवाहित होती है।
- लक्ष्मी पूजन (कोजागरी व्रत): इस दिन माता लक्ष्मी की विशेष पूजा का विधान है। इसे “कोजागरी” इसलिए कहा जाता है क्योंकि मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी रात में भ्रमण करती हैं और पूछती हैं “को जागर्ति?” (कौन जाग रहा है?)। जो जागरण करता है, उसे लक्ष्मी जी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन लोग जागरण करते हैं और धन, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति के लिए व्रत रखते हैं। लक्ष्मी मंत्र:
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः।
इस मंत्र का जाप करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में धन-धान्य और वैभव का आगमन होता है।
- रास लीला का पर्व: शरद पूर्णिमा को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोपियों के साथ रास रचाने का दिन भी माना जाता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार, इस रात को वृंदावन में श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ दिव्य रासलीला की थी, जो आध्यात्मिक प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। इस कारण इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
शरद पूर्णिमा की खीर और चंद्रमा की किरणें
इस दिन रात को खीर बनाकर उसे चंद्रमा की रोशनी में रखा जाता है। मान्यता है कि चंद्रमा की किरणों से इस खीर में अमृत तत्व समाहित हो जाता है, जिसे खाने से स्वास्थ्य और समृद्धि मिलती है। आयुर्वेद में भी इस खीर को स्वास्थ्यवर्धक माना गया है, विशेष रूप से यह पाचन तंत्र को सुधारने और शरीर को शीतलता प्रदान करने में सहायक होती है।
शरद पूर्णिमा का वैदिक प्रमाण
वेदों और पुराणों में शरद पूर्णिमा का उल्लेख मिलता है। शरद पूर्णिमा ऋग्वेद में चंद्रमा को औषधियों का स्वामी कहा गया है, जो जीवन के स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए आवश्यक है। अथर्ववेद में चंद्रमा की महिमा का वर्णन है, जो इस दिन विशेष प्रभावकारी होती है।
- ऋग्वेद (10.85.5):
चन्द्रमां मनसो जातः।
इसका अर्थ है, “चंद्रमा मन से उत्पन्न हुआ है।” यह शांति, सौम्यता और मानसिक संतुलन का प्रतीक है, जो शरद पूर्णिमा की रात विशेष रूप से प्रभावी होता है।
शरद पूर्णिमा पर विशेष अनुष्ठान और पूजन विधि
- चंद्रमा की पूजा: शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है। लोग चांदी या मिट्टी के बर्तन में जल लेकर उसमें चावल, सफेद फूल, और अक्षत डालकर चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करते हैं। चंद्र मंत्र:
ॐ सों सोमाय नमः।
- खीर का सेवन: चंद्रमा की किरणों में रखी गई खीर का सेवन करने से शरीर में संतुलन और शांति आती है। यह खीर विशेष रूप से रोग नाशक और पित्त दोष को संतुलित करने वाली मानी जाती है।
शरद पूर्णिमा की आधुनिक मान्यता
आज के समय में शरद पूर्णिमा केवल धार्मिक उत्सव ही नहीं, बल्कि यह स्वास्थ्य और प्रकृति से जुड़ने का एक पर्व भी है। इस दिन को आध्यात्मिक शांति और मन की स्थिरता पाने के लिए उत्तम माना जाता है। इसके साथ ही चंद्रमा की किरणों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों को भी आधुनिक विज्ञान ने स्वीकार किया है।
निष्कर्ष
शरद पूर्णिमा का पर्व धर्म, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है। वैदिक प्रमाण और मंत्रों के साथ इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस पर्व पर भगवान चंद्रमा और माता लक्ष्मी की आराधना से व्यक्ति को सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।