
राम घाट क्षिप्रा नदी के तट पर बना है
राम घाट भारत के मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर के क्षिप्रा नदी के किनारे बना है। मोक्षदायिनी और उत्तरवाहिनी क्षिप्रा नदी को भगवान महाकाल की गंगा के रूप में जाना जाता है। जानकारों की माने तो भगवान श्रीराम राम घाट ने अपने पिता दशरथ और माता कौशल्या का यहां पर तर्पण किया था। इसलिए क्षिप्रा नदी के तट को रामघाट के रूप में जाना जाता है। आज भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपने पूर्वजों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए यहां पर तर्पण और पूजा करने के लिए आते हैं। यहां पर कालसर्प और पितृ दोष पूजा होती है। राहु-केतु को शांत करने के लिए भी यहां पूजा की जाती है।
मंदिर का इतिहास
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, अमृत मंथन के दौरान क्षिप्रा नदी के समीप स्थित एक सुंदर कुंड में अमृत की कुछ बूंदे गिरी थी, इसलिए क्षिप्रा नदी का महत्व और भी बढ़ जाता है। साथ ही यहां पर भगवान श्रीराम ने अपने पूर्वजों का तर्पण किया था, राम घाट इसलिए क्षिप्रा नदी के इस प्रमुख तट को रामघाट के रूप में जाना जाता है। इस हिसाब से रामघाट का इतिहास भारत के पौराणिक काल से जुड़ा हुआ है।
मंदिर का महत्व
-रामघाट कुंभ समारोह के संबंध में सबसे पुराने स्नान घाटों में से एक माना जाता है। मेगा कुंभ उत्सव के दौरान लाखों लोग इस स्थान पर आते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है राम घाट कि कि यहां एक डुबकी लगाने से आपके सभी पाप धूल जाते हैं। -रामघाट में ही भगवान श्रीराम ने अपने पिता दशरथ और माता कौशल्या का तर्पण किया था। तब से रामघाट पर पितृ दोष की पूजा होती जा रही है।
मंदिर की वास्तुकला
रामघाट घाट ऐतिहासिक एवं पौराणिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है और प्राचीन भारतीय वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। वहीं रामघाट में कई सीढ़ियाँ बनी हुई हैं, जो क्षिप्रा नदी तक जाती हैं। रामघाट के आरती स्थल पर एक भव्य द्वार भी बना हुआ है, जिसकी सुंदरता श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है।
मंदिर का समय
प्रतिदिन होने वाली सायंकाल घाट में संध्या आरती का समय
07:00 PM – 09:00 PM
मंदिर का प्रसाद
रामघाट पर मुख्य रूप से श्रद्धालु कालसर्प पूजा और पितृ दोष पूजा करवाने आते हैं और अपनी श्रद्धा के अनुसार प्रसाद चढ़ाते हैं।