मगध के राज्य में कुंडी नाम का एक नगर था। कहा जाता है कि कुंडी नगर रावण की सोने की लंका की ही तरह सोने से बना हुआ था। इसी नगर में चारूमति नाम की ब्राह्मण महिला रहती थी। वह हर रोज मां लक्ष्मी की पूजा करती थी और पूरे लगन से अपने पति व सास-ससुर की सेवा भी करती थी।
एक रात जब चारूमति सो रही थी, तो उसके सपने में मां लक्ष्मी आईं। उन्होंने चारूमति से कहा – “मैं वरलक्ष्मी हूं। जिस तरह से तुम मेरी पूजा करती हो, मैं उससे बहुत प्रसन्न हूं। अगर तुम सावन के महिने के अंतिम शुक्रवार को मेरा व्रत रखकर मेरी पूजा करो, तो मेरे आशिर्वाद से तुम्हें सुख-समृद्धि मिलेगी और संतान की भी प्राप्ति होगी। इसके अलावा, अगर तुम यह व्रत अन्य लोगों से भी करवाओगी, तो उन्हें भी इसका शुभ फल मिलेगा।”
सुबह होने पर चारूमति ने सपने वाली बात अपने पति और सास-ससुर को बताई। उन लोगों ने सलाह देते हुए कहा कि सपने की बातें सच होती हैं। इसलिए उसे सपने के अनुसार सावन माह के आखिरी शुक्रवार को मां वरलक्ष्मी का व्रत करना चाहिए। साथ ही उन्होंने नगर की अन्य महिलाओं से भी यह व्रत कराने की सलाह दी।
इसके बाद सावन का महीने आने पर आखिरी शुक्रवार को चारूमति के साथ नगर की अन्य महिलाओं ने भी मां वरलक्ष्मी का व्रत रखा और उनका पूजन पाठ किया।
उस शुक्रवार के दिन चारूमति के साथ सभी महिलाओं ने सुबह उठकर स्नान किया। साफ कपड़े पहनें और मंडप सजाकर उसमें भगवान गणेश व मां लक्ष्मी की वरमुद्रा में मूर्ति रखी और कलश स्थापित करके पूरे विधि-विधान से उनकी पूजा की।
पूजा के आखिरी में सभी महिलाएं जब उस मंडप की परिक्रिमा करने लगीं, तो अचानक सभी महिलाओं का शरीर गहनों से सज गया।
इस तरह यह पूजन करके सभी महिलाओं को धन-संपत्ति मिली। इसके आलवा, उनका घर भी पशुधन, जैसे – गाय, घोड़े, हाथी आदि से भर गया। मां वरलक्ष्मी की कृपा से उनका नगर सोने का बन गया। तभी से नगर के सभी लोग चारूमती की प्रशंसा करने लगें और मां श्री वरलक्ष्मी की हर सावन माह के आखिरी शुक्रवार को पूजन करने लगें।
कहानी से सीख – पूरे विधि विधान से की जाने वाली पूजा का परिणाम अच्छा ही मिलता है।