राजनीतिक दायरे में इधर जिस तरह राम को लेकर कहासुनी हुई, उसकी एक परंपरा ही बनती जा रही है..प्रारंभिक समय में पौराणिक कथाएं गाई या सुनाई जाती थीं। लिखने की परंपरा बहुत बाद में आई। वाचक अपनी इच्छा या प्रचलित मान्यताओं के आधार पर उनमें जोड़ना, घटाना करते रहते थे। इसी कारण एक ही पात्र या कथा से जुड़े कई-कई रूप मिलते थे। कईं बार ये परस्पर विरोधी भी हुआ करते थे। इसके बावजूद हम धर्म से जुड़ी हर बात को लेकर आज तक इतने संवेदनशील क्यों हैं? बाल्मीकि रामायण सब रामायणों का मूलाधार है, पर उसमें भी प्रक्षिप्त अंश मिलते हैं। सीता रामायण की प्रमुख और महत्वपूर्ण पात्र हैं। अचरज की बात है कि उनके माता-पिता के बारे में निश्चित और विस्तृत जानकारी न होने के कारण उनके जन्म के विषय में कई कहानियां मिलती हैं। विद्वानों का ध्यान इस विविधता से जन्म लेने वाली समस्या की ओर गया। फादर कामिल बुल्के ने सीता जन्म से जुड़ी प्रत्येक कहानी की पुरातनता और उससे जुड़े महत्व को दृष्टि में रखकर उन कथाओं को क्रम में लगाकर रखना चाहा।
जब श्री राम मां चंडी के चरणों में अर्पित करने वाले थे अपना नेत्र, पढ़ें रामायण से जुड़ी यह कथा
बाल्मीकि रामायण पर आधारित रामोपाख्यान, हरिवंश रामायण आदि में सीता को ‘जनकस्य कुले जाता’ कहा गया। पर बाल्मीकि रामायण में ही दो जगह उनके चमत्कारी जन्म की कथा भी मिलती है। हो सकता है कि यह बाद में जोड़ी गई हो। पहली के अनुसार सीता को भूमिजा कहा गया और ज्यादातर रामकथाओं ने इसे ही स्वीकार किया। इसके अनुसार राजा जनक पूजा हेतु धरती पर हल चला रहे थे, तभी हल रेखा से एक बालिका मिली, जिसे अपनाकर उन्होंने सीता नाम दिया। बाल्मीकि रामायण के बांग्ला और उत्तर पश्चिमी संशोधित संस्करणों में चमत्कारिक जन्म कथा को विस्तार दिया गया। जन संस्करण में सीता अत्रि मुनि की पत्नी अनुसूया को अपने जन्म की कथा सुनाती हैं। दो अन्य संस्करणों में भी यह कथा काफी लंबी दी हुई है। इसके अनुसार सीता के धरती से निकलने पर आकाश वाणी हुई, ‘जनक, यह बालिका मेनका से उत्पन्न तुम्हारी मानस पुत्री है।’ क्षेमेंद्र की रामायण मंजरी में भी यही कहानी मिलती है।
रावण से रिश्ता
बाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड के सत्रहवें खंड में वेदवती की कहानी मिलती है। इसके अनुसार सीता पूर्वजन्म में लक्ष्मी का अवतार थीं और वे विष्णु को पाने के लिए हिमालय पर तप कर रही थीं। उनके सौंदर्य से अभिभूत रावण उन्हें पाने के लिए जबरदस्ती करता है तो वे खुद को बचाकर उसे श्राप देती हैं कि जल्द ही वे चमत्कारी जन्म लेकर उसे नष्ट करेंगी। इस कथा के कुछ भिन्न रूप श्रीमद् भागवत् पुराण और ब्रह्म वैवर्त पुराण आदि में भी मिलते हैं। बाल्मीकि की दूसरी चमत्कारिक कथा में सीता को रावण के नाश हेतु अवतरित होते बताया गया है। ईसा के बाद की 9वीं शताब्दी से आगे तक न केवल भारत वरन् पड़ोसी देशों में भी प्रचलित मान्यता पर आधारित कहानी के अनुसार सीता रावण की पुत्री थीं। भारत, तिब्बत, खोटान, इंडोनेशिया, इंडोचीन आदि में इसका प्रचार हुआ। भारत में यह पहली बार जैन लेखक गुणभद रचित उत्तर पुराण में मिलती है।
इस कथा के कई रूप मिले। कुछ में उन्हें मंदोदरी से पैदा बताया गया है, जिसने यह जानकर कि बालिका उनके पति के नाश का कारण बनेगी, उसका त्याग कर दिया था। वह किसानों को मिली, जिन्होंने उसे राजा जनक को दे दिया। 18वीं शताब्दी की कश्मीरी रामायण में भी यहीं कथा मिलती है। जावनी सेरत कांड की कहानी मिलती-जुलती है, पर पालने वाले ऋ षि मेतिली बताए गए हैं। इस कथा में बालिका का नाम सिंता है। इसी समय की स्यामी रामायण में समुद्र में फेंकी गई बालिका को देवता उस दिशा में ले जाते हैं कि वह लंका से मिथिला पहुंचकर जनक को मिलती है। कंबोडिया की रामकथा में लंका से संबंध नहीं जोड़ा है। ये सारी कथाएं गुणभद से प्रेरित कही जा सकती हैं। अद्भुत रामायण के अनुसार सीता ऋ षियों के रक्त से जन्मीं और आनंद रामायण के अनुसार अग्नि से उत्पन्न हुई थीं। दशरथ जातक के अनुसार दशरथ की पहली पत्नी से राम, लक्ष्मण के साथ सीता भी जनमी थीं। जावा की राम कलिंग और मलाया की सेरीराम में भी उन्हें दशरथ पुत्री बताया गया है। पेरिस में फादर बुशे के रखे पत्रों में निहित कहानी के अनुसार केहुमी समुद मंथन से जन्मी थीं। उन्हें वेदमुनि ने पाला था। वे विष्णु से उनका विवाह करना चाहते थे जो तब तक रामेन के रूप में जन्म ले चुके थे। बाद में वे उन्हीं से ब्याही गई थीं। क्या ये विभिन्न कथाएं हमें सीता का अपमान लगनी चाहिए? पौराणिक पात्रों को लेकर कही गई हर बात हमारे यहां विवाद का रूप ले लेती है। कितने अचरज की बात है कि हम अपनी आस्था और ज्ञान के अहंकार में, अपनी मान्यता के गर्व में किसी दूसरे की बात को न सुनना चाहते हैं, न समझना चाहते हैं। जबकि अपने धर्म से जुड़ी हर बात को जानने की जिज्ञासा हममें होनी चाहिए।
आस्था और संदेह
मनुष्य के लिए आस्था और संदेह, दोनों ही आवश्यक हैं, क्योंकि ये ही हमें अज्ञात मोड़ों से निकालते हैं। विदेशों तक फैली कथाएं हमारे पौराणिक नायकों का आदर करती हैं। अगर कभी वे किसी चरित्र को लेकर जिज्ञासा व्यक्त करती हैं तो इसे उसका अनादर नहीं समझा जाना चाहिए। इन भिन्न कथाओं को पढ़कर हम एक अलग सोच से रूबरू होते हैं। धर्म का मूल एक अच्छी सोच में ही निहित है। व्यक्ति धामिर्क हो या धर्मनिरपेक्ष, अभिजन साहित्य का प्रेमी हो या लोक साहित्य का, यदि वह वास्तव में ज्ञान पिपासु है तो खुली दृष्टि से सब कुछ देखने-सुनने की कोशिश करेगा। सही यह होगा कि जो उसको अच्छा लगे उसे ग्रहण करे और जो अच्छा नहीं लगे, उसे छोड़ दे। इतना ही ठीक है। किसी अलग कथा या व्याख्या पर प्रहार करना अथवा उसे तोड़ना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।