बहुत समय पहले की बात है जब समुद्र किनारे बसे एक नगर ताम्रलिपि पर राजा चंद्रसेन का राज हुआ करता था। राजा से मिलने के लिए हजारों लोग उत्सुक रहते थे। उन्हीं में से एक था नवयुवक सत्वशील। सत्वशील को काम की तलाश थी, इसलिए वो हर दिन राजा चंद्रसेन से मिलने के लिए उनके राज महल पहुंच जाता। अफसोस, उसे हर बार दरबारी भगा देते थे। ऐसा होते-होते बहुत समय गुजर गया, लेकिन लड़के ने हिम्मत नहीं हारी। वो राज महल के साथ ही हर उस जगह पहुंच जाता, जहां राजा की सवारी जाती थी।
एक दिन राजा भ्रमण कर अपने सैनिकों के साथ महल की ओर लौट रहे थे। कड़ी धूप होने के कारण राजा को काफी तेज प्यास लगी। सैनिक इधर-उधर पानी ढूंढने लगते हैं, लेकिन कोई भी कामयाब नहीं होता है। तभी राजा अपने मार्ग पर खड़े सत्वशील को देखते हैं। नवयुवक को देख राजा पूछते हैं – क्या तुम्हारे पास पानी है?
सत्वशील तुरंत राजा को पानी पिलाता है और साथ ही मीठे फल भी खिलाता है। राजा उससे काफी प्रसन्न होते हैं और कहते हैं – ‘मैं तुम्हें कुछ भेंट देना चाहता हूं, बताओ तुम्हें क्या चाहिए?’
भूपति चन्द्रसेन के सवाल पूछते ही झट से सत्वशील कहता है कि महराज में लंबे समय से काम की तलाश कर रहा हूं, अगर आप मुझे कुछ काम दे दें तो आपकी बहुत कृपा होगी। इतना सुनते ही राजा तुरंत उसे अपने दरबार में नौकरी दे देते हैं और कहते हैं कि उसके द्वारा पिलाए गए पानी का उपकार वो जीवन भर याद रखेंगे।
वक्त बीतता गया और अपनी प्रतिभा की वजह से नवयुवक राजा का बहुत करीबी बन गया। एक दिन भूपति चन्द्रसेन सत्वशील से कहते हैं – ‘हमारे नगर ताम्रलिपि में बेरोजगारी काफी बढ़ गई है, इसके लिए हमें कुछ करना चाहिए’। इतना सुनते ही नवयुवक कहता है – ‘आप हुक्म कीजिए महाराज।’
राजा कहते हैं – ‘हमारे पास एक टापू है, जो काफी हरा-भरा है। अगर वहां कुछ खोज की जाए तो काम के कुछ अवसर मिल सकते हैं।’ इतना सुनते ही सत्वशील, जी महाराज कहकर टापू के लिए रवाना हो गया।
समुद्र के रास्ते टापू के पास पहुंचते ही सत्वशील को पानी में तैरता हुआ एक झंडा नजर आता है। झंडे को देखते ही वो हिम्मत जुटा कर पानी में कूदता है। पानी में कूदते ही नवयुवक सत्वशील टापू की राजकुमारी के पास पहुंच जाता है, जहां वो अपनी सहेलियों और सेविकाओं के साथ गाना गा रही होती हैं। राजकुमारी को नवयुवक अपना परिचय देता है। कुछ देर बातचीत करने के बाद राजकुमारी सत्वशील को भोजन का निमंत्रण देती हैं और खाना खाने से पहले पास के ही एक तलाब में स्नान करने का आग्रह करती हैं। जैसे ही सत्वशील तलाब में नहाने के लिए उतरता है, वो ताम्रलिपि महल की सभा में पहुंच जाता है।
एकदम सभा में सत्वशील को देख राजा चन्द्रसेन चकित हो जाते हैं। वह उससे पूछते हैं – ‘अरे, तुम यहां कैसे?’ सत्वशील राजा को पूरी घटना के बारे में बताता है। सारी बातें जानने के बाद राजा भी उस टापू में जाने का फैसला लेते हैं। वहां पहुंच कर भूपति चन्द्रसेन उस टापू पर जीत हासिल कर लेते हैं। ऐसा होते ही राजा चन्द्रसेन को राजकुमारी उस टापू का राजा घोषित कर देती है। राजा टापू को जीतने की खुशी में वहां की पूर्व राजकुमारी और सत्वशील की शादी करवा देते हैं। इस तरह राजा चन्द्रसेन सत्वशील के पानी के उपकार को चुकाते हैं।
इतनी कहानी बताकर बेताल चुप हो जाता है और विक्रम से पूछता है कि राजा चन्द्रसेन और सत्वशील, दोनों में से सबसे बलवान कौन था? सवाल सुनते ही विक्रम बोल पड़ता है – सत्वशील ज्यादा शक्तिशाली था। बेताल पूछता है – कैसे ?
तब विक्रम बताता है कि सत्वशील बिना कुछ सोचे समझे ही टापू के पास झंडा देखकर पानी में कूद जाता है। वहां कूदने पर उसे किसी भी तरह का खतरा हो सकता था, जबकि राजा को पता था कि वहां पानी में कोई खतरा नहीं है। सवाल का जवाब मिलते ही बेताल, राजा विक्रम के कंधे से उड़कर वापस घने जंगल में किसी पेड़ पर जाकर बैठ जाता है।
कहानी से सीख:
हिम्मत कभी नहीं हारनी चाहिए और कर्म लगातार करते रहना चाहिए।