एक बार फिर राजा विक्रमादित्य बेताल को पेड़ से उतारकर योगी के पास जाने के लिए आगे बढ़ता है। हर बार की तरह इस बार फिर बेताल राजन को एक कहानी सुनाता है। बेताल बताता है कि…
वीरबाहु नाम का एक राजा था, जो छोटे-छोटे राज्यों पर राज किया करता था। राजा अनगपुर नामक राजधानी में रहता था। उसी राजधानी में अर्थदत्त नाम का एक व्यापारी भी रहता था, जिसकी मदनसेना नाम की एक बेटी थी। व्यापारी की बेटी अक्सर घूमने के लिए बाग में जाया करती थी। एक दिन एक युवक ने मदनसेना को बाग में देखा और देखता ही रह गया। वो मदनसेना से प्रेम करने लगा था और हर दम उसी के ख्यालों में डूबा रहता है।एक दिन हिम्मत करके युवक बाग में गया। वहां मदनसेना अकेले बैठी थी। उसने नवयुवती को बताया, “मेरा नाम धर्म सिहं है और मैं आपकी खूबसूरती पर फिदा हो गया हूं।” व्यापारी के बेटी ने उत्तर दिया, “ मुझसे तुम दूर रहो, मैं किसी और की अमानत हूं।” धर्म सिंह उसकी बात नहीं सुनता और उससे विवाह का आग्रह करता है। फिर मदनसेना बताती है, “मेरा विवाह समुद्र दत्त के साथ तय हो गया है और मैं इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर सकती हूं।”
इतना सुनते ही धर्म सिंह दुखी हो गया। गुस्से में उसने मदनसेना से कहा, “अगर तुम मेरी हुईं तो मैं अपनी नस काट लूंगा।” यह सुनकर मदनसेना बहुत डर गई। मदनसेना ने उसे वचन दिया कि वो ठीक पांच दिन बाद उससे मिलने के लिए आएगी। यह सुनकर धर्म सिंह खुश हो गया।
पांचवें दिन मदनसेना का विवाह समुद्र दत्त से होना था। विवाह के सारे रीति-रिवाज पूरे करने के बाद मदनसेना अपने पति समुद्रदत्त के घर चली गई, लेकिन उसे धर्म सिंह को दिया हुआ अपना वादा याद था। पति जैसे ही मदनसेना के पास जाता है, तो वह उससे कहती है कि मुझे आपसे बहुत जरूरी बात करनी है। वो बताती है, “ मुझे एक लड़के से मिलने जाना है, जिसे मैंने शादी से पहले आज के दिन मिलने का वचन दिया था।” यह बात सुनकर समुद्र दत्त बहुत दुखी हो गया। उसने सोचा कि ऐसी महिला पर तो धिक्कार है, जो पहले दिन ही दूसरे आदमी के पास जाना चाहती है। इसे अगर मैं रोकूंगा तो भी यह चली ही जाएगी। ऐसा सोचकर समुद्र दत्त ने उसे जाने की इजाजत दे दी।
पति से जाने की आज्ञा मिलने के बाद मदनसेना तेजी से उस लड़के के घर की ओर जाने लगी। दुल्हन के कपड़ों में जाती महिला को देखकर एक चोर ने उसे रोक दिया। उसका पल्ला पकड़कर चोर बोला, “कहा चली।” मदनसेना डर गई। उसने चोर को कहा, “तुम मेरे गहने ले लो और मुझे जाने दे।” चोर ने कहा,” मुझे तेरे गहने नहीं बल्कि तू चाहिए।” मदनसेना ने सारी बात बताते हुए कहा, “पहले मैं धर्म सिंह से मिलने जाऊंगी, उसके बाद मैं लौटकर तुम्हारे पास आऊंगी।” चोर ने पूछा, “तुम शादी के पहले दिन ही अपने पति को छोड़कर जा रही हो।” लड़की ने जवाब दिया कि वो अपने पति की इजाजत लेकर जा रही है। यह सुनकर चोर ने कहा, “जब तुम्हारा पति तुम्हें भेज सकता है, तो जाओ मैं भी तुम्हें जाने देता हूं। पर वहां से लौटकर सीधे तुम मेरे पास आना।”
मदनसेना चोर को वचन देकर उस लड़के पास जाने के लिए चलने लगी। उधर, मदनसेना का पति और चोर दोनों उसका पीछा कर रहे थे। चलते-चलते मदनसेना धर्म सिंह के घर पहुंच गई। उसने मदनसेना को शादी के जोड़े में देखकर पूछा, “अरे! तुम मुझसे विवाह करने के लिए शादी का जोड़ा पहनकर आई हो।” मदनसेना ने उसे बताया कि उसकी शादी हो गई है। इतना सुनते ही लड़के ने कहा, “तुम कैसे अपने पति से बचकर यहां आ गई।” मदनसेना ने उसे सारी बात बता दी कि वो किस तरह अपने पति से इजाजत लेकर आई है।
यह सुनते ही धर्म सिंह ने कहा, “तुम्हारे पति ने इतने विश्वास के साथ तुम्हें आने दिया है और अब तुम शादी करके किसी और की अमानत बन गई हो। प्रेम तो मैं तुमसे बहुत करता हूं, लेकिन किसी और की स्त्री को हाथ नहीं लगा सकता। इससे पहले की कोई तुम्हें देख ले, तुम जाओ अपने पति के पास।” चोर और मदनसेना का पति दोनों छुपकर उनकी सारी बातें सुन रहे थे। जैसे ही मदनसेना, धर्म सिंह के घर से बाहर निकलती है, तो वह दोनों भी अपने-अपने रास्ते पर निकल पड़ते हैं।
मदनसेना लड़के के घर से निकलकर सीधा चोर के पास पहुंचती है। चोर उसे देखकर मन में सोचता है, यह कितनी पवित्र है, इसके साथ कुछ भी करना गलत होगा। साथ ही उसे धर्म सिंह के घर की बात भी याद आ जाती है। वो मदनसेना की सच्चाई और धर्म सिंह के त्याग को देखकर प्रभावित होता है और कहता है, “जाओ अपने पति के पास यहां क्या कर रही हो।” ऐसा कहकर चोर मदनसेना को उसके घर तक छोड़कर आता है।
बेताल मदनसेना की कहानी रोककर राजा से पूछता है, “हे राजन! अब यह बताओ, इन तीनों में से सबसे बड़ा त्याग किसका है।” विक्रमादित्य कहता है, “बेताल सबसे बड़ा त्याग चोर ने किया है।” इतना सुनते ही वो राजा से पूछता है कैसे? विक्रमादित्य कहता है, “सुन बेताल, मदनसेना का पति उसे यह सोचकर जाने देता है कि यह दूसरे व्यक्ति के प्रति आकर्षित है, ऐसी स्त्री का क्या करना। धर्म सिंह उसे दूसरे की पत्नी समझकर छोड़ता है और उसे यह बोध भी था कि वह पाप कर रहा है। साथ ही इस बात का डर भी रहा होगा कि मदनसेना का पति सुबह होते ही उसे राजा से कहकर दण्ड न दिलवा दें। चोर को किसी बात का डर नहीं था, गहने से लदी स्त्री को उसने त्याग दिया। वो हमेशा से ही पाप कर्म करते आ रहा था, इस बार भी कर लेता तो उसका कुछ नहीं बिगड़ता। इसी वजह से चोर का त्याग बड़ा है।” राजा का जवाब सुनकर बेताल बेहद खुश हुआ और बोला, “राजन तूने मुंह खोल दिया, अब मैं चला।” इतना कहकर बेताल एक बार फिर से उड़ जाता है।
कहानी से सीख:
किसी भी मुसीबत में अपने चरित्र और आत्मविश्वास को नहीं खोना चाहिए।